बेला (Violin) तारवाले वाद्ययंत्रों, जैसे सारंगी, सितार आदि, में बेला सबसे छोटा, परंतु ऊँचे तारत्ववाला वाद्ययंत्र है। इसमें एक विशेष प्रकार की अनुनाद मंजूषा होती है, जिसके ऊपर से भिन्न भिन्न मोटाई के चार तार एक सेतु से होकर जाते हैं। तारों का तनाव घूमती हुई खूंटियों द्वारा ठीक किया जाता है।
प्रत्येक तार से जो मूल स्वर उत्पन्न होता है, उसकी आवृत्ति ४३५ होती है। दूसरे प्रकार के स्वरों को पैदा कने के लिए तारों की लंबाई को घटाया बढ़ाया जाता है। एक धनु को तारों पर दाऐं बाऐं घुमाकर तारों में कंपन उत्पन्न किया जाता है। इस धनु के दोनों सिरे घोड़े के बालों से बँधे होते हैं। इस वाद्ययंत्र की विशेषता यह है कि इसमें केवल चार ही तार होते हैं।
बेला के नियम बहुत ही जटिल है। उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि वे ध्वनि के परिचित सिद्धांतों पर आधारित हैं। तारों की लंबाई और तनाव में परिवर्तन कर उनसे भिन्न भिन्न प्रकार के स्वर उत्पन्न किए जाते हैं। वादक की कुशलता इस बात में है कि वह आवश्यकतानुसार तारों की लंबाई और तनाव में परिवर्तन कर सके।
तारों से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे अनुनाद मंजूषा प्रबल बनाती है। तारों द्वारा उत्पन्न जटिल कंपनों को अनुनाद मंजूषा किस प्रकार अभिवर्धित करेगी, यह कई बातों पर निर्भर है। इनमें से कुछ प्रमुख बातें ये हैं : भागों में अनुनाद मंजूषा के पत्तरों की विभिन्न मोटाई, मंजूषा के भीतरी भाग का आकार और विस्तार, उन ध्वनि रध्रों का आकार और विस्तार, उन ध्वनि रध्रों का आकार और विस्तार जिनमें से होकर मंजूषा की भीतरी वायु के कंपन बाहरी वायु तक पहुँचते हैं। जिस लकड़ी से बेला का निर्माण होता है, उसके लचीलेपन और अन्य गुणों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।
बेला के स्वरों की विशेषता का रहस्य इस बात में है कि उसे मूल स्वरों में बहुत से संनादी स्वर मिश्रित होते हैं। बेला के तार बहुत हल्के होते हैं, जिसके कारण बहुत ऊँचे तारत्ववाले संनादी स्वर उत्पन्न होते हैं। इन संनादी स्वरों के कारण ध्वनि उजागर हो उठती है। परंतु ताँत (gut) का न्यून लचीलापन इन संनादी स्वरों को शीघ्र ही मंद कर देता है, जिससे अंततोगत्वा ध्वनि की रुक्षता समाप्त हो जाती है।
बेला के आरंभिक निर्माताओ
में इटली के इन व्यक्तियों के नाम उल्लेखनीय हैं : गास्पर
दा सालो गियोवानी, पाओलो मेगिनी, ग्योविटा रोदियानो।
निकोलस अनिती (सन् १५९६-१६८४) ने इसमें कुछ सुधार किए और
उसके शिष्य एंटिनियो (सन् १६४४-१७३७) ने इसे वह रूप दिया
जो आज तक चला आ रहा है। स्ट्रादिवेरी ने बेला का जो नमूना
बनाया था और जो १७वीं शताब्दी से अब तक चला आ रहा है, उसका
विवरण इस प्रकार है : लंबाई १४ इंच, ऊपर की चौड़ाई
श्इंच,
नीचे की चौड़ाई
श्इंच,
ऊपर की ऊँचाई
श्इंच,
नीचे की ऊंचाई
श्इंच।
इसके अलावा जेकोब स्टेनर ने एक बेला बनाया, जिसकी नकल इंग्लैंड और जर्मनी ने १८वीं सदी तक की। उसके बाद इसका प्रयोग क्रीमोना बेला के आने से कम हो गया।
बेला बनानेवाले अंग्रेजों को तीन समुदायों में विभक्त किया जा सकता है : (१) प्राचीन बेला बनानेवाले, जिनमें रेमान, फेफीलोन, वारक, नॉरमन आदि हैं; (२) स्टेनर के अनुयायी, जिनमें स्मिथ, वैरट, क्रॉसहिल, नोरेस आदि हैं और (३) क्रीमोना बेला बनानेवाले, जिनमें वैट्स, कार्टर, पार्कर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। बेला बनानेवाले फ्रांसीसियों में निकोलस, स्लिवेस्त्री आदि का उल्लेख किया जा सकता है। (कृष्णानंद दुबे)