ब्लॉक बनाना आधुनिक पुस्तकों में दो प्रकार के चित्र छपते हैं, एक तो रेखाचित्र और दूसरे बिंदुचित्र। इनके ब्लाकों को क्रमश: लाइन ब्लॉक ओर हाफटोन ब्लॉक कहते हैं। लाइन ब्लॉकों से एक रंगी रेखाएँ तथा धब्बे आते हैं, जिनके रंग की गहराई एक सी ही होती है। हाफटोन ब्लॉकों से रंग के हलके ओर गहरे कई दरजे के टोन (tone) फोटो के जैसे आते हैं। हाफटोन ब्लॉक भी दो प्रकार के होते हैं, एकरंगे और बहुरंगे। आजकल प्रयुक्त सभी प्रकार के ब्लॉक फोटो की विधि से बनाए जाते हैं, क्योंकि हाथ से इनका बनाना कठिन है, और फिर वे इतने सुंदर भी नहीं बनते। उपर्युक्त आधुनिक विधि से ब्लॉक बनाने में कुछ यंत्रों तथा उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिनका ब्योरा संक्षेप में इस प्रकार है :

१. कैमरा ¾ इस कैमरे की बनावट चित्र १. में दिखाई है, जिसके स्टैंड का फ्रेम नीचे की तरफ से दो लंबे रेलों के रूप में होता है, जो स्प्रिंगदार चार पायों पर रखा रहता है।

२. निक्षारण (Etching) मशीन ¾ ब्लॉक बनाने के सुग्राही प्लेट पर चित्र छाप लेने के बाद, उसे अम्ल से निक्षारण द्वारा उत्कीर्णित किया जाता है। यह काम फोटोग्राफी की तश्तरियों (dish) में प्लेट पर तनु अम्ल का विलयन डालकर और उन्हें हिला हिलाकर भी किया जा सकता है, लेकिन चित्र २. में दिखाई गई मशीन की टंकी में ब्लॉक के प्लेट को रखकर तथा एक नाप तक अम्ल भरकर, ढकना बंद करने के बाद, मोटर चला देने से एक घूमती हुई फिरकी के अपकेंद्रण द्वारा अम्ल के छींटे उस प्लेट पर उछल उछलकर इस प्रकार गिरते हैं कि मिनटों में ही उससे ब्लाक की रेखाएँ और बिंदियाँ बहुत स्पष्ट उभर आती हैं।

३. वैक्युअम प्रिंटिंग फ्रेम ¾ चित्र के नेगेटिव से धातु के सुग्राही प्लेट पर चित्र छापने के लिए फोटोग्राफरों का साधारण प्रिंटिंग फ्रेम भी काम में आ सकता है, लेकिन उसमें कमानियों का दबाव सब जगह एक सा न पड़ने के कारण प्रकाश का एक सा अच्छा असर नहीं होता। अत: चित्र ३. में दिखाए गए प्रिटिंग फ्रेम का उपयोग करने से निर्वात के प्रभाव से नेगेटिव और धातु के सुग्राही प्लेट के तल एक दूसरे से बिलकुल सट कर मिल जाते हैं, अत सुग्राही प्लेट पर प्रकाश का एक समान सब जगह अच्छा असर होता है। चित्र में दाहिने हाथ की तरफ निर्वात (vacuum) करने की नली दिखाई गई है।

४. राउटिंग मशीन ¾ ब्लॉकों की खुदाई अम्ल से कर चुकने के बाद, जस्ते अथवा ताँबे की चादर के खुले, अर्थात् रेखारहित, बड़े बड़े स्थानों को राउटिंग मशीन से काटकर निकाल देते हैं, जिससे छपाई करते समय वहाँ रोशनाई के लचीले बेलन के कुछ धस जाने पर रोशनाई न लगने पाए। चित्र ४. में इस मशीन की आकृति दिखाई गई है। इसकी बनावट कारखानों में प्रयुक्त होनेवाली खड़ी मिलिंग (milling) मशीन और संवेदनशील नाजुक बरमे से बहुत कुछ मिलती जुलती है। इसमें एक बरमा बिजली के मोटर से तीन चार हजार चक्कर प्रति मिनट की रफ्तार से घूमकर अनावश्यक भागों को छीलकर निकाल देता है। अत: इसके द्वारा काम बहुत जल्दी और अच्छा होता है। इस यंत्र के अभाव में यही काम फ्रेट सॉ से भी किया जा सकता है। हाफटोन ब्लॉकों के लिए तो उक्त यंत्र का होना अत्यंत ही आवश्यक है।

५.गोल आरी ¾ ब्लॉक तैयार होने पर और लकड़ी पर जड़ने के पहले, उसके चारों किनारे सीधे और समकोण पर बनाए जाते हैं। यह काम मोटर से चलनेवाली एक गोल आरी मशीन से किया जाता है। यह छोटा यंत्र लकड़ी के चीरघरों के बड़े गोल आरे के नमूने पर ही बना होता है। इसकी आरी के ऊपर काच के प्लेट का एक गार्ड लगा रहता है, जिससे ब्लाक के प्लेट को सीधा करने का काम करते समय धातु का जो बारीक बुरादा उड़ता है, आँख में नहीं जाने पाता और काच के भीतर से कटाई का काम भी ध्यान से देखा जा सकता है।

रंदा मशीन ¾ ब्लॉक का प्लेट लकड़ी पर जड़ने के बाद उस सबकी ऊँचाई टाइप के ठीक बराबर करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह यंत्र कुछ बढ़ई के रंदानुमा होता है। यह एक जिग (jig) के सहारे से लकड़ी को सही छीलता है और हाथ से चलाया जाता है। दूसरी मशीन गोल प्लेट चकरीनुमा होती है, जो खड़ी मिलिंग की भाँति घूमकर काटती है, इसका संचालन एक मोटर द्वारा किया जाता है और इसमें ब्लॉक स्वयं ही आगे सरकता रहता है।

कैमरे के सहायक उपकरण ¾ (क) कैमरे के लिए बड़ी ही महत्व की वस्तु है। अत: फोटो उत्कीर्णन के लिए सदैव अनबिंदुक (Anastigmatic) लेंस ही होना चाहिए, जो तीन या अधिक सरल लेंसों को मिलाकर बनाया जाता है। इन लेंसों के होल्डर में एक खाँचा बना होता है, जिसमें छेद को छोटा बड़ा करने के डायफ्राम और उनके आवश्यक स्टॉप लगे रहते हैं। इस काम में इन स्टॉपों का बड़ा महत्व होता है, क्योंकि इनकी स्थिति के अनुसार ही स्क्रीन की बिंदियों की संख्या का निश्चय किया जाता है।

(ख) प्रिज्म ¾ सीधी छपाई (direct printing) के सब तरीकों में हाफटोन चित्रों के लिए नेगेटिव को सदैव उलटना पड़ता है, अर्थात् बाएँ से दाएँ को। अत: यह काम प्रकाश की किरणों को लेंसों में से गुजरने के पहले एक त्रिपार्श्व प्रिज्म में से गुजारने से होता है। साधारण फोटो का नेगेटिव उलटा होता है। उसके द्वारा सुग्राही कागज पर चित्र सीधा छप जाता है। लेकिन ब्लॉक बनाने के लिए सुग्राही कागज का स्थान ब्लॉक का सुग्राही प्लेट ले लेता है, जो नेगेटिव ही होना चाहिए। तभी पुस्तक में वही सीधी आकृति छाप सकता है। अत: इसी उद्देश्य से प्रिज्म का उपयोग किया जाता है। प्रिज्म के कर्णीय स्थानवाले पार्श्व पर चाँदी की कलई चढ़ी होती है, जो दर्पण का काम करती है।

(ग) स्क्रीन ¾ हाफटोन चित्रों की बनावट बहुत ही छोटे छोटे दानों से मिलकर होती है, जिनके कारण ही चित्र में हलकी और गहरी झाइयाँ (tone) आ पाती है। इस प्रकार के बिंदु बनाने के लिए काच के स्क्रीनों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें काँच के सुग्राही प्लेट के ठीक पहले कैमरा में लगा दिया जाता है, जिससे प्रकाश उस स्क्रीन में से छनकर ही सुग्राही प्लेट पर पहुँचे। प्रत्येक स्क्रीन दो काच के प्लेटों को एक दूसरे के ऊपर चिपका कर तैयार किया जाता है। इस पर बहुत पास, ४५ के कोण पर, बहुत बारीक बारीक समांतर रेखाएँ, हीराकनी की रुखानी से यंत्र द्वारा समविभाजित अंतरों पर खोदकर, उनमें काला रंग भरकर, एक दूसरे पर इस प्रकार से चिपका दिया जाता है कि दोनों काचों की रेखाएँ आमने सामने रहते हुए एक दूसरी को समकोण पर काटती हुई हों, जिससे एक चौकोर जाली के समान दिखाई पड़े। चित्र ७क, ख और ग में इन रेखाओं को बहुत ही परिवर्धित करके दिखाया गया है। वास्तव में ये रेखाएँ बहुत ही बारीक तथा नजदीक होती हैं। इनकी गिनती प्रति इंच ४५ से लेकर २२५ तक होती है। प्रति इंच रेखाओं की संख्या से ही स्क्रीनों का नाम व्यक्त किया जाता है।

४५, ५५, ६५, और ८५ नंबर के स्क्रीनों से बने ब्लॉकों का उपयोग सस्ते कागज, अथवा समाचारपत्रों के घटिया कागज, पर छापने के लिए किया जाता है। इनका स्टीरियो (stereo) भी अच्छा बन जाता है। १००, ११०, १२०, १३३ न. के स्क्रीनों से बने ब्लॉक, मशीन फिनिश्, सुपर कैलेंडर्ड और इमिटेशन आर्ट के कागजों पर अच्छे छपते हैं। साप्ताहिक या मासिक पत्रिकाओं के लिए १२० स्क्रीन अच्छा होता है। तिजारती सूचीपत्रों, फोल्डर आदि के लिए १३३ स्क्रीन के ब्लॉक अच्छे समझे जाते हैं। १५० और १७५ स्क्रीन के ब्लॉक बहुत बढ़िया काम के लिए, बहुत ही बढ़िया कागज पर, छापे जाते हैं। २०० और २२५ स्क्रीन के ब्लॉक वैज्ञानिक चित्रों के लिए ही प्रयुक्त होते हैं, जिनमें बहुत बारीकियाँ दिखाई जाती हैं।

(घ) रंगीन फिल्टर ¾ रंगीन चित्रों के लिए हाफटोन ब्लॉक बनाते समय मूल चित्र से प्रकाश की किरणें कैमरे के प्रिज्म, लैंस और प्लेट के पास लगे स्क्रीन में से ही होकर नहीं गुजरतीं, बल्कि लेंसों के पीछे लगे विशेष रंगों के काच द्वारा बने प्लेटों, जिन्हें वर्ण फिल्टर कहते हैं, में से भी होकर गुजरती हैं, ये प्रकाशत: बहुत ही समतल (optically flat), समरस, रंगीन काचों के होते हैं। इनके रंगों का नमूना फलक के चित्रों में दिखाया है।

जब लेंस में से होकर फोटो प्लेट पर प्रकाश जाने लगता है, तब उस फिल्टर के कारण उसके पूरक रंगों (complementary colours) का प्रकाश ही उक्त फोटो प्लेट तक जा पाता है और अन्य रंगों के प्रकाश को वह सोख लेता है।

लाइन ब्लॉक ¾ सफेद कागज पर काली, अथवा बड़े धब्बोंयुक्त चित्रों को, रेखाचित्र कहते हैं। इन्हें बनाने के लिए पूर्ववर्णित कैमरे से मूलचित्र का फोटो इच्छित नाप के अनुसार (कुछ छोटा करके) फोटोग्राफिक प्लेट पर लेकर उसे डेवेलप (develop) कर लिया जाता है। फोटो लेने के विशेष प्रकार के प्लेट बनाए जाते हैं, जिन्हें प्रोसेस (process) प्लेट कहते हैं। ये या तो कॉलोडियन युक्त गीले प्लेट होते हैं, या इमल्शनयुक्त सूखे प्लेट होते हैं।

अब नेगेटिव से जस्ते अथवा ताँबे के सुग्राही प्लेट पर चित्र को उतारने की बारी आती है। लाइन ब्लॉक साधारणतया जस्ते के प्लेट पर ही बनाए जाते हैं, क्योंकि वह सस्ता पड़ता है। जस्ते का सुग्राही प्लेट मसाला चढ़ा तैयार भी खरीदा जा सकता है और चाहें तो स्टूडियो में भी तैयार किया जा सकता है।

अब प्लेट को जरा सा गरम कर उसपर तालरक्त (dragon blood) का बारीक चूर्ण भुरक देते हैं। जस्ते को गरम करने से उसपर लगी स्याही चिपचिपी हो जाती है। अत: जहाँ जहाँ स्याही रहती है वहाँ वहाँ तालरक्त चिपक जाता है और फालतू तालरक्त बुरुश से झाड़ दिया जाता है। फिर चादर को इतना गरम करते हैं कि रेखाओं पर लगा तालरक्त पिघल तो जाए, परंतु जलने न पाए। जस्ते के प्लेट को आँच से हटाने के बाद पानी से भीगे, फलालैन मढ़े बेलनों पर फेरकर जल्दी से ठंढा कर लेते हैं। अब प्लेट की कोरी पीठ और किनारों पर चपड़े और स्पिरिट द्वारा बना वार्निश पोतकर निक्षारण मशीन में डालने से, जहाँ जहाँ तालरक्त चिपका रहता है, अथवा वार्निश लगा रहता है, वहाँ वहाँ अम्ल जस्ते को नहीं खा सकता। इस काम के लिए मशीन की टंकी में नाइट्रिक अम्ल का विलयन डाला जाता है।

पहली बार जस्ते को अम्ल में केवल आधे मिनिट तक रखते हैं, क्योंकि अधिक समय रखने से रेखाओं की बगल को भी अम्ल खा जाता है और रेखाएँ कटकर निकल जाती हैं। अत: अम्ल से निकाल कर बहते पानी से धोकर जस्ते को सुखा लेते हैं और फिर नरम बुरुश को बराबर एक दिशा में चलाकर तालरक्त का बारीक चूर्ण जस्ते की रेखाओं पर पोतने की चेष्टा करते हैं। स्वभावत: चूर्ण केवल रेखाओं के पास ही ठहर पाता है, सपाट जगहों में बुरुश की रगड़ से हट जाता है। अब जस्ते को गरम कर, उस एक तरफ से लगे तालरक्त को पिघलाकर पक्का कर लेते हैं। तब उलटी दिशा से ठीक पहले की तरह तालरक्त लगाकर उसे पिघलाकर पक्का कर लेते हैं। फिर इसी प्रकार क्रमश: ऊपर और नीचे की तरफ से बुरुश चलाकर तालरक्त लगाते हैं। लेकिन इस तीसरी और चौथी बेर लगाते समय भी चादर को पहले की तरह ही पट, अर्थात क्षैतिज धरातल में, रखते हैं। इस प्रकार रेखाओं के चारों तरफ पिघला हुआ तालरक्त चिपक जाता है।

उक्त क्रिया के बाद प्लेट को फिर अम्ल में डालते हैं और अबकी बार उसे दो मिनट तक अम्ल के पात्र में रहने देते हैं। इसके बाद फिर प्लेट को धो और सुखाकर, बारी बारी से चारों ओर से तालरक्त लगा और पिघलाकर, फिर अम्ल में डालते हैं। यह क्रिया कई बार दोहराई जाती है जब तक कि रेखाएँ काफी उभरी हुई न दिखाई पड़ें।

फिर प्लेट को धोकर, राउटिंग मशीन से फालतू भाग काटकर, निकाल देते हैं और फिर यथाविधि लकड़ी पर जड़ देते हैं।

हाफटोन चित्र ¾ हाफटोन चित्रों के ब्लॉक बनाने की विधि सिद्धांतत: तो वही है, जैसी ऊपर लाइन ब्लाकों के लिए बताई गई है। अंतर केवल नेगेटिव बनाने की विधि में ही है। इस प्रकार के चित्रों में हलकी ओर गहरी अनेक प्रकार की टोन (tone) प्रदर्शित करनी पड़ती है। यह जस्ते या ताँबे के ब्लॉकों के प्लेटों पर बहुत छोटी छोटी बिंदियों के आपसी फासले के द्वारा प्रदर्शित की जाती है। किसी आर्ट पेपर पर छपे बढ़िया चित्र को यदि प्रवर्धक ताल से देखा जाए, तो चित्र में असंख्य बिंदियाँ ही बिंदियाँ दिखाई देंगी। जहाँ चित्र काला है वहाँ ये बिंदियाँ एक दूसरे से सटी हुई दिखाई देती हैं और जहाँ चित्र प्राय: श्वेत है वहाँ बहुत विरल और छोटी दिखाई देती हैं। वास्तव में बिंदियों के घनीभूत तथा विरल होने के कारण ही चित्र कहीं अधिक और कहीं कम काला जान पड़ता है। इस प्रकार से बिंदियाँ जिधर से प्रकाश लेंस में से आता है, एक चारखानेदार शीशा लगा दिया जाता है, जिसे हाफटोन स्क्रीन कहते हैं। देखें चित्र ७(ग)। चित्र ८. में इसके लगाने का स्थान भी बताया है। चित्र को बाहर लगे एक हत्थे को चलाने से वह स्क्रीन प्लेट के बहुत पास तक लाया जा सकता है। स्क्रीन का प्लेट से फासला जानने का सूचक भी हत्थे के पास ही लगा है। स्क्रीन का उपयोग करते समय यह ध्यान रखना परमावश्यक है कि वह नेगेटिव बननेवाले सुग्राही प्लेट के समांतर दूरी पर रहे, अर्थात स्क्रीन के चारों कोने सुग्राही प्लेट के धरातल से ठीक समान दूरी पर रहें। इससे बिंदियाँ सब एक नाप की बनेंगी, क्योंकि स्क्रीन की रेखाओं के बीच में रहनेवाली पारदर्शक बिंदियों के भीतर से ही फोटो से जो प्रकाश आने पाता है वही काली बिंदियों के रूप में सुग्राही प्लेट पर अंकित हो जाता है। प्रति इंच जितनी ही अधिक रेखाएँ होंगी उतनी ही बारीक बिंदियों का ब्लॉक बनेगा और छपा हुआ चित्र उतना ही सुंदर लगेगा, क्योंकि टोन खूब मिली हुई दिखाई देंगी। स्क्रीन और सुग्राही प्लेट के बीच की दूरी स्क्रीन की बारीकी, कैमरे के लेंस के छेद और अन्य कई बातों पर निर्भर करती है। अत: स्क्रीन को उचित दूरी पर रखकर फोटो लेने से ही सही बिंदिया बन सकती हैं। लेंस के साथ प्रिज्म लगाकर फोटो लेते समय कैमरे की मध्य रेखा को रेलनुमा नीचे के फ्रेम से समकोण पर घुमाकर रखना होता है, जैसा चित्र ८. में दिखाया गया है। इस स्थिति में ही प्रिज्म को निकालकर सीधे कैमरे का उपयोग किया जाता है। प्रकाश द्वारा उद्भासन के बाद नेगेटिव को साधारण रीति से डेवलप तथा स्थायी कर, जस्ते या ताँबे के सुग्राही प्लेट पर छापने की बारी आती है, जिसके लिए पूर्ववर्णित वैक्युअम फ्रेम का उपयोग करने से बिंदियाँ बहुत ही साफ छपती जाती हैं।

प्लेट के मसाले पर प्रकाश की रासायनिक क्रिया के कारण, जिस जिस भाग पर प्रकाश पड़ता है उसका मसाला बाहर से अविलेय हो जाता है और शेष विलेय बना रहता है। अत: प्रकाश द्वारा उद्भासन के बाद प्लेट को पानी की हलकी फुहार के नीचे अँधेरी कोठरी में रखकर धोया जाता है, जिससे बिंदियों के बीचवाले खाली स्थानों से मसाला पानी में घुलकर बह जाए। इसके बाद उस प्लेट को विशेष प्रकार के बैंगनी रंग में डुबोते हैं, जिससे बिंदियाँ अपने मसाले के रँगे जाने के कारण स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं। अत: चित्र में यदि कहीं कोई त्रुटि रह जाती है तो अब स्पष्ट दिखाई देने के कारण उसे ठीक कर दिया जाता है। अब उस धातु के प्लेट को खूब गरम कर धीरे धीरे ठंडा करते हैं, जिससे उसपर चढ़ा मसाला इतना कड़ा हो जाता है कि अम्ल से भी नहीं कटता। फिर इस प्लेट की बगलियों तथा पीठ को चपड़ा और स्पिरिट मिला वार्निश लगाकर अम्लसह बना देते हैं। इसके बाद उसे सिरका और नमक मिले पानी से धोते हैं, जिससे कि बारीक बिंदियों के बीच के खाली स्थान पर जरा सा भी मसाला न लगा रहे। फिर उसे साफ बहते पानी से धोते हैं।

यदि वह प्लेट ताँबे का हो, तो उसे आयरन-पर-क्लोराइड, अथवा तूतिया के विलयन में डालकर, बिजली चालू कर देते हैं, जिससे तांबा धीरे धीरे कटने लगता है और बिंदियों के बीच के स्थानों में कुछ गहरा हो जाता है। यदि जस्ते के प्लेट पर ब्लॉक बनाना हो तो नाइट्रिक अम्ल का उपयोग किया जाता है। अम्ल का उपयोग करते समय पूर्ववर्णित निक्षारण मशीन से काम लेते हैं। एक निश्चित समय बाद उन प्लेटों की जाँच की जाती है और जहाँ जहाँ बिंदियों के बीच की जगह काफी गहरी हो जाती है, वहाँ वहाँ बिंदियों के बीच की जगह काफी गहरी हो जाती है, वहाँ वहाँ एक विशेष प्रकार की वार्निश पोतकर उन्हें सुरक्षित कर देते हैं और शेष भागों के और अधिक उत्कीर्णन के लिए बिजली के अथवा निक्षारण यंत्र में रख देते हैं। इस प्रकार चार पाँच बार में बारीक बिंदियाँ भी स्पष्ट हो जाती हैं। यदि बीच बीच में सँभाल के साथ वार्निश पोतकर नाजुक भागों की रक्षा न की जाए, तो उन भागों की बिंदियाँ आवश्यकता से भी इतनी अधिक छोटी हो जाती हैं कि छापने पर चित्र बहुत फीका लगता है। निक्षारण के बाद के सब काम लाइन ब्लॉकों के समान ही होते हैं।

बहुरंगे हाफटोन चित्र ¾ बहुरंगे हाफटोन चित्रों के ब्लॉक बनाने के संबंध में हमें पहले यह जानना चाहिए कि सफेद प्रकाश के स्पेक्ट्रम में मूल रंग केवल तीन ही होते हैं, पीला, लाल, और नीला। शेष अन्य प्रकार के दिखाई पड़नेवाले रंग इन्हीं के हलके और गहरे मिश्रण से बने जाते हैं। अत: रंगीन चित्र छापने के लिए इन तीनों रंगों के अलग अलग ब्लॉक बनाकर, तथा एक के ऊपर एक छाप देने पर, रंगों का मिश्रण हो जाने से अनेक रंगों के टोन दिखाई देने लगते हैं। फलक के चित्र में ड़ ब्लाक को पहले छापकर उसपर च ब्लाक छाप देने से दो रंगों की झाँइयाँ मिलकर छ के समान दिखाई देने लगती हैं, और इसी के ऊपर नीले रंग का ज चिह्नित ब्लॉक छाप देने से झ के समान बहुरंगी वर्णपट बन जाता है। किस रंग के कितने टोन के मिश्रण से कौन सा रंग बनता है, यह चित्र के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। बहुरंगे मूल चित्र में से मूल रंगों का विश्लेषण कर अलग अलग नेगेटिव बनाने के लिए लेंस के पीछे किसी विशेष रंग का फिल्टर लगाने का स्थान चित्र ८. में बताया गया है। फिल्टरों का रंग फलक के चित्र में क, ख, ग और घ में दिखाया है। ये केवल अपने ही संपूरक रंगों की किरणों को अपने में से आर पार जाने देते हैं ओर शेष को अपने में सोख लेते हैं। उधर सुग्राही प्लेट भी पैंक्रोमैटिक (panchromatic) प्रकार के होने चाहिए।

जैसा एकरंगे हाफटोन ब्लॉक के संबंध में बताया गया है कि सुग्राही प्लेट के सामने प्रकाश के मार्ग में बारीक चारखानेदार एक स्क्रीन लगा दिया जाता है, वैसा ही स्क्रीन रंगीन ब्लॉक बनाते समय भी लगाना पड़ता है, लेकिन वह इस प्रकार का गोल घूमनेवाला बनाया जाता है कि उसके चारखाने की पंक्तियों को घुमाकर किसी भी कोण पर जमाया जा सकता है। जबकि साधारण हाफटोन ब्लॉकों के स्क्रीन की धारियों का कोण ४५ ही रहता है, रंगीन ब्लॉकों के नेगेटिव बनाते समय प्रत्येक रंग के लिए विशेष कोण ही नियत हैं, जिससे छपाई के समय जब एक पर दूसरे रंग के ब्लॉक छापे जाऍ तो मिश्रित रंगों के स्थानों में मखमलीपन (moired effect) आने के स्थान पर कोई और ही प्रकार की अवांछनीय आकृतियाँ न बन जाएँ। अत: ऊर्ध्वाधर दिशा से यदि एक रंग के दानों की पंक्तियों के झुकाव का कोण ४५ रखा जाता है तो दूसरे रंग के लिए ७५ और तीसरे के लिए १५ रखा जाएगा। प्रकाश द्वारा उद्भासन के बाद उन नेगेटिवों से ताँबे के सुग्राही प्लेटों पर छापने, उन्हें डेवेलप करने तथा तेजाब आदि से उत्कीर्ण करने की विधियाँ ठीक वैसी ही होती हैं जैसी इकरंगे हाफटोन ब्लॉकों के लिए बताई जा चुकी हैं। लेकिन रंगीन ब्लॉकों को उत्कीर्ण करने के लिए उत्कीर्णक में बड़ी कुशलता, नैपुण्य तथा अनुभव होना चाहिए, क्योंकि दानों की गहराई में सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंतर पड़ जाने से रंग के टोन में बड़ा अंतर पड़ जाता है। अत: उत्कीर्णक में विविध रंगों के टोनों का मूल रंगों में विश्लेषित कर उनके हलके और गहरेपन का सही अनुमान लगाने की योग्यता होनी चाहिए। तेजाब से उत्कीर्ण करते समय कहाँ कितना कम उत्कीर्ण करना है और कहाँ कितना ज्यादा करना है, इसके लिए वहाँ पर वार्निश आदि लगाकर उचित नियंत्रण भी करना पड़ता है। कई बार प्रूफ भी उठाने पड़ते हैं और ऐसा काम करना होता है कि अंत में छपाई करने पर ब्लॉकों से छपा चित्र मूल चित्र से बिलकुल मिल जाए।

आजकल एक चौथे रंग के ब्लॉक का भी रंगीन छपाई में उपयोग किया जाता है, जिसके द्वारा सलेटी (grey) काला रंग छपता है। जैसे अन्य तीन रंगों का फिल्मों के द्वारा विश्लेषण कर लिया जाता है वैसे इसका विश्लेषण नहीं हो सकता, क्योंकि काले रंग से सभी अंग मिश्रित रहते हैं। फिर भी काले रंग से छापने का ऐंबर नेगेटिव बनाते समय, अंबरी रंग के फिल्टर का प्रयोग किया जाता है (देखें फलक में चित्र घ)। इस फिल्टर के द्वारा चित्र की समस्त शेड (shade) यथास्थान आ जाते हैं। इसके छापने पर प्रत्येक रंग को आवश्यक गहराई प्राप्त होकर चटकपन आ जाता है और चित्र का फीकापन भी नष्ट हो जाता है तथा छोटी छोटी त्रुटियाँ भी ठीक हो जाती हैं। बनाते समय ब्लॉकों का निरीक्षण करनेवाले उत्कीर्णक के लिए यह मार्गदर्शन प्लेट का भी काम देता है।

सं. ग्रं. ¾ श्री कृष्णप्रसाद दर : आधुनिक छपाई, लॉ जरनल प्रेस, इलाहाबाद; डा. गोरखप्रसाद : फोटोग्राफी। (ओंकारनाथ शर्मा)