बोजाँके बर्नार्ड (1848-1923) प्रत्ययवादी बोजाँके के अनुसार मनुष्य का अपूर्ण, असंबंधित एवं सामंजस्यविहीन अनुभव सदैव पूर्णता की प्राप्ति की चेष्टा करता रहता है। सीमित अनुभवों का विरोध सदा होता रहता है। सीमित आत्मा में विरोध को मिटाने तथा समता और पूर्णता प्राप्त की प्रेरणा वर्तमान रहती है। इस प्रकार मनुष्य की अंतर्हित प्रवृत्ति पूर्णता की प्राप्ति की अनवरत चेष्टा करती रहती है। यह सर्वांगीण, परिपूर्ण अनुभव ही बोजाँके के अनुसार पूर्ण (Absolute) वास्तविकता है। यह स्वत: परिपूर्ण है और पूर्णतया सामंजस्यपूर्ण व्यष्टि है। बोजाँके ने इसे ही 'चिरंतन सत्य' (Concrete Universal मूर्त सामान्य) माना है।
'चिरंतन सत्य' की तुलना 'गुणात्मक सत्य' (Abstract universal अमूर्त सामान्य) से की गई है। 'गुणात्मक सत्य' शुद्ध तादात्म्य है। यह शून्य है। इसमें विभिन्नताएँ नाममात्र को भी नहीं हैं। यहाँ सामंजस्य नहीं है। यह शून्य है। इस प्रकार का भ्रामक गुणात्मक स्वभाव 'पूर्ण वास्तविकता' आंतरिक (Absotute) का नहीं हो सकता। दरअसल 'चिरंतन सत्य' वही है जो अपने में 'अनेकता' को 'एकता' में पिरोता है, फिर भी उसमें विभिन्नताएँ विद्यमान रहती हैं। अत: बोजाँके के अनुसार 'पूर्ण वास्तविकता' 'चिरंतन सत्य' है। यह सिद्धांत ब्रैडले के 'पूर्ण वास्तविकता' के विचार का ही प्रसार है। (जगदीश नारायण मल्लिक)