बैरामजी जीजाभाई जीजाभाई परिवार के संस्थापक, जो जनसेवा तथा विश्वप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे, सूरत जिले के इलाव गाँव में सन् १७२९ में बंबई आए थे। आपकी सबसे प्रसिद्ध संतति बैरामजी जीजाभाई थे। बैंकों, रेलवे संस्थाओं और रूई के स्पिनिंग और वीविंग मिल के डाइरेक्टर होने के साथ ही आप बंबई प्रांत के वाणिज्य जीवन के प्रधान प्रेरक थे।
उन दिनों न्यायाधीशों की बेंच ही म्युनिसपल सरकार की देखरेख और और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी थी। बैरामजी १८५५ में न्यायाधीश नियुक्त हुए। १८६७ में आप बंबई विश्वविद्यालय के फेलो रूप में नियुक्त हुए और बंबई की लेजिस्लेटिव कौंसिल के अतिरिक्त सदस्य बनाए गए। यहाँ आपने जनता की रुचि के अनुकूल पथप्रदर्शक के रूप में सम्मान प्राप्त किया। उस समय जो बिल विचार विमर्श के लिए आए उनमें एक था अन्नों पर नगरकर लगाना। बैरामजी ने उसक घोर विरोध किया और जनता की भावनाओं को उत्साहपूर्वक सबके सम्मुख पेश किया। उनका कहना था कि यदि अतिरिक्त रेवन्यू लगाने की आवश्यकता ही है तो स्पिरिट तथा उत्तेजक पेय पदार्थों कर लगाया जाए बनिस्पत इसके कि आधा पेट भोजन मात्र करनेवाली जनसंख्या के भोजन पर लगाया जाए।
वाणिज्य और राजनीतिक जीवन से संबंधित उनके कार्य और प्रयास जैसे ध्यान देने योग्य हैं वैसे ही बैरामजी के अनेक उपकार तथा दान दक्षिणाएँ भी महत्वपूर्ण हैं। आपकी आर्थिक सहायताओं और दानों में सबसे महत्वपूर्ण है, गरीब पारसी बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा के लिए एक संस्था की स्थापना हेतु ३,५०,००० के मूल्य के सरकारी कागजों का दान। आप से पर्याप्त में दान प्राप्त करनेवाले जातीय पक्षपात रहित संस्थाओं में प्रमुख हैं अहमदाबाद और पूना का सरकारी मेडिकल स्कूल, थाना का हाईस्कूल, और भीवांदी का ऐंग्लोवर्नाक्यूलर स्कूल। बंबई का नेटिव जेनरल पुस्तकालय, अलेक्जांडरा नेटिव गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन और विक्टोरिया व एडवर्ड म्यूजियम तथा पिंजरापोल आपकी उदारता व अनुग्रह के भागी थे। ((स्व.) सर रुस्तम पेस्तन जी मसानी)