बुसिंगो, ज़्हाँ बैप्तिस्त (जोजेफ दिउदोने) (सन् १८०२-१८८७) फ्रांसीसी कृषि वैज्ञानिक का जन्म पैरिस में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के पश्चात् इन्होंने सेंट एटीन स्थित माइनिंग स्कूल में वैज्ञानिक एवं रासायनिक दक्षता प्राप्त की। २० वर्ष की ही उम्र में इन्हें दक्षिणी अमरीका में उत्खनन इंजीनियर का पद प्राप्त हुआ, जहाँ १० वर्षों से अधिक समय तक रहे और भूविज्ञान, खनिज विज्ञान आदि पर अनेक शोध निबंध लिखे। साथ ही कृषि संबंधी अनेक निरीक्षण भी करते रहे। फ्रांस लौटने पर कुछ समय तक लीआैं में रसायन शिक्षक रहे। अपनी पत्नी के कारण ऐल्सेस के पास बेशेलब्रान में भूमि संपत्ति के प्रति रुचि बढ़ी, तो इस भूमि पर इन्होंने क्षेत्र परीक्षण प्रारंभ कर दिए। ये प्रयोग बीजों के उगते समय उनकी संरचना, पौधों द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्वांगीकरण, फसलों के हेरफेर, उर्वरकों के उपयोग, बाड़े की खाद की सुरक्षा, दुग्ध के उत्पादन एवं उसकी संरचना पर चारे के प्रभाव तथा कृषि संबंधी अन्य व्यावहारिक विषयों से संबद्ध थे। इन क्षेत्रप्रयोगों के साथ साथ इन्होंने नियंत्रित दशा में प्रयोगशाला में भी ऐसे ही प्रयोग किए और प्राप्त परिणामों को सन् १८३६ के पश्चात् लगातार ''एनाल्स द शिमी ए द फिज़ीक'' (Annales de chimic et de physique) में प्रकाशित करते रहे। बुसिंगों के इन परिणामों के प्रकाशन के साथ ही कृषिरसायन के क्षेत्र में नवीन युग का सूत्रपात हुआ। यही कारण है कि सर जॉन रसेल ने (सन् १९३६) इन्हें ऐसी विधि का जनक कहा है जिसके द्वारा नवीन कृषिविज्ञान का प्रारंभ हुआ।
इस पुस्तक में इन्होंने मिट्टियों, पौधों, उर्वरकों, फसलों के हेरफेर, पशुओं के चारों, पशुपालन, जलवायु, वायुमंडल इत्यादि के संबंध में विस्तार से वर्णन किया है। इन्होंने ही पहले पहल प्रयोग करके सिद्ध किया कि द्विदलीय फसलों के बोने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है तथा गेहूँ, जई सदृश फसलों के बोने से नाइट्रोजन की मात्रा की वृद्धि नहीं होती।
इन्होंने जानवरों को दिए गए चारे तथा मलमूत्र के विश्लेषणों द्वारा स्वांगीकृत नाइट्रोजन का पता लगाया और इस प्रकार बचत तालिका (balance sheet) प्रणाली को जन्म दिया। कंपोस्ट बनाने के संबंध में भी इनके विचार अत्यंत सारगर्भित थे। नाइट्रोजन ही कंपोस्ट का प्राण है, अत: उसे पानी में घुलने से बचाने का पूरा प्रयत्न होना चाहिए।
सन् १८४८-१८५२ तक राजनीतिक जीवन बिताने के पश्चात्, ये पुन: अध्यापन एवं शोधकार्य में लग गए। इन शोधों के विवरण सन् १८६० से १८८४ के बीच प्रकाशित ''ऐग्रोनोमी, शिमी ऐग्रिकोल एट फ़िजिऑलोजी'' (Agronomie, chimie Agricole et physiologie) के सात खंडों में प्रकाशित हुए। (शिवगोपाल मिश्र)