ब्राइट, जान (१८११-१८८९) अंग्रेज राजनीतिज्ञ, जिसका जनम लंकाशायर की रोकडेल बस्ती के समीप ग्रीन बैंक में १६ नवंबर, १८११ को हुआ। इसके पिता जेकब ब्राइट ने इसके जनम से दो वर्ष पूर्व रोकडेल में सूती मिल की स्थापना की थी। ब्राइट की प्रारंभिक शिक्षा घर के समीप एक बोर्डिंग स्कूल में हुई। उसने एक्वर्थ, पार्क और न्यूटन के स्कूलों में भी अध्ययन किया। उच्च शिक्षा वह प्राप्त न कर सका। १६ वर्ष की उम्र में वह पिता के व्यवसाय में सम्मिलित हुआ और फिर उसका साझेदार बन गया। १८३३ में उसके प्रयत्न से एक साहित्यिक संस्था की स्थापना हुई। इसमें दिए गए अपने भाषणों के प्रभाव से उसको अपनी वाक्शक्ति की जानकारी हुई जिसका उसने उत्तरोत्तर उपयोग किया। १८३८ में अनाज कानून के विरोध में रोकडेल में दिए गए उसके तथ्ययुक्त और तर्कपूर्ण भाषण ने उसके प्रभाव में वृद्धि की। अगले वर्ष मैंचेस्टर में एंटीकार्न ला लीग (अनाज कानून विरोधी संघ) की स्थापना में ब्राइट का विशेष हाथ था। इस प्रजापीड़क कानून की समाप्ति के लिए संघ के प्रमुख नेता कौबडेन के साथ ब्राइट ने अथक परिश्रम किया। १८४६ में दल के प्रधानमंत्री राबर्ट पील ने इस कानून को उठा लिया। इसी वर्ष संघ को भी समाप्त कर दिया गया।

ब्राइट अबाध व्यापार का समर्थक था। १८४३ में डरहम से निर्विरोध निर्वाचित होकर वह पार्लमेंट में पहुँच गया थ। वहाँ उसने शासन में उदार सिद्धांतों के व्यवहार, आवश्यक आर्थिक सुधार और अनाज कानून की समाप्ति के पक्ष में मत व्यक्त किया। श्रमिकों के काम के घंटों के सीमित करने और धर्माधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा के नियंत्रण के प्रस्तावों का उसने पार्लमेंट में विरोध किया। उसने दोषपूर्ण निर्वाचन प्रणाली के सुधार के लिए कार्य किया। वह शांतिवादी था। रूस के विरुद्ध क्रीमिया की लड़ाई में इंग्लैंड के सहयोग का उसने उग्र विरोध किया किंतु उसके क्षेत्र ने उसके विरोध का समर्थन नहीं किया। उन्होंने रूस का एजेंट कहकर ब्राइट को बदनाम किया और नगर की सड़कों पर उसके पुतले जलाए। १८५७ के चुनाव में मैंचेस्टर से वह और काबडेन दोनों ही हार गए। किंतु अगले ही वर्ष दूसरे औद्योगिक नगर बर्मिघम से उसका निविरोध चुनाव हो गया। ब्राइट जीवन के अंतिम दिन तक पार्लमेंट का सदस्य रहा। बर्मिंघम नगर ने प्रत्येक चुनाव में उसको अपना प्रतिनिधि निर्वाचित किया। फरवरी, १८५८ ने षडयंत्र संबंधी सरकारी कानून का ब्राइट ने उग्र विरोध किया। कानून स्वीकृत न हो सका। प्रधान मंत्री पामर्स्टन को पदत्याग करना पड़ा। इंग्लैंड में यहूदियों का पार्लमेंट में प्रवेश प्रसिद्ध निषिद्ध था। उनके प्रतिबंधों को हटाने का ब्राइट ने समर्थन किया। जुलाई, १८५८ में यहूदियों को पार्लमेंट का सदस्य बनने की सुविधा प्राप्त हो गई। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की समाप्ति और इंग्लैंड की सरकार द्वारा उस देश के शासन का उसने समर्थन किया। १८५९ से १८६७ तक ब्राइट ने पार्लमेंट के सुधार के पक्ष में लोकमत तैयार करने के लिए अनवरत परिश्रम किया। सुधार संबंधी प्रस्तावों का उसने प्रत्येक अवसर पर पार्लमेंट में समर्थन किया। १८६७ में सुधारविरोधी अनुदार दल की सरकार को ही इस संबंध का कानून बनाना पड़ा।

ब्राइट के कार्य अपने देश तक ही सीमित न थे। दासत्व के विरुद्ध संघर्षरत अमरीका के उत्तरी राज्यों का भी उसने समर्थन किया। भारतवासियों की स्थिति में सुधार के लिए भी उसने प्रयत्न किया। १८६८ में उदार दल की सरकार बनने पर प्रधान मंत्री ग्लैडस्टन ने ब्राइट को व्यापार बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। इस पद के कार्यकाल में ब्राइटन ने आयरलैंड के धर्म और भूमि के मामलों में प्रधानमंत्री के निर्णयों का समर्थन किया। अस्वस्थता के कारण दिसंबर १८७० में उसने अपना पद त्याग दिया। पर अगस्त, १८७३ में लंकास्टर की डची के चांस्लर के रूप में उसको फिर मंत्रिमंडल में स्थान प्राप्त हो गया। १८७४ के चुनाव में अनुदार दल की बहुमत से विजय हुई किंतु ब्राइट उस वर्ष भी मैंचेस्टर से निर्विरोध निर्वाचित हुआ। यूरोप के पूर्वी राज्यों के संबंध में ग्लैडस्टन की सरकार विरोधी नीति का उसने समर्थन किया, १८८० के चुनाव में उदार दल की विजय होने पर प्रधानमंत्री ग्लैडस्टन ने ब्राइट को दूसरी बार लंकास्टर की डची के चांसलर पद पर नियुक्त किया। वह दो वर्ष ही इस पद पर रहा। मिस्र में हस्तक्षेप की मंत्रिमंडल की नीति उसे ग्राह्य न थी। अलैग्जैंड्रिया पर गोलाबारी के बाद १५ जुलाई, १८८२ को उसने यह पद त्याग दिया और भविष्य में कोई सरकारी पद न ग्रहण किया। आयरलैंड को स्वशासन का अधिकार देने के ग्लैडस्टन के प्रस्ताव का उसने विरोध किया। इस प्रश्न पर दल के सदस्यों में मतभेद कराने में ब्राइट का प्रमुख हाथ था किंतु अनुदार दल के प्रभाव की वृद्धि, उस दल के हाथ से शासनसूत्र जाने, दल के द्वारा व्यापार-संरक्षण-नीति के उपयोग तथा साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाये जाने से जीवन के अंतिम वर्षों में वह दु:खी रहा। उसके अंत के पाँच मास शैय्या पर ही बीते। २७ मार्च, १८८९ को उसकी मृत्यु हो गई। राजनीतिक जीवन के स्तर को ऊँचा करने के लिए ब्राइट निरंतर प्रयत्नशील रहा। इंग्लैंड के महान् पुरुषों में उसका स्थान है।