बृहस्पति ॠग्वेद में बृहस्पति का अनेक जगह उल्लेख मिलता है। ये एक तपस्वी ऋषि थे। इन्हें तीक्ष्णशृंग भी कहा गया है। धनुष बाण और सोने का परशु इनके हथियार थे और ताम्र रंग के घोड़े इनके रथ में जोते जाते थे।

बृहस्पति का अत्यंत पराक्रमी बताया जाता है। इंद्र को पराजित कर इन्होंने उनसे गायों का छुड़ाया था। युद्ध में अजय होने के कारण योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते थे। ये अत्यंत परोपकारी थे जो शुद्धाचारणवाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते थे। इन्हें गृहपुरोहित भी कहा गया है, इनके बिना यज्ञयाग सफल नहीं होते।

वेदात्तर साहित्य में बृहस्पति को देवताओं का पुरोहित माना गया है। ये अंगिरा ऋषि की सुरूपा नाम की पत्नी से पैदा हुए थे। तारा और शुभा इनकी दो पत्नियाँ थीं। एक बार सोम (चंद्रमा) तारा को उठा ले गया। इस पर बृहस्पति और सोम में युद्ध ठन गया। अंत में ब्रह्मा के हस्तक्षेप करने पर सोम ने बृहस्पति की पत्नी को लौटाया। तारा ने बुध को जन्म दिया जो चंद्रवंशी राजाओं के पूर्वज कहलाये।

महाभारत के अनुसार बृहस्पति के संवर्त और उतथ्य नाम के दो भाई थे। संवर्त के साथ बृहस्पति का हमेशा झगड़ा रहता था। पद्मपुराण के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में जब देव पराजित हो गए और दानव देवों को कष्ट देने लगे तो बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारणकर दानवों का मर्दन किया और नास्तिक मत का प्रचार कर उन्हें धर्मभ्रष्ट किया।

बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे। आजकल ८० श्लोक प्रमाण उनकी एक स्मृति उपलब्ध है।

सं.ग्रं. - सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव, प्राचीन चरित्रकोश (मराठी)। (जगदीश चंद्र जैन)

२. शुक्र और कभी कभी मंगल को छोड़कर, सबसे कांतिमय ग्रह है। सौर परिवार में सूर्य को छोड़ यह अन्य सभी सदस्यों से बड़ा है। पृथ्वी के आकार के १,४१० गोले बृहस्पति में समा सकते हैं। सौर परिवार के अन्य सभी सदस्यों की अपेक्षा इसका द्रव्यमान अधिक है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी से २१८ गुना है। इसका विषुव व्यास ८८,७०० मील और ध्रुवीय व्यास ८२,९०० मील है। ध्रुवों पर चपटा होने के कारण यह दीर्घवृत्ताकार है। यह ११.८६ वर्ष में एक बार सूर्य की परिक्रमा करता है। दूरदर्शक से देखने पर बृहस्पति का पृष्ठ विषुवत् के समांतर, कांतिमय और काले बादलों जैसे कटिबंध से अंकित जान पड़ता है। इस कटिबंध का आकार और अक्षांश परिवर्तनशील है। इन तथ्यों से प्रकट है कि हम बृहस्पति के ठोस पृष्ठ नहीं देख पाते। हमें मेघ दिखाई पड़ते हैं और ये ग्रह के ०.४१ काशानुपात (albedo) के उत्तरदायी हैं। दूरदर्शक प्रेक्षण से प्रकट होता है कि बृहस्पति के चिह्न मंडलक (disc) के आड़े चलते हैं जिससे ज्ञात होता है कि बृहस्पति का वृहद विश्व अपनी धुरी पर घूम रहा है। यह नौ घंटे ५० मिनट में असाधारण वेग से घूर्णन करता है, जिससे उसका वायुमंडल अत्यंत प्रक्षुब्ध हो जाता है। घूर्णन के वेग में अक्षांश के साथ परिवर्तन होता है। लगभग २० दक्षिण अक्षांश पर लाल रंग का एक विशाल अंडाकार चिप्पा बृहस्पति के पृष्ठ का असाधारण लक्षण है। यह चिप्पा २०,००० मील लंबा और ६,००० मील चौड़ा है। चिप्पा स्थिर नहीं है। यह पृष्ठ पर घूर्णन करता है, किंतु इसका आकार लगभग एक ही रहता है। स्पेक्ट्रम अध्ययनों से ग्रह के ऊपरी वायुमंडल में हाइड्रोजन, अमोनिया, हीलियम और मिथेन के बहुत बड़े परिमाण में अस्तित्व का संकेत प्राप्त होता है। बृहस्पति के ज्ञात उपग्रहों की संख्या १२ है। १६१० ई. में गैलिलिओ ने बृहस्पति के चार चंद्रों का पता लगाया था। इनमें से कुछ उपग्रह बुधग्रह के बराबर हैं। १२ उपग्रहों में से चार बृहस्पति के चारों ओर विपरीत दिशा में चलते हैं। संभव है, ये बृहस्पति के प्रभाव में क्षुद्र बंदीकृत ग्रह हों। (मंजुला मणिभाई पटेल)