बुल्लेशाह, सैयद, मीर, (१६८०-१७५३ ई.) पंजाब के सर्वप्रसिद्ध सूफी फकीर और कवि। जन्मस्थान पंडोक, इलाका लाहौर। पिता का नाम मुहम्मद दरवेश। कसूर (जिला लाहौर) में रहकर सूफी औलियाओं से शिक्षा ग्रहण की और वहीं अपनी साधना पूरी की। लाहौर आकर सूफी वली हजरत शाह इनायत को अपना गुरु (पीर) बनाया। गुरु मौन व्रत में विश्वास रखते और ये हाल में आकर मंसूर की तरह चिल्लाते, गाते और नाचते थे। इस पर गुरु ने इन्हें निकाल दिया। गुरु के विरह में इन्होंने अनेक मर्मस्पर्शी काफियाँ लिखीं। इनकी श्रद्धा, दृढ़ता, तल्लीनता और भावुकता देखकर गुरु ने इन्हें पुन: अंगीकार कर लिया। पीर की मृत्यु के उपरांत ये ३० वर्ष गद्दी पर रहे। इनायत शाह की गुरुपरंपरा शाह मुहम्मद गौस ग्वालियरी से जा मिलती है। ये कादिरी शत्तारी संप्रदाय के नेता थे।
बुल्लेशाह की गणना पंजाबी साहित्य के महान् कवियों में होती है। इन्हांने काफियाँ, सीहर्फियाँ, चौबैतियाँ, गंढ़ाँ, दोहड़े, अठवारा बारहमाह आदि अनेक विधाओं में काव्यरचना की। इनकी सर्वाधिक ख्याति काफियों के कारण है जो पंजाब के शिक्षित, अशिक्षित, सिक्ख, हिंदू, मुसलमान सभी वर्गों में प्रचलित हैं। काफियाँ कबीर और नानक ने भी लिखी हैं और बाद के कवियों ने अनुकरण किया; किंतु बुल्लेशाह की काफियों की सी संगीतात्मकता, विषय और शैली की स्पष्टता, प्रखरता और प्रभावोत्पादकता, उनका घरेलू वातावरण, भाषा का ठेठपन और चुटीलापन अन्यत्र दुर्लभ है। इनमें वैराग्य, प्रेम, तौहीद (एकेश्वरवाद), तरीकत (उपासना), मार्फत (सिद्धि) और मानबतावाद का स्वर स्पष्ट है। इनकी अन्य कृतियों में भाषा का हिंदवी रूप भी प्राप्त होता है। बुल्लेशाह बहुत पढ़े लिखे नहीं जान पड़ते। उनका कहना है कि 'अलिफ' से अल्लाह मिल जाता है; और उसके आगे चलने की आवश्यकता ही कहाँ रह जाती है। बुल्लेशा की कृतियाँ विशेषतया ढाढी चारणों और कव्वालों के पास है। कुछ संग्रह प्रकाशित हुए हैं, पर वे अधूरे हैं।
सं.ग्रं. - अनवर रोहतकी : कानूने इश्क, लाहौर; मुफ्ती सरवर लाहौरी : खजीनातुल आसफिया; बुल्लेशाह, पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर, १९३०। (हरदेव बाहरी)