बैंड स्पेक्ट्रम (Band Spectrum) जब किसी पदार्थ को विद्युत् या ऊष्मा शक्ति देकर उत्तेजित किया जाता है तब उससे विभिन्न वर्ण की रश्मियाँ (radiations) निकलने लगती हैं। स्पेक्ट्रोग्राफ की सहायता से इनका स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जा सकता है। यदि पदार्थ को इतनी ऊर्जा दी जाए कि उसके अणु उत्तेजित हो जाएँ, किंतु वे टूटकर परमाणुओं में परिवर्तित न हों, तो उनसे उत्सर्जित रश्मियों के स्पेक्ट्रम में विभिन्न वर्ण की छोटी छोटी पट्टियाँ, या बैंड, पाए जाते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम को बैंड स्पेक्ट्रम कहते हैं। यदि पदार्थ को बहुत अधिक ऊर्जा दी जाए तो अणु टूट जाते हैं और पदार्थ के परमाणु उत्तेजित हो जाते हैं। उत्तेजित परमाणुओं से जो स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है, उसमें विभिन्न वर्ण की रेखाएँ पाई जाती हैं। यह स्पेक्ट्रम बैंड स्पेक्ट्रम से सर्वंथा भिन्न होता है। बैंड स्पेक्ट्रम अणुओं से प्राप्त होता है। अत: इसे आणविक स्पेक्ट्रम भी कहते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम में प्रत्येक पट्टी या बैंड का एक किनारा अधिक प्रखर दिखाई देता है। इस किनारे को बैंड शीर्ष (band head) कहते हैं। बैंड शीर्ष से परे पट्टी की प्रखरता क्रमश: घटती जाती है और दूसरा किनारा बनने से पूर्व ही बहुधा अगले बैंड का शीर्ष आ जाता है, या इस बैंड की प्रखरता शून्य हो जाती है। यदि प्रखरता घटने का क्रम दीर्घ तरंग से लघु तरंग की ओर होता है, तो बैंड को बैंगनी अवक्रमित (violet degraded) और यदि यह क्रम लघु से दीर्घ तरंग की ओर होता है, तो बैंड को लाल अवक्रमित (red degraded) कहते हैं। अच्छे स्पेक्ट्रॉस्कोप से देखने पर ज्ञात होता है कि प्रत्येक बैंड अनेक सूक्ष्म रेखाओं का क्रमिक समुदाय होता है। शीर्ष की ओर ये रेखाएँ अत्यधिक सघन होती जाती हैं और पूँछ की ओर क्रमश: विरल होती जाती हैं।

बैंड स्पेक्ट्रम मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, अवशोषण स्पेक्ट्रम (absorption spectrum) और उत्सर्जन स्पेक्ट्रम (emission spectrum)। पदार्थ के वाष्प को उचित ताप और दाब पर किसी नली में बंद कर दिया जाए और उसमें से अविरल रश्मियाँ भेजी जाएँ, तो वाष्प द्वारा कुछ रश्मियाँ अवशोषित हो जाती हैं। किसी पदार्थ का वाष्प अत्यंत उच्च ताप पर जिन रश्मियों को उत्सर्जित कर सकता है उन्हीं रश्मियों को वह कम ताप पर अवशोषित करता है। अत: नली से बाहर आनेवाली रश्मियों के अविरल स्पेक्ट्रम में काले काले बैंड पाए जाते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम को अवशोषण स्पेक्ट्रम कहा जाता है। बहुत सी गैसों में कम दाब पर विद्युतद्विसर्जन कराने से भी बैंड स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है। इन्हें उत्सर्जन स्पेक्ट्रम कहते हैं। ठोस और द्रव पदार्थों से अवशोषण और उत्सर्जन बैंड स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए उन्हें वाष्प के रूप में परिवर्तित किया जाता है। बहुत से पदार्थ पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से चमकने लगते है और उनसे दृश्य प्रकाश निकलने लगता है। इसे प्रतिदीप्ति और स्फुरदीप्ति कहते हैं। इन विधियों द्वारा भी बैंड स्पेक्ट्रम प्राप्त किए जाते हैं।

स्पेक्ट्रम में बैंड व्यवस्था - सर्वप्रथम १८८५ ई. में डिलांड्रे (Deslandres) ने आणविक स्पेक्ट्रम के बैंडशीर्षों की तरंगसंख्याओं को सूत्रबद्ध करने का प्रयत्न किया और उन्हें नियमानुकूल सजाने के लिए एक सारणी बनाई, जिसको डिलांड्रे सारणी (Deslandres table) कहते हैं। स्पेक्ट्रम के जिन बैंडशीर्षों की तरंग संख्याएँ एक ही सारणी में रखी जा सकती हैं, वे सभी बैंड मिलकर एक बैंडप्रणाली (band system) बनाते हैं। प्रत्येक प्रणाली में बैंडों के छोटे छोटे समूह पाए जाते हैं। इन्हें डिलांड्रे सारणी की किसी एक ही पंक्ति या एक ही कॉलम में भरा जा सकता है। इन छोटे समूहों को बैंड अनुक्रम (Band sequences) कहते हैं। प्रत्येक बैंड अनेक रेखाओं का क्रमिक समुदाय होता है। अधिक विक्षेपण तथा विभेदनक्षमतावाले स्पेक्ट्रोग्राफ से किसी बैंड का फोटो लेने पर ये रेखाएँ स्पष्ट हो जाती है और इन्हें दो, या दो से अधिक, श्रेणियों में सूत्रबद्ध किया जा सकता है। जिन द्विपरमाणुक अणुओं के परमाणु हल्के होते हैं, उनके बैंड की रेखाएँ अपेक्षाकृत विरल होती हैं। भारी अणुओं के बैंड स्पेक्ट्रम क्रमश: क्लिष्ट होते जाते हैं और उनके प्रत्यक बैंड की रेखाएँ बहुधा दर्जनों श्रेणियों में बाँटी जा सकती हैं।

सैद्धांतिक विवेचन - बैंड स्पेक्ट्रम अणुओं की उत्तेजना से प्राप्त होते हैं। द्विपरमाणुक अणुओं के स्पेक्ट्रम की रचना बहुपरमाणुक अणुओं के स्पेक्ट्रमों की अपेक्षा अधिक सरलतापूर्वक समझी जा सकती है। जिस प्रकार परमाणुओं के न्यूक्लियस के चारों ओर इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं उसी प्रकार अणु में भी इलेक्ट्रॉनों की नियत कक्षाएँ होती हैं, जिनमें ये भ्रमण करते रहते हैं। प्रत्येक कक्षा में इनकी संख्या नियत रहती है। सबसे अंतिम कक्षा के इलेक्ट्रॉन अधिक स्वतंत्र होते हैं। उन्हें ऑप्टिकल इलेक्ट्रॉन भी कहा जाता है। इलेक्ट्रॉन के कोणीय आवेग के कारण परमाणु में इलेट्रॉनिक ऊर्जा पाई जाती है। किसी इलेक्ट्रॉन के कोणीय आवेग का मान श्या श्ही हो सकता है। इन मूल्यों के अतिरिक्त अन्य मान के कोणीय आवेग असंभव हैं। इस अनुबंध या शर्त को क्वांटम अनुबंध (Quantum Condition) कहते हैं। को कोणीय आवेग की क्वांटम संख्या कहते हैं। इसी के आधार पर अणु की इलेक्ट्रॉनिक स्थितियों का भिन्न भिन्न नाम रख दिया गया है। यदि = ०, १, २, ३,... हो तो इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा स्थितियों (energy states) का नाम क्रमश: , p, D, f... होता है। किसी अणु की इलेक्ट्रॉनिक स्थितियों की संख्या ऑप्टिक इलेक्ट्रानों की संख्या पर निर्भर करती है। बहुधा एक से अधिक ऊर्जास्थितयाँ पाई जाती हैं, किंतु इनमें जिस स्थिति का ऊर्जामान सबसे कम होता है, अधिकांश अणु सामान्य ताप पर उसी स्थिति में रहते हैं। जब ऊष्मा, या विद्युच्छक्ति, या किसी अन्य प्रभाव से कोई ऑप्टिकल इलैक्ट्रॉन उत्तेजित हो जाता है तब वह अगली उच्चतर ऊर्जास्थिति में चला जाता है। परंतु शीघ्र ही वह पहली स्थिति में वापस आ जाता है। इलेक्ट्रॉन के उच्चतर ऊर्जास्थिति में संक्रमण (transition) करने से, दोनों स्थितियों के अंतर के बराबर ऊर्जा विकीर्ण होती है। इसी ऊर्जा से स्पेक्ट्रम बनता है। यदि निम्न ऊर्जास्थिति में अणु की इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा E और अगली स्थिति में E' हो, तो इलेक्ट्रॉन के संक्रमण से (E' - E = ho) ऊर्जा उत्सर्जित होती है।

प्रत्येक इलेक्ट्रॉन अपनी धुरी पर भी लट्टू की भाँति नाचता है। इस गति को चक्रण (spin) कहते हैं। चक्रण के कोणीय आवेग का मान . h/2p होता है। इस आवेग के कारण अणु की प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक स्थिति द्विधा' 'त्रिधा'... पाई जाती है, अर्थात् एक ऊर्जा स्थिति के अत्यंत पास पास एक या दो और स्थितियाँ भी पाई जाती हैं। इन द्विधा, त्रिधा,...पाई जाती है, अर्थात् एक ऊर्जा स्थिति के अत्यंत पास पास एक या दो और स्थितियाँ भी पाई जाती हैं। इन द्विधा, त्रिधा,...आदि स्थितियों को , p,...आदि च्ह्रोिं के शीर्ष पर बाईं ओर छोटे से अंक द्वारा व्यक्त कर दिया जाता है, जैसे , D, f इत्यादि।

अणु में इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा के अतिरिक्त कंपनजन्य ऊर्जा और घूर्णनजन्य ऊर्जा भी होती है। अणु के दोनों परमाणु सरल आवर्त गति से कंपन करते रहते हैं। इसमें अणु में कंपनजन्य ऊर्जा पाई जाती है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक अणु अपने गुरुत्वकेंद्र से जानेवाले किसी अक्ष पर घूर्णन भी करता है। इसके कारण अणु में घूर्णनजन्य ऊर्जा होती है। इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा का मान बहुत अधिक होता है। कंपनजन्य ऊर्जा का मान उससे कम और घूर्णनजन्य ऊर्जा का मान सबसे कम होता है। जिस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा के सभी मान संभव नहीं होते, उसी प्रकार कंपन और घूर्णनजनित ऊर्जा के भी सभी मान संभव नहीं है। इस तथ्य को ऊर्जा का क्वांटीकरण (quantization) कहा जाता है।

अणु की विभिन्न ऊर्जास्थितियो को तरंगसंख्या (Wave number) से व्यक्त किया जाता है और प्रत्येक स्थिति को ऊर्जास्तर (Energy level) कहते हैं। सभी प्रकार के स्तरों को क्षैतिज रेखाओं द्वारा भिन्न भिन्न ऊँचाई पर व्यक्त किया जाता है। इससे स्पेक्ट्रम की रचना समझने में सुविधा होती है। ऐसे लेखाचित्रों को ऊर्जास्तर चित्र कहते हैं।

अत्यंत कम ताप पर अणु में केवल घूर्णनजनित ऊर्जा ही पाई जाती है, अत: निम्न ताप पर केवल रेखाएँ मिलती हैं। घूर्णन ऊर्जास्तरों को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जाता है : F = BJ (J+1), जहाँ F घूर्णनजन्य ऊर्जा का मान तरंगसंख्याओं में हैं, B स्थिर राशि है तथा J घूर्णन की क्वांटम संख्या है, जो की भाँति विभिन्न घूर्णन कोणीय आवेग का मान h/2p के गुणकों में व्यक्त करती है। जब अणु एक घूर्णन ऊर्जास्तर से दूसरे घूर्णन ऊर्जास्तर पर संक्रमण करता है, तब संबद्ध ऊर्जास्तरों के अंतर के बराबर ऊर्जा उत्सर्जित, या अवशोषित, होती है और उसकी आवृत्ति (frequency) तरंग संख्या के रूप में निम्न सूत्र से व्यक्त होती है :

= F- F = BJ (J + 1) - B J (J + 1)। कंपनजन्य ऊर्जा को G (v) = w से व्यक्त करते हैं, किंतु जब घूर्णन और कंपन साथ साथ होते हैं, जैसा वास्तव में पाया ही जाता है, तो G (v) = we - we xe +... से कंपनजन्य ऊर्जा का मान व्यक्त किया जाता है। इन सूत्रों में w या we किसी इलेक्ट्रॉनिक स्थित में अणु की मूल कंपनावृत्ति (fundamental frequency) है और v कंपन की क्वांटम संख्या है।

जब अणु को ऊष्मा या विद्युच्छक्ति देकर उत्तेजित किया जाता है, तब उसकी सभी प्रकार की ऊर्जास्थितियों में परिवर्तन होता है और विभिन्न स्थितियों में संक्रमण होने से पूरा स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है। घूर्णन की ऊर्जास्थितियों में संक्रमण होने से प्रत्येक बैंड की रेखाएँ बनती हैं, कंपनजन्य ऊर्जा स्थितियों से संक्रमण से बैंड समुदाय बनते हैं और जितने बैंड किन्हीं दो नियत इलेक्ट्रॉनिक स्थितियों के संक्रमण से संबद्ध होते हैं, वे सब मिलकर एक बैंडप्रणाली बनाते हैं।

अणु का भार ज्यों ज्यों बढ़ता जाता है, घूर्णन संरचना (rotational structure) क्लिष्ट होती जाती है। तीन या चार परमाणुवाले अणुओं की घूर्णन संरचना अत्यंत क्लिष्ट होती है। वैज्ञानिकों ने बहुत से ऐसे अणुओं की घूर्णन संरचना का अध्ययन करने में सफलता प्राप्त की है। बहुपरमाणुक अणुओं की घूर्णन संरचना का अध्ययन अब तक संभव नहीं हो सका है। बेंज़ीन अणु में १२ परमाणु होते हैं। हाल ही में इसकी घूर्णन संरचना का अध्ययन सन् १९५३ में स्टायशेफ़ (B. Stoicheff) द्वारा किया गया है। बहुपरमाणुक अणुओं के कंपनजन्य स्पेक्ट्रम प्राप्त करना भी प्राय: असुविधाजनक होता है, क्योंकि अधिक ऊर्जा पाने पर वे टूटकर परमाणुओं और छोटे अणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं। बहुधा रमन प्रभाव द्वारा और इंफारेड तथा अवशोषण स्पेक्ट्रम लेकर इनका अध्ययन किया जाता है।

बैंड स्पेक्ट्रम के अध्ययन से अणुओं की सीमांत इलेक्ट्रॉनिक संरचना (periferal electronic structure) का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। रेखाओं की दीप्ति तथा अन्य गुणों के आधार पर स्रोत का ताप ज्ञात किया जा सकता है। बैंड स्पेक्ट्रम के अध्ययन से समस्थानिक परमाणुओं का पता लगाना सुविधाजनक होता है। बैंड स्पेक्ट्रम की घूर्णन संरचना के अध्ययन ने न्यूक्लियस का चक्रण भी ज्ञात किया जा सकता है। (श्रवणकुमार तिवारी)