भगतसिंह, सरदार का जन्म अक्टूबर सन् १९०७ ईसवी में पंजाब के लायलपुर जिले में प्रसिद्ध देशभक्त तथा त्यागी सिख परिवार में हुआ। आपकी दादी श्रीमती जयकौर अत्यंत वीर भावनाओंवाली महिला थीं। पुत्रों तथा पौत्रों का पालन पोषण उन्होंने ही किया और बचपन से उनमें राष्ट्रीयता का संस्कार भरा। यह अति प्रसिद्ध है कि भगतसिंह के चाचा सरदार अजीतसिंह ने ही लाला लाजपत राय को राजनीतिक क्षेत्र की ओर आकृष्ट किया था। परिवार की परंपरा तथा जन्मजात संस्कारों के कारण आपने १४ वर्ष की अवस्था से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करना शुरू किया। सन् १९१४ तथा १९१५ के लाहौर षड्यंत्रों में सिखों के आत्मबलिदान का प्रभाव भी आप पर पड़ा। सन् १९२३ में आपने इंटरमीडिएट परीक्षा पास की और जब माता पिता ने आपको विवाहबंधन में बाँधने की तैयारी की तो चुपके से आप लाहौर से निकल भागे।
पंजाब छोड़कर जब आप कानपुर आए तो श्री गणेशशंकर विद्यार्थी का आपको हार्दिक समर्थन एवं सहयोग मिला। देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय आपको है। आपने 'प्रताप' कानपुर तथा अर्जुन दिल्ली के संपादकीय विभाग में क्रमश: बलवंत तथा अर्जुनसिंह के नाम से कुछ समय तक कार्य किया। पत्रकारिता के साथ साथ आप क्रांतिकारी दल का काम भी करते थे। संकटग्रस्त जनता की सेवा मे भी आपकी गहरी रुचि थी। कानपुर निवास के समय जब गंगा की बाढ़ के कारण भीषण संकट उपस्थित हुआ तो आपने श्री बटुकेश्वर दत्त के साथ पीड़ितों की सराहनीय सेवा की। काकोरी षड्यंत्र केस में चार अभियुक्तों को प्राणदंड तथा अन्य को दीर्घ कारावास के दंड से आप उत्तेजित हो गए थे। सन् १९२६ के अक्टूबर में लाहौर में रामलीला मेले में किसी ने बम फेंका। इस अभियोग में सरदार भगतसिंह गिरफ्तार हुए। वस्तुत: यह आपके विरुद्ध पुलिस का कुचक्रमात्र था। इन्हीं दिनों आपने नौजवान भारत सभा के संगठन में प्रमुख भाग लिया तथा काकोरी षड्यंत्र के शहीदों की स्मृति में काकोरी दिवस का आयोजन किया। आपने जुलाई, १९२८ में कानपुर में सभा कर देश के क्रांतिकारियों से संपर्क के लिए दौरा किया। उसी वर्ष सितंबर में दिल्ली के किले में देश के विभिन्न राज्यों के क्रांतिकारियों का सम्मेलन हुआ, जिसमें आपके प्रस्ताव के अनुसार दल का नाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन के स्थान पर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन रखा गया। आपने विश्व के क्रांतिकारी आंदोलन का गहन अध्ययन किया था।
अक्टूबर, १९२८ ई. में लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करने के लिए लाजपत राय के नेतृत्व में विशाल जुलूस निकला। जुलूस पर पुलिस अधिकारियों ने भीषण लाठी वर्षा की, जिससे लाला जी आहत हो गए और १७ नवंबर को उनका निधन हो गया। इसके ठीक एक महीने बाद सरदार भगतसिंह ने अपने अन्यतम साथियों श्री राजगुरु तथा श्री चंद्रशेखर आजाद के साथ लाला जी का बदला लिया तथा पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की। सरदार भगतसिंह अपने साथियों सहित उक्त हत्याकांड के बाद जिस प्रकार पुलिस की आँख में धूल झोंककर लाहौर से निकल आए वह क्रांतिकारी आंदोलन का अत्यंत रोचक तथा रोमांचक प्रकरण है। ८ अप्रैल, १९२९ को सरदार भगतसिंह तथा श्री बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली भवन में सरकारी अफसरों की ओर बम फेंके और स्थिर भाव से खड़े रहे। सरदार भगतसिंह चाहते तो बम फेंककर निकल भाग सकते थे किंतु गिरफ्तारी के पूर्व 'इंकलाब जिंदाबाद' तथा 'साम्राज्यवाद का नाश' के नारे लगाए तथा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के परचे वितरित किए, जिनमें जनता से विप्लव के लिए तैयार होने की अपील की गई थी। लाहौर षड्यंत्र का मुकदमा चला। इसके माध्यम से भी सरदार भगतसिंह ने ब्रिटिश सरकार की अत्याचारी तथा अन्यायपूर्ण नीतियों का रहस्योद्घाटन कर देश में क्रांति तथा जाग्रति की भावना फैलाई। अंतत: ७ अक्टूबर, १९३० को आपको दोनों साथियों सहित फाँसी की सजा दी गई, जिससे देश में हाहाकार मच गया। आपके प्राणों की रक्षा के लिए समस्त देश ने प्रार्थना की किंतु वह ठुकरा दी गई और २३ मार्च, १९३१ की रात में आपको फाँसी दे दी गई। इन्कलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए आपने हँसते हँसते मृत्यु का आलिंगन किया।श्श् (लक्ष्मीांकर व्यास)