ब्रूनेल, सर मार्क आइसैंबार्ड सर मार्क आइसैंबार्ड (Brunel, Sir Marc Isambard, सन् १७६९-१८४९), आविष्कारक तथा इंजीनियर का जन्म फ्रांस देश के रूआँ (Rouen) नामक नगर के पास हुआ था। छह वर्ष तक इन्होंने फ्रांस की नौसेना में सेवा की। तत्पश्चात् सन् १७९३ में फ्रांस में क्रांति के दंगों के कारण ये अमरीका चले गए। न्यूयॉर्क में बॉवरी थियेटर का पुनर्निर्माण इनकी देखरेख में हुआ तथा इन्होंने यहाँ की आयुधशाला तथा तोप के कारखाने में अपनी आविष्कृत ओर सुकल्पित मशीनें लगाईं।
सन् १७९९ में ये इंग्लैंड गए। यहाँ की गवर्नमेंट के सम्मुख इन्होंने जहाजों में लगनेवाली लकड़ी को मशीनो से कार्ययोग्य बनाने का प्रस्ताव रखा, जो स्वीकृत हो गया। इस काम के लिए इन्होंने अनेक यांत्रिक औजारों का आविष्कार किया तथा लकड़ी चीरने और उसे झुकाने की उन्नत मशीनें बनाई। भाप की शक्ति से जहाज चलाने के प्रयत्नों में भी आपने भाग लिया। सन् १८१४ में रॉयल सोसायटी के सदस्य चुने गए। सन् १८१६ में इन्होंने मोजे ओर बनियाइन बनानेवाली अपनी गोल मशीन का एकस्व प्राप्त किया। सूत के गोले बनाने, आलेखों की प्रतिलिपि तैयार करने, लकड़ी के छोटे बक्स तथा कीलें बनाने, पन्नी तैयार करने और छापने के लिए उन्नत प्रकार के स्टीरिओटाइप पट्टों के निर्माण संबंधी आविष्कार भी किए।
रूआँ, सेंट पीटर्सबर्ग तथा बूर्बा द्वीप पर पुल, झूला पुल तथा लिवरपूल पत्तन के लिए जल पर तैरते हुए अवतरण मंच की योजनाएँ बनाने का श्रेय भी इन्हीं को है। सन् १८२४ में टेम्स नदी के नीचे सुरंग खोदकर, एक किनारे से दूसरे किनारे तक मार्ग बनाने का कार्य इन्हीं के निर्देश में आरंभ हुआ। इस सुरंग के बनने में २० वर्ष लगे।
फ्रांस की सरकार ने इन्हें लीजन ऑव ऑनर का पदक प्रदान किया तथा इंग्लैंड में इन्हें नाइट की उपाधि मिली। (भगवान दास वर्मा)