बेंज़ीन (Benzene) हाइड्रोकार्बन है तथा इसका सूत्र का६हा६ (C6H6) है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी (fractional) आसवन से बेंज़ीन बड़ी मात्रा में तैयार होता है। प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से फैराडे ने १८२५ ई. में सर्वप्रथम इसे प्राप्त किया था। मिटशरले ने १८३४ ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम बेंज़ीन रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल १८४५ ई. में हॉफमैन (Hoffmann) ने लगाया था। जर्मनी में बेंज़ीन को बेंज़ोल कहते हैं। बेंज़ीन कार्बन और हाइड्रोजन का एक यौगिक, हाइड्रोकार्बन, है। यह वर्णहीन और प्रबल अपवर्तक द्रव है। इसका क्वथनांक ८०�सें., ठोस बनने का ताप ५.५�सें. और घनत्व ०�सें. पर ०.८९९ है। इसकी गंध ऐरोमैटिक और स्वाद विशिष्ट होता है। जल में यह बड़ा अल्प विलेय, ऐल्कोहॉल में अधिक विलेय तथा ईथर और कार्बन डाइसल्फाइड में सब अनुपातों में विलेय है। विलायक के रूप में रबर, गोंद, वस, गंधक और रेज़िन के घुलाने में प्रचुरता से प्रयुक्त होता है। जलते समय इससे धुंआँ निकलता है। रसायनत: यह सक्रिय होता है। क्लोरीन से दो प्रकार का यौगिक बनता है : एक योगशील और दूसरा प्रतिस्थापित यौगिक। सल्फ्यूरिक अम्ल से बेंज़ीन सल्फोनिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल से नाइट्रो बेंज़ीन और ओज़ोन से बेंज़ीन ट्राइओज़ोनाइड, का६हा६ (ओ३)३, [C6H6 (O3)3] बनता है। अवकरण से बेंज़ीन साइक्लो हेक्सेन बनता है।
विलायक के अतिरिक्त, बेंज़ीन बड़ी मात्रा में ऐनिलीन, कृत्रिम प्रक्षालक, कृमिनाशक, डी.डी.टी., फ़िनोल (जिससे प्लास्टिक बनते हैं), इत्यादि के निर्माण में प्रयुक्त होता है। मोटर इंजन के लिए पेट्रोल में कुछ बेंज़ीन मिलाने से पेट्रोल की उत्कृष्टता बढ़ जाती है।
संरचना - बेंज़ीन में छह कार्बन परमाणु और छह हाइड्रोजन परमाणु हैं, अत: इसका अणुसूत्र का६हा६ (C6H6) है। केकूले ने १८६५ ई. में पहले पहल सिद्ध किया कि इसके छह कार्बन परमाणु एक वलय के रूप में विद्यमान हैं, जिसको बेंज़ीन वलय की संज्ञा दी गई है। प्रत्येक कार्बन परमाणु एक बंध से हाइड्रोजन से और दो से अन्य
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बेंज़ीन
निकटवर्ती कार्बन परमाणुओं से संबद्ध रहता है। कार्बन का चौथा बंध युग्म बंध के रूप में उपस्थित माना गया है। ऐसे संरचनासूत्र से बेंज़ोन के गुणों की व्याख्या बड़ी सरलता से हो जाती है। ऊपर दिया हुआ यह सूत्र प्राय: सर्वमान्य है।
बेंज़ीन की प्राप्ति के लिए अलकतरे को इस्पात के भभकों में आसुत करते हैं। जो आसुत ९०�सें. और १७०�सें. के बीच प्राप्त होता हे, उसे हल्का तेल कहते हैं। पानी से हलका होने के कारण यह हल्का कहा है। हल्के तेल को पहले सोडियम हाइड्रॉक्साइड के जलीय विलयन जाता से धोकर अम्लों को निकाल लेते हैं। फिर सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल से धोकर क्षारों को निकाल लेते हैं। इसके बाद प्रभाजी स्तंभ की सहायता से प्रभाजन कर बेंज़ीन को पृथक् करते हैं। यही व्यापार का बेंज़ीन है। इसमें अब भी कुछ अपद्रव्य, थायोफीन और अन्य हाइड्रोकार्बन मिले रहते हैं। सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचार के बाद उत्पाद के क्रिस्टलीकरण से शुद्ध बेंज़ीन प्राप्त होता है। (सत्येंद्र वर्मा)