बेलन (Cylinder) प्राचीन काल में ऐसा विचार था कि यदि एक आयत इस प्रकार घुमाया जाए कि एक भुजा स्थिर रहे, तो दूसरी समांतर भुजा एक पृष्ठ बनाती है जिसे बेलन कहते हैं। स्थिर भुजा को अक्ष कहते हैं और दूसरी समांतर भुजा को जनक रेखा। ऐसे बेलन को लंबवृत्तीय बेलन कहते हैं।

चित्र १.

मान लीजिए कखगघ कोई आयत है (चित्र १), जो रेखा कख पर घुमाया जाता है, तो तो कख अक्ष है और घग जनक रेखा है। भुजा ख ग एक वृत्त बनाती है जिसका केंद्र ख है। वृत्त गच ज तथा घछझ बेलन के सिरे हैं। जब घूमनेवाली भुजासिरों पर लंब न हो, तब इसका एक व्यापक रूप प्राप्त होता है (देखें चित्र २)। सिरे इस स्थिति में भी वृत्त बनाते हैं। जिनके केंद्र अक्ष पर हैं। इन सिरों की लांबिक दूरी बेलन की ऊँचाई कहलाती है। यदि लंबवृत्तीय बेलन (चित्र १) को किसी ऐसे समतल से काटा जाए जो अक्ष पर लंब न हो, तो परिच्छेद दीर्घवृत्त होता है।

चित्र २.

सिरों पर इसका प्रक्षेप वृत्त होता हे और यदि बेलन (चित्र २) को किसी ऐसे समतल से काटा जाए जो अक्ष पर लंब हो, तो परिच्छेद दीर्घवृत्त होता है। यदि बेलन की त्रिज्या त्र (र) हो और ऊँचाई ऊ(h) हो, तो लंब वृत्तीय बेलन के सिरों का क्षेत्रफल p त्र (p r2) होता है। इसके पृष्ठ का क्षेत्रफल २p त्र ऊ(p r h) तथा इसका घनफल p त्र ऊ(p r2 h) होता है।

गणितज्ञ आर्कमिडीज़ ने, जिसका जन्म ईसा से २२५ वर्ष पूर्व हुआ था, यह ज्ञात किया था कि एक ही आधार और समान ऊँचाई के अर्धगोले, शंकु और बेलन के घनफल में १ : २ : ३ का अनुपात होता है। परंतु आजकल बेलन का अर्थ बहुत व्यापक हो गया है। यदि एक रेखा का एक सिरा किसी वक्र पर चले और रेखा स्वयं अपनी मूल स्थिति के समांतर रहे तो इस प्रकार बना हुआ पृष्ठ बेलन कहलाता है (चित्र ३.)।

चित्र ३.

रेखा को जनक रेखा और वक्र को नियता कहते हैं। ऐसा पृष्ठ यदि किसी जनक रेखा के सहारे काट दिया जाए, तो वह एक समतल पर बिना मोड़े तोड़े फैलाया जा सकता है। इसीलिए ऐसे पृष्ठ को विकासनीय पृष्ठ कहते हैं। यदि नियता एक वृत्त हो, तो पृष्ठ को वृत्तीय बेलन कहते हैं। जैसा ऊपर बताया जा चुका है, यदि नियता एक दीर्घवृत्त है, तो पृष्ठ को दीर्घवृत्तीय बेलन कहते हैं। यदि नियता परवलय या अतिपरवलय हो, तो बेलन को परवलयिक या अतिपरवलयिक बेलन कहते हैं। यदि जनक रेखा सिरे के समतल पर लंब हो तो इसे लंब बेलन कहते हैं। दोनों सिरे समान और समरूपत: वक्र होते हैं।

बेलन की एक दूसरी परिभाषा भी दी जा सकती है। यदि कोई नियता अपने समांतर किसी रेखा के सहारे चले, तो इस प्रकार बना हुआ पृष्ठ बेलन कहलाता है। यदि नियता सकेंद्र है, तो जिस रेखा में केंद्र चलता है वह बेलन का अक्ष कहलाती है। यदि अक्ष में होकर जानेवाला कोई समतल खींचे, तो यह बेलन का समांतर चतुर्भुज में काटता है। यदि बेलन लंबवृत्तीय है, जा चतुर्भुज आयत हो जाता है।

यदि किसी शंकु का शीर्ष अनंत पर स्थित हो, तो शंकु बेलन हो जाता है। इस विचार से बहुत से शांकवों के सीमांत रूप ज्ञात हो सकते हैं।

लंबवृत्तीय बेलन का प्रयोग आजकल प्राथमिक मोटरों, पंपों, इत्यादि बहुत सी मशीनों में किया जाता है, जिनके विषय में जानकारी बहुत सी मशीन संबंधी पुस्तकों से प्राप्त हो सकती है। (स्व. झम्मनलाल शर्मा)