ब्रह्मगुप्त ये आबू पर्वत तथा लुणी नदी के बीच स्थित, मिनमाल नामक ग्राम के निवासी थे। इनके पिता का नाम जिणु था। इनका जन्म शक संवत् ५२० में हुआ था। इन्होंने प्राचीन ब्रह्म: पितामह: सिद्धांत के आधार पर ब्रह्म स्फुट सिद्धांत तथा खंड खाद्य नामक करण ग्रंथ लिखे, जिनका अनुवाद अरबी भाषा में, अनुमानत: खलीफा मंसूर के समय, सिंधिद और अल अकरंद के नाम से हुआ। इनका एक अन्य ग्रंथ ध्यान ग्रहोपदेश नाम का भी है। इन ग्रंथों के कुछ परिणामों का विश्वगणित में अपूर्व स्थान है।
इनकी सबसे महत्वपूर्ण देन चक्रीय चतुर्भुज संबंधी प्रमेय हैं। इन्होंने चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल निकालने के सूत्र :
का आविष्कार किया और सिद्ध किया कि यदि किसी वक्रीय चतुर्भुज की भुजाएँ क (a), ख (b), ग (c), घ (d) और विकर्ण य (x) तथा र (y) हों, तो
य
=
र
=
ब्रह्मगुप्त अनावर्त वितत भिन्नों के सिद्धांत से परिचित थे। इन्होंने एक घातीय अनिर्णीत समीकरण का पूर्णाकों में व्यापक हल दिया, जो आधुनिक पुस्तकों में इसी रूप में पाया जाता है, और अनिर्णीत वर्ग समीकरण, ना र२ + १ = य२, (K y2 + 1 = x2), को भी हल करने का प्रयत्न किया।
इनका वर्षमान अन्य सिद्धांतों के वर्षमानों से कम और सूक्ष्म है। ये अच्छे वेधकर्ता थे और इन्होंने वेधों के अनुकूल भगणों की कल्पना की है। प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी, भास्कराचार्य, ने अपने सिद्धांत को आधार माना है और बहुत स्थानों पर इनकी विद्वत्ता की प्रशंसा की है। (रामकुमार तथा मुरारिलाल शर्मा)