ब्राउनी गति (Brownian Movement) यदि काच के बरतन में पानी रखकर उसकी परीक्षा की जाए, तो स्थिर अवस्था में वह तरल समांग, विच्छिन्न तथा गतिहीन प्रतीत होता है। किंतु यदि इस जल में कोई चूर्ण पदार्थ डालकर द्रव को हिल दिया जाए, तो उस पदार्थ के अति सूक्ष्म कण विभिन्न दिशाओं में गति करते प्रतीत होते हैं और कुछ समय बाद जब सब कण पूर्ण रूप से प्रसरित हो जाएँगे तब द्रव स्थिर सा लगेगा। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर विदित होगा कि चूर्ण पदार्थ के कण निरंतर इधर उधर तीव्र गति से चलते रहते हैं और उनकी गति यदृच्छ (haphazard) तथा अनियमित है। इस प्रकार की गति का अध्ययन १८२७ ई. में ब्राउन महोदय ने किया था। अत: इसे उनके नाम से संबंधित करके ब्राउनी गति कहते हैं।

जल के अतिरिक्त अन्य द्रवों में भी इस प्रकार की गति देखी जा सकती है, परंतु यह गति उन द्रवों की श्यानता (viscosity) के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होगी। ज्यों ज्यों कणों के आकार को कम किया जाता है यह गति बढ़ती जाती है। इस गुण को ब्राउन ने इस गति की खोज करने के साथ ही बताया था। तापवृद्धि से गति भी बढ़ती जाती है।

इस गति की एक विशेषता यह है कि यह कभी रुकती नहीं, निरंतर होती रहती है। २०वीं शताब्दी में वैज्ञानिक पेरैं (Perrin) ने ग्राउनी गति पर विस्तृत कार्य किया और अपने प्रयोगों के फलस्वरूप ग्रामाणु में उपस्थित अणुओं की संख्या ज्ञात की। उस समय तक गतिज विज्ञान कल्पना मात्र था, परंतु पेरैं के प्रयोगों द्वारा उसे परीक्षण पुष्टि मिली।

कोलॉइडी (colloidal) विलयनों की अतिसूक्ष्मदर्शी (ultramicroscope) द्वारा परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि इनमें भी कण निरंतर गतिवान रहते हैं। थोड़ी देर तक ये सीधी रेखा में चलते हैं, फिर एक दम दिशा बदलकर दूसरी ओर सीधी रेखा में जाते हैं, और इसी प्रकार थोड़ी थोड़ी देर बाद ये अपना मार्ग बदलते रहते हैं। वाइनर (Weiner) ने १८६३ ई. में यह प्रदर्शित किया कि कोलॉइडी कणों की यह गति उनके रासायनिक स्वभाव पर नहीं निर्भर करती, किंतु यदि कणों का आकार कम कर दिया जाए तो गति में वृद्धि हो जाती है। ब्राउनी गति अणुओं की गति के कारण होती है। माध्यम के अणुओं से टक्करें खाकर कोलॉइडी कण विभिन्न दिशाओं में गति करते हैं। (रामदास तिवारी)