बेर्नूलि (Bernoulli) स्विट्ज़रलैंड के बाजेल स्थान का प्रसिद्ध परिवार था, जिसमें एक शताब्दी में आठ गणितज्ञों ने जन्म लिया। इनमें से निम्नलिखित तीन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं :

(१)�� जेम्स बेर्नूलि (James Bernoulli, १६५४-१७०५ ई.) - बाजेल में १६८७ ई. से मृत्युपर्यंत गणित के प्रोफेसर थे। लाइब्निट्ज़कलन की सहायता से इन्होंने समकोणाक्ष एवं कोणीय नियामकों में वक्रतीय त्रिज्या का सूत्र और तुल्यकालिक वक्रों पर लाइब्निट्ज़ के साध्य का हल दिया। इन्होंने रज्जुवक्र बेर्नूली के लैमनिस्केट एवं लघुगणकीय सर्पिल पर अनेक पेचीदे साध्यों का आविष्कार किया। १६९६ ई. में इन्होंने प्रसिद्ध 'तुल्य परिमिति के साध्यों' की उपस्थापना की और १७०१ ई. में स्वयं ही उसका हल भी उपस्थित किया। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ 'आर्स कॉन्जेक्ताँदी' (Ars Conjectandi) इनकी मृत्यु के आठ वर्ष पश्चात् चार खंडों में, प्रकाशित हुआ। इसके प्रथम खंड में टीका सहित हाइगेन्स का संभाव्यता पर लेख, द्वितीय खंड में संचय एवं क्रमसंचय, तृतीय खंड में संभाव्यता के साध्यों के हल और चतुर्थ खंड में प्रसिद्ध बेर्नूली प्रमेय हैं।

(२)�� जॉन बेर्नूलि (John Bernoulli, १६६७-१७४८ ई.) - दस वर्ष तक ग्रोनिंगन में, और फिर अपने भाई जेम्स की मृत्यु के उपरांत बाजेल में, गणित के प्रोफेसर रहे। गणित में चलराशि कलन, द्रुततमावपात रेखा और परिणम्य घनत्व की एक तह से गुजरनेवाली किरण के पथ से इस रेखा का एक उत्तम संबंध स्थापित किया। इसे अतिरिक्त इन्होंने अनिर्णीत रूप श्का मान ज्ञात करने की विधि का अन्वेषण किया, त्रिकोणमिति के साध्यों को वैश्लेषिक ढंग से हल करने का प्रयत्न किया और प्रक्षेपपथ का अध्ययन किया। इनको पैरिस की विज्ञान अकादमी ने अनेक पारितोषिक प्रदान किए थे।

(३)�� डैनियल बेर्नूलि (Daniel Bernoulli, १७००-१७८२ ई.) - जॉन बेर्नूलि के पुत्र थे। ये आरंभ में पीटर्सबर्ग अकादमी में गणित के, तदुपरांत बाजेल विश्वविद्यालय में प्रयोगात्मक तत्वज्ञान के, प्रोफेसर रहे। इनका गणित संबंधी प्रथम प्रकाशन रिकेटी द्वारा प्रस्तावित अवकल समीकरण का हल था। इन्होंने द्रवगतिविज्ञान पर महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। उत्क्रम त्रिकोणमितीय फलन के लिए इन्होंने ही सर्वप्रथम एक उचित संकेत का प्रयोग किया। संभाव्यता पर इनके अन्वेषण महत्वपूर्ण हैं। इसमें इन्होंने चलन कलन का भी प्रयोग किया। यह नैतिक प्रत्याशा (Moral expectation) के सिद्धांत के जन्मदाता थे, जिसके द्वारा इन्होंने तथाकथित 'पीर्ट्सवर्ग समस्या' का हल दिया। परंतु आजकल इस सिद्धांत का प्रयोग कोई नहीं करता। पैरिस की विज्ञान अकादमी ने इन्हें दस पारितोषिक प्रदान किए थे। (रामकुमार)