बेकन, फ्रांसिस (१५६१-१६२६) अंग्रेज राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और लेखक। रानी एलिज़बेथ के राज्य में उसके परिवार का बड़ा प्रभाव था। कैंब्रिज और ग्रेज़ इन में शिक्षा प्राप्त की। १५७७ में वह फ्रांस स्थित अंग्रेजी दूतावास में नियुक्त हुआ, किंतु पिता सर निकोलस बेकन की मृत्यु के पश्चात् १५७९ में वापस लौट आया। उसने वकालत का पेशा अपनाने के लिए कानून का अध्ययन किया। प्रारंभ से ही उसकी रुचि सक्रिय राजनीतिक जीवन में थी। १५८४ में वह ब्रिटिश लोकसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ। संसद की, जिसमें वह १६१४ तक रहा, कार्यप्रणाली में उसका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। समय समय पर वह महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रश्नों पर एलिज़बेथ को निष्पक्ष सम्मतियाँ देता रहा। कहते हैं, अगर उसकी सम्मतियाँ उस समय मान ली गई होतीं तो बाद में शाही और संसदीय अधिकारों के बीच होनेवाले विवाद उठे ही न होते। सब कुछ होते हुए भी उसकी योग्यता का ठीक ठीक मूल्यांकन नहीं हुआ। लार्ड बर्ले ने उसे अपने पुत्र के मार्ग में बाधक मानकर सदा उसका विरोध किया। रानी एलिज़ाबेथ ने भी उसका समर्थन नहीं किया क्योंकि उसने शाही आवश्यकता के लिए संसदीय धनानुदान का विरोध किया था। १५९२ के लगभग वह अपने भाई एंथोनी के साथ अर्ल ऑव एसेक्स का राजनीतिक सलाहकार नियुक्त हुआ। किंतु १६०१ में, जब एसेक्स ने लंदन की जनता को विद्रोह के लिए भड़काया तो बेकन ने रानी के वकील की हैसियत से एसेक्स को राजद्रोह के अपराध में दंड दिलाया।
वह एलिजाबेथ के राज्य में किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं रहा, किंतु जेम्स प्रथम के राजा होने पर उसका भाग्य चमका। वह १६०७ में सॉलिसिटर जनरल, १६१३ में अटार्नी जनरल और १६१८ में लार्ड चांसलर नियुक्त हुआ। १६०३ में नाइट और १६१८ में बेरन वेरुलम की उपाधियों से विभूषित किया गया। उसके बाद बेकन ने पतन के दिन देखे। उस पर घूसखोरी आर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया। उसने आरोप स्वीकार करते हुए यह दलील दी कि उपहारों ने उसके निर्णयों को कभी प्रभावित नहीं किया। बेकन अपने पद से हटा दिया गया। जीवन के शेष दिन उसने संन्यास में बिताए।
राजनीतिक और कानूनी मामलों में व्यस्त रहते हुए भी वह विज्ञान और दर्शन में गंभीर रुचि रखता था। उसकी साहित्यिक कृतियों में उसकी व्यावहारिक मनोवृत्ति दिखाई देती है। 'एसेज' उसके २८ वर्षों की अवधि में लिखे गए ५८ निबंधों का संग्रह है। संक्षेप, सूत्रात्मकता और चित्ताकर्षक रूपक उसकी शैली की विशेषताएँ थीं। 'डि सैपिएंशिया वेटेरम' (१६०९) द विज़डम ऑव् द एंशिएंट्स (१६१९), और हिस्ट्री ऑव् द रेन ऑव् हेनरी सेवेन्थ (१६२२) नामक उसकी कृतियाँ ऐतिहासिक और राजनीतिक विषयों में सूक्ष्म अनुसंधान बुद्धि और विश्लेषण प्रतिभा का परिचय देती है। दार्शनिक कृतियों में 'इंस्टोरेशियो मैग्ना' (Instauratio Magna) और 'नोवम आर्गैनम' (Novum Organum) उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त 'दि एडवांसमेंट आव लर्निग' और 'डि आगमैंटिस साइंशिएरम' ज्ञानमीमांसा पर विस्तृत रचनाएँ है।
वस्तुत: उसने वैज्ञानिक या दार्शनिक सिद्धांतों में कोई बहुत मौलिक योगदान नहीं किया। उसका महत्व वैज्ञानिक अन्वेषण में विशेष दिशा की अपेक्षा सहज प्रभाव ग्रहण करने पर बल देने में है। उसने जीवन में केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग किया - यह परीक्षण करने के लिए कि शीत, वस्तु या जीवन के ्ह्रास को कहाँ तक रोकता है एक कुक्कुटशावक को बर्फ में बंद कर दिया। परीक्षण का पूरा प्रभाव बेकन नहीं देख पाया, और इसी के दौरान शीत के प्रभाव से उसकी मृत्यु हो गई।