बीमा विज्ञान (Insurance and Actuarial Science) केवल बीमे का साधारण ज्ञान नहीं है, अपितु यह गणित, रसायन आदि अन्य विज्ञानों की तरह ही एक विशेष प्रकार का विज्ञान है, जिसकी उन्नति विशेष रूप से बीमे के संबंध में हुई है। इसका समुचित उपयोग जीवन बीमा में ही होता है, यद्यपि कुछ न कुछ उपयोग अन्य स्थलों में भी हो सकता है।

इस विज्ञान की आधार भित्ति विशेषकर प्रायिकता (Probability) तथा सांख्यिकीय विज्ञान (Statistical science) है। गणित की उन शाखाओं को जिनका उपयोग इस विज्ञान में होता है, बीमा गणित (Acturial mathematics) कहा जा सकता है। इसी प्रकार सांख्यिकी की उस शाखा को जिसका उपयोग इस विज्ञान में होता है बीमा सांख्यिकी (Actuarial statistics) कह सकते हैं।

भूत और वर्तमान काल के आँकड़ों के आधार पर बीमाविज्ञ हमें बतलाता है कि प्रति सेकंड एक मनुष्य मर जाता है। इस प्रकार हर समय ही कोई न कोई मर रहा होता है। तब भी हम अपने दैनिक कार्यों में कभी इस विचार को पास फटकने नहीं देते। यदि हम हर समय का अधिकांश समय यही सोचते रहें कि कहीं अगले क्षण हमें काल का ग्रास न बनना पड़े, तो जीवन दूभर एवं निराशामय हो जाएगा। ऐसा क्यों है? इसलिए कि हम सभी में कुछ न कुछ 'बीमाविज्ञ' का अंश विद्यमान है। एक दिन में शायद २५ हजार मनुष्यों में से एक के मरने की बारी आती हो, अत: स्वाभाविक है हर एक अपने को २४,९९९ में समझता है। इस हिसाब से कह सकते हैं कि एक मनुष्य को अगले चौबीस घंटों में मृत्यु की संभावना २५ हजार में एक, या १/२५०००=०.००००४, बार है और चौबीस घंटे जीवित रहने की संभावना ०.९९९९६ बार है। दोनों मिलकर निश्चित ही पूरा एक होना चाहिए, क्योंकि जीवित रहने या न रहने के सिवा तीसरा कोई मार्ग नहीं है।

उपर्युक्त गणना में सब मनुष्यों को एकसाँ मृत्युशील माना गया है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। किस प्रकार के मनुष्यों को एक जैसा माना जाए, और किस प्रकार के मनुष्यों को इनसे भिन्न और कितना भिन्न माना जाए, ये सब जटिल प्रश्न हैं और इनको हल करना बीमाविज्ञ का काम है। और तो और, जब कोई व्यक्ति जीवनवृत्ति (life annuity) के लिए आवेदनपत्र देता है, तो उसकी मर्त्यता कम मानी जाती है, और जब वही व्यक्ति जीवन बीमे का प्रस्ताव रखता है तब बहुधा उसकी डाक्टरी परीक्षा की जाती है और फिर भी 'मर्त्यता' कुछ अधिक मानी जाती है।

मान लीजिए सनई एक २० वर्षीय स्वस्थ युवक है। उसके व्यवसाय, वंशपरंपरा, रहन सहन आदि सब का विचार कर बीमा विज्ञ ने यह निश्चित किया कि एक वर्ष में सनई जैसे एक हजार व्यक्तियों में से दो के मरने की आशा है, तो हम कहेंगे कि मर्त्यता की वार्षिक दर हजार में दो, अथवा ०.००२, है।

बीमाविज्ञ आँकड़ों के आधार पर एक श्रेणी विशेष या समूह के लिए भविष्यवाणी करते हैं। उन्हें किसी व्यक्तिविशेष में कोई रुचि नहीं होती। वे मरनेवाले व्यक्तियों के परिवार की सहायता करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने बीमा योजनाएँ बनाई हैं। वे अर्जक युवकों को कहते हैं, ''हमारी किसी जीवन बीमा योजना में बीमा करा लो। असमय में मरनेवालों का भला होगा, जीनेवालों का भी भला होगा।'' जीवन बीमा तथा अन्य प्रकार के बीमों में यह बड़ा अंतर है कि अन्य बीमों में जिस वस्तु का बीमा होता है उसके वष्ट होने पर, मिलनेवाले बीमाधन से वही वस्तु फिर प्राप्त हो सकती है। उसमें बीमाकृत वस्तु का मूल्य होता है, किंतु जीवन का मूल्य नहीं होता। जीवन का बीमा गारंटी के रूप में नहीं हो सकता। जीवन लौटाया नहीं जा सकता। बीमाधन से अर्जक व्यक्ति की मृत्यु से उसके आश्रितों को होनेवाली आर्थिक हानि को दूर या कम किया जा सकता है। यही काम प्रत्येक जीवन बीमा योजना करती है। सनई चाहे बीमा कराने के तीन महीने बाद ही क्यों न मर जाए, उसके आश्रितों को पूरा बीमा धन मिलेगा।

बीमाविज्ञ जानते हैं कि थोड़े से लोगों का बीमा करने से भविष्यवाणी के अंकों और वास्तविक अंकों में अंतर अधिक हो सकता है, पर बड़े पैमाने पर बीमा करने से भविष्यवाणी अधिक सही उतरती है। इसलिए किसी भी बीमायोग्य व्यक्ति को बिना बीमा कराए छोड़ना नहीं चाहिए। साथ ही बीमाविज्ञ यह भी जानते हैं कि अस्वस्थ मनुष्य अधिक सुगमता से बीमा कराने को तैयार हो जाते हैं तथा इस प्रकार के ही लोग सुगमता से बड़ी रकमों का बीमा प्रस्ताव करते हैं। अतएव बड़ी धनराशि तथा अधिक उम्रवाले लोगों के बीमा प्रस्तावों के संबंध में वे विशेष सावधानी रखते हैं तथा उचित डाक्टरी परीक्षा की सलाह भी देते हैं।

बड़े पैमाने पर बीमे का काम करने से बीमाकृत जनसमूह से बहुत बड़ी धनराशि आती है। भारतीय जीवन बीमा निगम (L.I.C.I) की इस प्रकार लगभग ३५ लाख रुपए प्रतिदिन की आय है। इतनी बड़ी धनराशि से अच्छा सूद कमाया जा सकता है। जीवन बीमा निगम के पास लगभग सात अरब रुपयों की धनराशि है, जिससे ब्याज आदि के रूप में लगभग ३० करोड़ रुपये वार्षिक प्राप्त होते हैं। इतनी बड़ी धनराशि से राष्ट्र की बड़ी सेवा होती है। इस धनराशि का एक बड़ा भाग, सरकारों के पास सूद पर जमा किया जाता है, जिसका पंचवर्षीय योजनाओं को कार्यान्वित करने में उपयोग हाता है। साथ ही उपर्युक्त धनराशि से निजी व्यवसायों को भी पूँजी प्राप्त होती है। बड़े पैमाने पर काम करने में बड़ी मेहनत और बड़े संगठन की भी आवश्यकता है। इसके प्रबंध में बड़ा व्यय भी होता है। जीवन बीमा निगम का वार्षिक व्यय ३५ करोड़ रुपए हैं।

बीमाविज्ञ मर्त्यता, भविष्य में कमाया जानेवाला ब्याज और होनेवाली आय तथा बीमे के लिए आवश्यक संगठन पर होनेवाले व्यय आदि पर ध्यान रखते हैं। ये सभी पहले से ठीक ठीक निश्चित नहीं किए जा सकते, फिर भी भूत, वर्तमान और समाज की दशा आदि देखकर यथासंभव सही अनुमान लग जाता है। इन्हीं सब बातों पर विचारकर बीमा किस्त निर्धारित की जाती है।

किसी बीमा संस्था की अतुल धनराशि को ही देखकर उसकी आर्थिक दशा का अनुमान नहीं किया जा सकता। जो शुल्क बीमाकृत व्यक्तियों से प्राप्त होता रहता है, उसका अधिकांश उन्हें या उनके आश्रितों को कई वर्षों बाद बीमा धन के रूप में लौटाया जाता है। एक नई बीमा संस्था या तेजी से वृद्धि करनेवाली बीमा संस्था के पास आर्थिक दशा खराब होने पर भी अपार धन राशि होगी, अत: मूल्यांकन के रूप में बीमाविज्ञ का अंकुश संस्था पर न हो तो प्रबंधकों को बढ़ती हुई धनराशि को लुटा देने का प्रलोभन हो सकता है। इसलिए बीमाविज्ञ को समय समय पर जीवनांकिक मूल्यांकन करना पड़ता है।

बीमाविज्ञ बनने के लिए गणित की योग्यता बहुत अच्छी होनी चाहिए। बीमाविज्ञ को किसी भी प्रश्न पर विचार करते समय, उसे हर पक्ष से देखना होता है। उसे सांख्यिकी का अच्छा ज्ञान तथा व्यावहारिक अर्थशास्त्र का भी बहुत ज्ञान प्राप्त करना होता है। बीमा विज्ञान की शिक्षा एक उत्तम प्रकार की शिक्षा है और मनुष्य को किसी भी स्थल में योग्यतापूर्वक काम करने में सहायता देती है।

गणित का एक स्नातक लगभग छह वर्षों में यह योग्यता प्राप्त कर सकता है। कुछ पहले ही बीमा गणित का अध्ययन प्रारंभ करने से वह और जल्दी भी योग्यता प्राप्त कर सकता है। इस समय भारत में लगभग ९३० पूर्ण बीमाविज्ञ (F.I.A.) हैं। इस समय बीमाविज्ञा ६०० रु. से प्रारंभ कर २० वर्षों में १,६०० रु. मासिक वेतन पर पहुँचने की आशा कर सकते हैं। वे प्राय: तेजी से उन्नति कर शीघ्र ही सर्वोच्च पदों पर पहुँच सकते हैं। (ओंमप्रकाश )