बुर्हानुद्दीन ग़्राीब अर्थात् शैख मुहम्मद बिन नूरुद्दीन मुहम्मद, शैख जलालुद्दीन अहमद नुमानी हाँसवी के भांजे और शैख निजामुद्दीन औलिया के पट्ट शिष्यों और खलीफाओं में थे। ६५४/१२५६ में हाँसी में जन्म हुआ। प्रारंभिक वर्ष हाँसी में बिताए, तत्पश्चात् शिक्षा प्राप्त करने के लिए दिल्ली गए और यहाँ फ़िक़ह, उसूल और अरबी का अध्ययन किया। तदुपरांत शैख निजामुद्दीन औलिया से दीक्षित हुए और उनके जीवनकाल तक यहीं रहे। उन्होंने उस समय देवगिरि के लिए प्रस्थान किया जब १३२७ ई. में मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली के सूफियों, उलिमा और अन्य व्यक्तियों को अपनी नवीन राजधानी दौलताबाद में जाकर बसने और इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए बलपूर्वक भेजा था। इस समय वह बूढ़े हो चले थे। देवगिरि में वह जीवन के अंतिम समय तक रहे। इसमें संदेश नहीं कि उन्होंने दकन में इस्लाम धर्म और इस्लामी संस्कृति के प्रसार में प्रशंसनीय कार्य किया और भारी संख्या में ऐसे शिष्य बनाए जिन्होंने उनके स्वर्गवास के उपरांत इस कार्य को आगे बढ़ाया। हम्माद बिन इमाद काशानी ने उनके 'मल्फ़ूज़ात' को अहसनुल अक़वाल के नाम से संगृहीत किया था। इसके अध्ययन से मालूम होता है कि वह अपने शिष्यों के आध्यात्मिक शिक्षण के लिए कितने प्रयत्नशील थे। समा (सूफी संगीत) के प्रति उनकी अत्यधिक अभिरुचि थी तथा विशेष रूप से संगीत सुनते और आनंदमग्न होकर नाचते भी थे। उनके संगीत के सभासद 'बुर्हानी' कहलाते थे। बुर्हानपुर नगर उन्हीं के नाम पर बसाया गया था क्योंकि उन्होंने नसीरुद्दीन फ़ारूक़ी (८०१-८४१/१३९९-१४३७) को सिंहासनारूढ़ होने का आशीर्वाद दिया था। इस वंश के शासक उनमें बड़ी आस्था रखते थे और उनकी समाधि से जागीर लगा दी थी। वार्षिक उत्सव के समय दूर दूर से आस्थावान् दर्शनार्थी आते थे। अब इस अवसर पर वहाँ मेला लगता है। उनकी समाधि के घेरे में सम्राट् औरंगजेब और निज़ामुलमुल्क आसफ़जाह प्रथम की भी क़ब्रें हैं। दारा शिकोह भी उनकी समाधि पर गया था। ११ सफ़र ७३५/८ सितंबर, १३३७ अथवा ७४१/१३४०-४१ में उनकी मृत्यु हुई।

सं.ग्रं. - मुहम्मद किर्मानी सेरुल औलिया (दिल्ली) २७९-२८२; अब्दुल हक़ मुरुद्दिस देहलवी : अख्बारुल अखियार (उर्दू अनुवाद, कराँची, १९६३) १७३-१७५; दारा शिकोह : सफ़ीनतुल औलिया (उर्दू अनुवाद, कराँची, १९६१) पृ. १३६; मौलवी गुलाम सर्वर: खज़ीनतुल अस्फ़िया (नवलकिशोर) १,३४६-३२८; मुहम्मद क़ासिम हिन्दू शाह फ़रिश्ता : तारीखें फ़रिश्ता (मूल ग्रंथ) (नवल किशोर) (मक़ाला शशुभ) २७९; मक़ाला दुआज़्दहुम, ४००-४०१; मुहम्मद मौसी मंदवी : गुलजारे अश्रार (उर्दू अनुवाद, आगरा; १३२६) ९०; शैख मुहम्मद इक्राम आबे कौसर (कराँची १९५२) ४१२-४१४; खलीक़ अहमद निज़ामी : तारीखें मशायखें चिश्त (दिल्ली, १९५३), २०४-२०६; एनसाइक्लोपीडिया आफ इस्लाम (न्यू एडीशन, लंदन, १९६०) १, १३२८-१३२९। (मुहम्मद उमर)