बुंदेलखंड बुंदेला राजपूत शासकों द्वारा शासित भारत का वह भूभाग जिसके उत्तर में यमुना, पश्चिम और उत्तर में चंबल नदी, दक्षिण में नर्मदा नदी तथा जबलपुर जिले का कुछ भाग तथा पूर्व में बघेलखंड, मिर्जापुर, विंध्याचल पर्वतमाला है। इसमें सागर, दमोह, जबलपुर, जिले का कुछ भाग, हमीरपुर, जालौन, झाँसी, बांदा, आदि जिले तथा स्वतंत्र भारत के पहले के देशी राज्य पन्ना, छतरपुर, ओरछा, दतिया, समथर, अजयगढ़, बिजावर, चरखारी, विहट, सरीला, आलीपुरा, गरौली आदि शामिल थे। यह क्षेत्र अधिकांश में पहाड़ी तथा अधित्यकामय है। बेतवा, धसान, वीरमा, केन, वागई आदि यहाँ की मुख्य नदियाँ हैं। गेहूँ, चना, मूँग आदि की अच्छी उपज यहाँ होती है और हीरे, लोहे, ताँबे, कोयले आदि की खानें भी यत्रतत्र बिखरी हुई हैं। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग २१,५०० वर्ग मील तथा आबादी १९०१ में ३७,६४,००० थी। देशी राज्यों वाला अनुभाग अब चरखारी, पन्ना, छतरपुर, दतिया आदि नवस्थापित जिलों अथवा आस पास के अन्य जिलों में बाँट दिया गया है।

इतिहास - कहते हैं, पहले यहाँ गोंड राजाओं का राज्य था। बाद में चंदेल वंशीय राजपूतों ने उन्हें परास्त कर अपनी सत्ता स्थापित की। यह भी प्रवाद है कि इसके कुछ भाग (संभवत: उत्तर एवं पश्चिम में स्थित) पर गहरवार राजपूतों का शासन था। इनके बाद परिहारों और फिर चंदेलों का राज्य हुआ। बुंदेलखंड भूखंड का प्रथम शासक कतिपय अभिलेखों के अनुसार, नानिक या नन्नुक कहा जाता है। वह संभवत: नवीं शती के आरंभ में हुआ। चौथा राजा राहिल (८९०-९१०) था इसने राज्य की सीमा का विस्तार किया और महोबा में राहिल्यसागर का निर्माण कराया। आरंभ के चंदेल राजाओं में धंग (९५०-९९) अधिक शक्तिशाली था। उसके लाहौर के जयपाल को गजनी पर आक्रमण करने में (९७८ ई.) सहायता दी थी। उसके उत्तराधिकारी गंडा (नंदाराय ९९९-१०२५ ई.) ने भी गजनवी के विरुद्ध अभियान में जयपाल को सहायता प्रदान की थी। कीर्तिबर्मा (१०४९-११००) ग्यारहवाँ राजा था, जिसके पुत्र सल्लक्षण चेदिनरेश कर्ण को पराजित किया। उसने महोबा में कीरतसागर का और अजयगढ़ में कई भवनों का निर्माण कराया। मदनवर्मा का और अजयगढ़ में कई भवनों का निर्माण कराया। मदनवर्मा (११३०-६५) १५वाँ शासक था जिसने चंदेलों की राज्यसीमा बढ़ाई, चेदि राज्य पर पुन: सत्ता स्थापित की और गुजरात को भी जीता। इसके बाद परमर्दिदेव या परमाल (११६५-१२०३) राजा हुआ जिसे ११८२ ई. में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज के हाथ शिकस्त खानी पड़ी। कालिंजर, खजराहो, महोबा, अजयगढ़ आदि में चंदेलों के प्रसिद्ध गढ़ था। अभिलेखों में इस भूभाग का नाम जीजाकमुक्ति भी मिलता है, जिसका लघु रूप जिझोति है।

बुंदेला राजपूत - बुंदेला राजा अपने को गहरबार वंशी पंचम के वंशज मानते हैं जिसने देवी के सामने आत्मबलि देने की चेष्टा की थी। शुरू में उनकी सत्ता संभवत: मऊ के आस पास स्थापित हुई, फिर उन्होंने कालिंजर, कालपी आदि पर भी अधिकार कर लिया। १५०७ ई. के लगभग रुद्रप्रताप शासनारूढ़ हुआ। १५४५ में शेरशाह सूर ने कालिंजर पर आक्रमण किया और वहीं उसका प्राणांत हुआ। अंतिम चंदेल राजा कीरत सिंह इसलाम शाह द्वारा मार डाला गया। १५६९ में मुगल सम्राट् अकबर ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया। औरछा नरेश वीरसिंह देव ने शाहजादा सलीम के कहने से अबुल फजल की हत्या के षड्यंत्र में भाग लिया जिससे उसे अकबर का कोपभाजन बनना पड़ा। महोबा नरेश चंपत राय ने विद्रोह में वीरसिंह देव का साथ दिया। चंपत राय के पुत्र छत्रसाल ने शाही सेनाओं को कई बार परास्त किया और राज्य की सीमा बहुत बढ़ा ली। १७२३ में मुहम्मद खाँ बंगश का आक्रमण होने पर छत्रसाल को मराठों से मदद माँगनी पड़ी। मुहम्मद खाँ की पराजय हुई और जीत के उपलक्ष्य में छत्रसाल ने झाँसी तथा जालौन का क्षेत्र पेशवा को उपहार में दे दिया। सन् १७७६ में मराठों से युद्ध होने पर अंग्रेजी सेनाएँ पहली बार बुंदेलखंड में घुसीं पर उन्होंने किसी भाग पर अधिकार नहीं किया। बाद में युद्ध द्वारा, संधियों द्वारा तथा स्वत्व समाप्ति (लैप्स) की नीति द्वारा अंग्रेजों ने क्रमश: अनेक स्थानों पर अधिकार कर लिया और बचे हुए राज्यों को भी संरक्षण तथा ब्रिटिश प्रभुत्व स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया गया। देश के स्वतंत्र होने पर यहाँ की रियासतों का विलयन मध्यप्रदेश या उत्तर प्रदेश में कर दिया गया।