बीरबल साहनी (सन् १८९१-१९४९) अंतरराष्ट्रीय ख्याति के भारतीय वनस्पतिविज्ञानविद् थे। इनका जन्म १४ नवंबर, १८९ ई. को शाहपुर जिले के भेड़ा गाँव में हुआ था। इनके पिता रुचिराम साहनी रसायन के प्राध्यापक थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में हुई, जहाँ से स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए ये केंब्रिज गए और अन्वेषण कार्य भी वहाँ शुरू किया। इनको १९१९ ई. में लंदन विश्वविद्यालय से और १९२९ ई. में केंब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि मिली थी। भारत लौट आने पर ये पहले हिंदू विश्व विद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। १९३९ ई. में ये रॉयल सोसायटी ऑव लंदन के सदस्य (एफ.आर.एस.) चुने गए और कई वर्षों तक सायंस कांग्रेस और नेशनल ऐकेडेमी ऑव सायंसेज़ के अध्यक्ष रहे। इनके अनुसंधान फॉसिल पौधों पर सबसे अधिक हैं। इन्होंने एक फॉसिल 'पेंटोज़ाइली' की खोज की, जो राजमहल पहाड़ियों में मिला था। इसका दूसरा नमूना अभी तक कहीं नहीं मिला है। हिंदू विश्वविद्यालय से डा. साहनी लाहौर विश्वविद्यालय गए, जहाँ से लखनऊ में आकर इन्होंने २० वर्ष तक अध्यापन और अन्वेषण कार्य किया। ये अनेक विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सदस्य थे। लखनऊ में डा. साहनी ने पैलिओबोटैनिक इंस्टिट््यटू की स्थापना की, जिसका उद्घाटन पं. जवाहरलाल ने १९४९ ई. के अप्रैल में किया था। पैलिओबोटैनिक इंस्टिट््यटू के उद्घाटन के बाद शीघ्र ही साहनी महोदय की मृत्यु हो गई। इन्होंने वनस्पति विज्ञान पर पुस्तकें लिखी हैं और इनके अनेक प्रबंध संसार के भिन्न भिन्न वैज्ञानिक जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं। डा. साहनी केवल वैज्ञानिक ही नहीं थे, वरन् चित्रकला और संगीत के भी प्रेमी थे। भारतीय सायंस कांग्रेस ने इनके सम्मान में 'बीरबल साहनी पदक' की स्थापना की है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को दिया जाता है। इनके छात्रों ने अनेक नए पौधों का नाम साहनी के नाम पर रखकर इनके नाम को अमर बनाए रखने का प्रयत्न किया है। (फूलदेव सहाय वर्मा)