बूरहावे, हेरमान (Boerhaave, Hermann, सन् १६६८-१७३८), डच चिकित्साविद, का जन्म लाइडन (Leiden) के निकट वूरहूट (Voorhout) में हुआ था। लाइडन में शरीरक्रिया विज्ञान और हार्डरविक में आपने चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। लाइडन के विश्वविद्यालय में आप वनस्पति तथा चिकित्सा शास्त्रों के प्राध्यापक, विश्वविद्यालय के रेक्टर तथा व्यावहारिक चिकित्सा एवं रसायन विज्ञान के प्रोफेसर रहे।

१७वीं शताब्दी तक चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई केवल पुस्तकों तक ही सीमित रहती थी। रोगी से उसका कोई संबंध नहीं रहता था। सन् १६३६ में लाइडन में प्रथम बार रोगी को शैय्या के पास खड़े होकर अध्ययन का प्रारंभ हुआ तथा बूरहावे का इस प्रकार के प्रथम महान् अध्यापक होने का श्रेय प्राप्त है। इन्होंने इस क्षेत्र में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त की कि चीन के एक अधिकारी द्वारा लिखा पत्र, जिसपर पते के स्थान पर केवल 'सेवा में यशस्वी बूरहार्वे, यूरोप के चिकित्सक' लिखा था, भेजा गया और वह सीधे बूरहावे के पास जा पहुँचा। उनके शिष्यों में पीटर महान् भी थे। चिकित्सा शास्त्र के अध्यापन के आधुनिक तरीकों का आरंभ बूरहावे से हुआ।

ये 'इंस्टिट्यूशोंस मेडिसि' (सन् १७०८), एफोरेज़्मी डी काग्नासेंडिस एट क्यूरंडिस (सन् १७०९), जिसपर जेरार्ड फॉन स्वीटेन ने पाँच खंडों में टीका लिखी थी, तथा अन्य महत्व की पुस्तकों के प्रणेता भी थे। (भानश्कुांर मेहता)