बेरिलियम (Beryllium) आवर्त सारणी के द्वितीय समूह का पहला तत्व है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक पाया गया है, जिसकी द्रव्यमान संख्या नौ है, परंतु द्रव्यमान संख्या सात, आठ और १० वाले अस्थिर समस्थानिक कृत्रिम विधियों से निर्मित हुए हैं।

१७९८ ई. में सर्वप्रथम वोक्लैं (Vauquellin) ने बेरिलियम को बेरिल अयस्क से पृथक् किया, जिसके आधार पर इसका नाम बेरिलियम रखा गया। इसके विलेय लवण मीठे स्वाद के होते हैं। इस कारण इसका नाम ग्लुसिनम (Glucinum) भी रखा गया था, परंतु अब यह नाम लुप्त हो गया है। १८२८ ई. में सर्वप्रथम वलर (Wohler) ने बेरिलियम धातु तैयार की।

पन्ना और बेरूज (aquamarine) बेरिलियम के यौगिक हैं, जो पुरातन काल से रत्न के रूप में अपनाए गए हैं। अनेकों ऐसे खनिज पदार्थ ज्ञात हैं, जिनमें बेरिलियम संयुक्त अवस्था में रहता है, परंतु केवल बेरिल, बेल३सि१८ (Be3 Al2 Si6 O18), ही एक अयस्क है, जिससे बेरिलियम निकाला जाता है। अन्य स्त्रोतों से बेरिलियम प्राप्त करना बहुत मँहगा पड़ता है। भारत में ऐसा बेरिल, जो बेरिलियम निर्माण के लिए उत्तम सिद्ध हुआ है, अजमेर, बिहार राज्य तथा मद्रास राज्य में मिलता है।

निर्माण - सर्वप्रथम बेरिल अयस्क को कैल्सियम, अथवा सोडियम कार्बोनेट, के साथ संगलित करते हैं। तत्पश्चात् सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उच्च ताप पर गर्म जल में घुलाते हैं। विलयन से ऐल्यूमिनियम को अमोनियम एलम (alum) के रूप में क्रिस्टलीकृत किया जाता है। बचे विलयन से बेरिलियम सल्फेट के क्रिस्टल प्राप्त हो जाएँगे, जिसे जलाने पर बेरिलियम ऑक्साइड प्राप्त होगा।

बेरिलियम ऑक्साइड के कार्बन द्वारा विद्युत् भट्ठी मे अपचयन से बेरिलियम धातु प्राप्त हो सकती है, परंतु विशुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए बेरिलियम क्लोराइड, बेल क्लो (BeCl2) और सोडियम क्लोराइड, सोक्लो (NaCl) के संगलित मिश्रण का वैद्युत अपघटन (electrolysis) करते हैं।

गुणधर्म - बेरिलियम हल्की, चमकदार, श्वेत रंग की कठोर धातु है। इसमें इस्पात की सी प्रत्यास्थता है। इसमें एक्स विकिरण (X-rays) ऐल्यूमिनियम से १७ गुना अधिक प्रवेश कर सकता है। बेरिलियम धातु में ध्वनि का वेग इस्पात से ढाई गुना अधिक (१२,६०० मीटर प्रति सेकंड) है। इसके कुछ भौतिक स्थिरांक निम्नांकित हैं :

संकेत बे (Be), परमाणुसंख्या ४, परमाणुभार ९.०१२ गलनांक १,२८०सें., क्वथनांक २,७७० सें. घनत्व १.८६ ग्राम प्रति घ.सेंमी., परमाणुव्यास २.२५ ऐंग्स्ट्रॉम (A), विद्युत प्रतिरोधकता ५.८८ माइक्रोओम सेंमी. तथा आयनीकरण विभव ९.३२० इवो.।

रासायनिक अभिक्रियाओं में बेरिलियम की समानता मैग्नीशियम तथा ऐल्यूमिनियम दोनों से है। इस कारण इस समानता को विकर्ण सममिति (diagonal symmetry) कहते हैं। बेरिलियम में मैग्नीशियम से कम, परंतु ऐल्युमिनियम से अधिक, धातुगुण हैं। ऐल्यूमिनियम की भाँति बेरिलियम को वायु में गर्म करने पर, उसकी सतह पर आक्साइड की पतली परत जम जाती है, जो ऑक्सीजन के अधिक आक्रमण को रोकती है। बेरिलिय धातु अम्लों द्वारा घुल जाती है, परंतु उसके लवण शीघ्र जलविश्लेषित होते हैं। बेरिलियम धातु हैलाजन तत्वों से उच्च ताप पर अभिक्रिया कर, यौगिक बनाती है। १,२००सें. जाप पर बेरिलियम कार्बन और नाइट्रोजन से अभिक्रिया करता है।

यौगिक - बैरिलियम दो संयोजकता के यौगिक बनाता है। बेरिलियम की ऑक्सीजन से अभिक्रिया द्वारा बेरिलियम ऑक्साइड ब्रेऔ (BeO) बनेगा। यह उच्च गलनांक (२,५५०सें.) का उष्मसह (refractory) पदार्थ है। इसका अपचयन करना कठिन कार्य है। इन गुणों के कारण इसका उपयोग प्रकाश उद्योग में प्रदीप्त दीपकों (fluorescent lamps) के बनाने में होता रहा है, परंतु विषैला होने के कारण इसका उपयोग कम हो गया है। बेरिलियम ऑक्साइड की मूषाएँ बनाई जाती हैं, जो मजबूत, निष्क्रिय और उच्च ताप को सहन कर सकती हैं। बेरिलियम ऑक्साइड अम्लों में घुलकर लवण बनाता है। बेरिलियम लवण में अमोनिया मिलाने पर, बेरिलियम हाईड्रॉक्साइड, वे (औ हा) [Be (OH)2] अवक्षेपित होता है, जो बेरिलियम लवण के विलयन में घुल सकता है। इस कारण हाइड्रॉक्साइड को अवक्षेपित करने के लिए अधिक मात्रा में अमोनिया की आवश्यकता पड़ती है। बेरिलियम ऑक्साइड तथा हाइड्रॉक्साइड ये दोनों ही सांद्र क्षार विलयन में विलेय होकर, सोबे (Na2BeO2), रूप के यौगिक बनाते हैं। इसको उबालने या तनु करन पर, फिर हाइड्रॉक्साइड अवक्षेपित हो जाता है।

बेरिलियम नाइट्रेट, बे (ना औ) [(BeNO3)2], और सल्फेट, बेगंऔ. ४हाऔ (Be SO4. 4H2O), बेरिलियम ऑक्साइड पर नाइट्रिक अम्ल या सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया से प्राप्त होते हैं।

बेरिलियम लवण विलयन में अमोनियम कार्बोनेट, (ना हा) का औ [(NH4)2 CO3], डालने पर बेरिलियम कार्बोनेट का अवक्षेप प्राप्त होगा, जो अधिक अमोनियम कार्बोनेट मिश्रित करने पर अमोनियम बैरिलियम का द्विगुण (double) कार्बोनेट बनेगा जो विलेय है।

बैरिलियम, कार्बन की उच्च ताप पर अभिक्रिया द्वारा, बेरिलियम कार्बाइड, बेल२का (Be2C), बनाता है, जो जलवाष्प से मंद गति से अभिकृत होता है। गरम बेरिलियम धातु पर हाइड्रोजन क्लोराइड, हाक्सो (HCl), प्रवाहित करन पर बेरिलियम क्लोराइड बनता है। बेरिलियम के अन्य हैलाइड भी ज्ञात हैं।

बैरिलियम के अनेक कार्बनिक यौगिक बनाए गए हैं। ऐसीटिक अम्ल की बेरिलियम हाइड्रॉक्साइड पर अभिक्रिया से क्षारीय बेरिलियम ऐसीटेट, (का हा. काऔऔ) बेल४[(CH3 COO)6 Be4O] बनता है, जो जल में अविलेय है, परंतु अनेक कार्बनिक विलायक (ऐल्कोहॉल, ईथर, क्लोरोफार्म, ऐसीटिक अम्ल) में विलेय है। इसी प्रकार प्रोपियोनेट, ब्यूटिरेट भी निर्मित हुए हैं।

बेरिलियम यौगिक विषैला पदार्थ है। इसका वाष्प तथा चूर्ण की धूल आँख, कान, नाक आदि की झिल्ली को और श्वासनलिका को हानि पहुँचाती हैं। इस कारण अनेक उद्योगों में इनका उपयोग बंद कर दिया गया है।

उपयोग - एक्स-रे उपकरणों में बेरिलियम के गवाक्ष (window) प्रयुक्त हो रहे हैं।

बेरिलियम अनेक मिश्रधातुओं में काम आता है। जंगरोधी इस्पात में १ प्रतिशत बेरिलियम की सूक्ष्म मात्रा मिलाने पर, उससे बना हुआ स्प्रिंग अत्यंत कठोर हो जाता है। बेरिलियम-ताम्र मिश्रधातु का स्प्रिंग बनाने में बहुत उपयोग हो रहा है। यह स्प्रिंग संक्षारण प्रतिरोधी तथा टिकाऊ होता है। अन्य धातुओं में बेरिलियम की सूक्ष्म मात्रा (०.००५ प्रतिशत) मिलाने पर, वे ऑक्सीकरण प्रतिरोधी (oxidation resistant) हो जाते हैं।

परमाणु ऊर्जा में बेरिलियम का उपयोग बढ़ रहा है। त्वरक यंत्रों अथवा साइक्लोट्रॉन में बेरिलियम लक्ष्य (target) द्वारा न्यूट्रॉन दंड (beams) उत्पन्न किए जाते हैं। बेरिलियम न्यूट्रॉन द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उसका वेग कम कर सकता है। इस कारण इसका उपयोग परमाणु रिऐक्टर (atomic reactor) में न्यूट्रॉन मंदकन (moderation) के लिए होना प्रारंभ हो गया है। पहले इस कार्य के लिए ग्रैफाइट का उपयोग होता था, परंतु कम परमाणु भार के कारण बेरिलियम इस कार्य में ग्रैफाइट से अधिक क्षमतावान् है। ऐसा अनुमान है कि भविष्य में परमाणु ऊर्जा कार्यों में बेरिलियम का उपयोग और भी बढ़ेगा। (र.चं.क.)

विरल धातु, बेरिलियम मुख्यत: आग्नेय शिलाओं में प्रांरभिक सहखनिज (accessory) की भाँति प्राप्त होती है। प्रकृति में लगभग २७ बेरिलियममय खनिज हैं, किंतु आर्थिक स्तर पर केवल बेरिल ही ऐसा अयस्क है जिसमें सर्वाधिक मात्रा में बेरिलियम ऑक्साइड की मात्रा (१४%) होती है। इसमें भी केवल ५% बेरिलियम होता है। भारतीय बेरिल खनिज में ऑक्साइड का अनुपात ११ से १३% होता है।

भारत में बेरिल का वितरण - भारत में बेरिल विपुल मात्रा में वितरित है। यह कैंब्रियन पूर्व युग के ग्रैनाइटों (granites) तथा नाइसों (gneisses) की पेग्मेटाइटी पिंडों (pegmatitic bodies) में प्राप्त होता है। अधिक उत्पादक बेरिल निक्षेप बिहार के हजारीबाग, कोडरमा तथा गया क्षेत्रों में, दक्षिणी और पूर्वी राजस्थान के अनेक भागों में तथा मद्रास के कोयंपुत्तुर और आंध्र के नेल्लूरु जिले में मिलते हैं। विशालतम स्तंभी (columnar) बेरिल क्रिस्टलों (crystals) का, जिनकी ऊँचाई १५ से २० फुट, चौड़ाई ४ फुट तथा भार १० से २० टन तक होता है, खनन राजस्थान की कुछ खानों से किया गया है। हरे एवं नीले वर्ण का बेरिल सर्वाधिक सामान्य है, यद्यपि यह अनेक अन्य वर्णों में भी प्राप्य है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व भारत में बेरिल का उत्पादन अत्यंत अल्प था, किंतु १९४९ ई. के पश्चात् कुछ वर्षों तक इसका उत्पादन २,००० से ३,००० टन तक रहा और आजकल यह १,००० और २००० टनों के बीच घटता बढ़ता रहता है।

योजनाएँ और भविष्य - एक विशाल प्रारंभिक तथा प्रायोगिक संयंत्र, जिससे आणविक शुद्धता का बेरिलियम ऑक्साइड प्राप्त किया जा सके तथा इसका ईटों के आकार का बनाया जा सके, स्थापित किया जा रहा है। इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग १५ टन बेरिलियम ऑक्साइड की ईटें होगी।

भू-भौतिकीय एवं भू-रासायनिक परीक्षणों द्वारा ही पृथ्वी के गर्त में छिपी हुई पेग्मेटाइट शिलाओं की वास्तविक स्थिति ज्ञात हो सकती है। वर्तमान समय में भी बेरिल के भंडार प्रचुर एवं पर्याप्त हैं। सौभाग्य से भारत में बेरिल का खनन अभ्रक-उत्पादन से बँधा हुआ है, अत: जब तक भारत, अभ्रक-उत्पादन में विश्व का अग्रगण्य देश रहेगा तब तब बेरिल उत्पादन भी सह उद्योग की भाँति उन्नत ही रहेगा। (विद्यासागर दुबे)