बीमा बीमा शब्द फारसी से आया है। भावार्थ है, जिम्मेदारी लेना। डा. रघुवीर ने इसका अनुवाद किया है आगोप। उसका अंग्रेजी पर्याय 'इंश्योरेंस' (Insurance) है। बीमा एक प्रकार का अनुबंध - ठेका है। दो या अधिक व्यक्तियों में ऐसा समझौता जो कानूनी रूप से लागू किया जा सके, अनुबंध कहलाता है। बीमा अनुबंध का व्यापक अर्थ है कि बीमापत्र (पॉलिसी) में वर्णित घटना के घटित होने पर बीमा करनेवाला एक निश्चित धनराशि बीमा करानेवाले व्यक्ति को प्रदान करता है। बीमा करानेवाला जो सामयिक प्रव्याजि (बीमाकिस्त, प्रीमीयम) बीमा करनेवाले को देता रहता है वही इस अनुबंध का प्रतिदेय है।

जुआ खेलने या बाजी लगाने में भी दो व्यक्ति यही समझौमा करते हैं कि अमुक घटना घटित होने पर दूसरा व्यक्ति अमुक धनराशि अदा करेगा। लेकिन उसे बीमा नहीं कहा जा सकता क्योंकि स्वयं उस घटना के घटित होने या न होने में उस बाजी लगानेवाले का कोई स्वतंत्र हित नहीं होता। अस्तु, बीमा अनुबंध के लिए सामान्य अनुबंध के तत्वों के साथ साथ बीमाहित (Insurable Interest) का अस्तित्व आवश्यक है। उदाहरणार्थ क के जीवन का बीमा कोई अजनबी व्यक्ति ख नहीं करा सकता क्योंकि क के जीवित रहने या न रहने में ख का कोई स्वतंत्र हित नहीं है। लेकिन यदि ख क की पत्नी हो तो क के जीवित रहने में ख का हित निहित होने से ख द्वारा क के जीवन का बीमा करना नियमानुकूल होगा।

बीमा हित का अर्थ व्यापक है। पति पत्नी के जीवित रहने में एक दूसरे का हित तो स्पष्ट ही है। कर्जदार के जीवन में महाजन का हित भी वैसा ही मान्य है। इसी प्रकार संपत्ति बीमा के लिए बीमाहित उस संपत्ति के स्वामी को तो है ही। यह हित उस व्यक्ति को भी उपलब्ध हो जाता है, जिसे किसी अनुबंध के अंतर्गत कोई संपत्ति उपलब्ध होती है। यही नहीं, संपत्ति पर कब्जा मात्र होने से, भले ही वह कब्जा गैरकानूनी हो, बीमाहित उपलब्ध हो जाता है। उदाहरणार्थ अगर किसी दिवालिए के पास उसके कब्जे में कोई संपत्ति है, भले ही वह अधिकर स्वत: गैरकानूनी हो क्योंकि दिवाला निकलने के बाद उसकी सारी संपत्ति पर अधिकारी अभिहस्तांकिनी का अधिकार हो जाता है - किंतु उस संपत्ति का बीमा कराने के लिए उस दिवालिए को भी अधिकारी मान लिया जाता है। किसी अनुबंध द्वारा बीमा हित उत्पन्न होने का आधार उत्तरदायित्व अथवा हित दोनों हो सकते हैं। उदाहरणार्थ जब कोई व्यक्ति कोई मकान किराए पर लेता है तो उस मकान की हिफाजत का कोई उत्तरदायित्व उस पर नहीं होता लेकिन चूँकि उस अनुबंध से किराएदार को सुरक्षा की सुविधा उप्रलब्धि होती है अत: उस मकान की सुरक्षा के बीमे के लिए भी उस किराएदार को बीमा हित उपलब्ध हो जाता है।

बीमा अनुबंध के लिए बीमा हित की आवश्यकता उक्त अनुबंध की वैधता आँकने के लिए तो है ही, क्षतिपूर्ति के नियमों का पालन करने के लिए भी यह आवश्यक है। इस संबंध में अंग्रेजी विधि (नियम) और भारतीय विधि में कुछ अंतर है। अंग्रेजी विधि के अनुसार (समुद्र बीमा विधि १९०६ और जीवन बीमा विधि १७७४) आगोप्य हित का वस्तुत: अस्तित्व आवश्यक है। किंतु भारतीय विधि में ऐसा नहीं हैं। भारतीय अनुबंध विधि की धारा ३० के अनुसार चूँकि जुआ या शर्त बाजी आदि के समझौते अवैध करार दिए गए हैं इसलिए बीमाहित का अस्तित्व वस्तुत: न भी हो किंतु उसे उपलब्ध करने की उचित आधार पर आशा हो तो भी वह बीमा अनुबंध की वैधता के लिए पर्याप्त है।

बीमा अनुबंध का दूसरा प्रमुख आधार सद्भाव एवं निष्कपटता है। अत: यह आवश्यक है कि दोनों पक्ष (बीमा करनेवाला तथा बीमा करानेवाला) बीमा विषयक सभी तथ्य प्रगट कर दें। प्रगट कर देने का अर्थ यही है कि जान बूझकर कुछ छिपाया न जाए। यदि कोई सार तथ्य प्रगट न किया गया हो तो दूसरा पक्ष उक्त अनुबंध से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

इस संबंध में भी अंग्रेजी और भारतीय विधि नियमों में कुछ अंतर है। भारतीय बीमा विधि की धारा ४५ के अनुसार जीवन बीमा में अनजाने में, जानबूझकर तथा बेईमानी की इच्छा से यदि कोई गलतबयानी हो जाए तो वह क्षम्य मानी गई है। लेकिन सामान्य विधि (अंग्रेजी कानून) के अनुसार अनजाने में भी कोई गलतबयानी उस अनुबंध को प्रभावित कर देती है।

बीमा के अनुबंध दो प्रकार की श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं। वे अनुबंध जिनमें क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व होता है और वे जिनमें क्षतिपूर्ति का प्रश्न नहीं होता वरन् एक निश्चित धनराशि अदा करने का अनुबंध होता है। क्षतिपूर्ति विषयक बीमा सामुद्रीय (मैरीन इंश्योरेंस) भी हो सकता है और गैरसामुद्रीय भी। पहले का उदाहरण समुद्र द्वारा विदेशों को भेजे जानेवाले समान की सुरक्षा का बीमा है और दूसरे का उदाहरण अग्निभय अथवा मोटर का बीमा है। क्षतिपूर्ति के अनुबंध में केवल क्षति की पूर्ति की जाती है। यदि एक ही वस्तु का बीमा एक से अधिक स्थानों (बीमा संस्थानों) में है तो भी बीमा करानेवाले को क्षतिपूर्ति की ही धनराशि उपलब्ध होती है। हाँ, वे बीमा कंपनियाँ आपस में अदायगी की धनराशि का भाग निश्चित कर लेती हैं। क्षतिपूर्ति अनुबंध का यह सिद्धांत जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा पर लागू नहीं होता। अत: जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा पर लागू नहीं होता। अत: जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा कितनी भी धनराशि के लिए किया गया है बीमा करानेवाले को (यदि वह जीवित है) अथवा उसके मनोनीत व्यक्ति को वह पूरी रकम उपलब्ध होती है।

बीमा सिद्धांत का इतिहास समुद्र व्यापार के प्रारंभ से ही संबंधित है। अपने आदि रूप में क्षतिपूर्ति का बीमा सिद्धांत सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित था जिसे 'जेनरल एवेरेज' कहा जाता था। समुद्र में तूफान के समय अथवा अन्य खतरों के समय कभी कभी यह आवश्यक हो जाता था कि जहाज़ तथा अन्य सामान की रक्षा के लिए कुछ सामान समुद्र में फेंक कर ज़हाज को हल्का कर लिया जाए। इस प्रकार होनेवाली हानि उस व्यापार योजना में भाग लेनेवाले सभी हित आनुपातिक रूप से वहन कर लेते थे। यही सहकारिता का सिद्धांत क्रमश: बीमा के रूप में पनपा।

समुद्र बीमा अनुबंध में केवल एक खतरे के विरुद्ध बीमा नहीं किया जाता वरन् उसमें उन सभी खतरों का उल्लेख होता है जो समुद्रयात्रा में संभाव्य हैं। ध्यान रहे कि बीमा करने के उपयुक्त वही खतरे माने जाते हैं जो संभाव्य हैं। ऐसी यात्रा में जो हानियाँ निश्चित हैं, जैसे पशु आदि का बीमार हो जाना अथवा फल आदि का सड़ जाना इत्यादि उनका बीमा नहीं किया जाता।

समुद्र बीमा की एक शर्त यह भी है कि उक्त अनुबंध लिखित हो अर्थात् बीमापत्र उक्त बीमा अनुबंध का पूर्ण प्रमाण माना जाता हैं। समुद्र बीमा चूँकि क्षतिपूर्ति का अनुबंध है अत: बीमा करानेवाले के वक्तव्य वस्तुत: सत्य होने चाहिए। साथ ही यदि बीमा करानेवाले ने यह तथ्य प्रगट नहीं किया हैं कि पहले उक्त बीमा करने से किसी ने इनकार कर दिया था तो भी उसका उस अनुबंध की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अन्य प्रकार के बीमा संबंधों में पहले की अस्वीकृतियाँ छिपाना उस अनुबंध को अवैध करार देने के लिए पर्याप्त है।

क्षतिपूर्ति के बीमा तथा अन्य प्रकार के बीमा अनुबंध का एक और अंतर ध्यान देने योग्य है। जीवन बीमा में बीमा हित का अस्तित्व बीमा कराने के समय होना आवश्यक है, भले ही बीमें में वर्णित घटना घटित होने के समय वह हित रहे या न रहे। उदाहरणार्थ क अपनी पुत्री के विवाह के लिए यदि पंद्रह वर्ष की अवधि का बीमा करा रहा है तो 'क' की पुत्री का अस्तित्व बीमा कराने के समय आवश्यक है। उस १५ वर्ष की अवधि के पूर्व ही क की पुत्री की मृत्यु भले ही हो चुकी हो, किंतु वह धनराशि क को प्राप्त हो जाएगी। लेकिन अगर क की पुत्री का जन्म नहीं हुआ है तो उक्त प्रकार के बीमा अनुबंध के लिए आवश्यक बीमा हित वर्तमान न होने से क उक्त प्रकार का बीमा नहीं करा सकता। इसके विपरीत क्षतिपूर्ति के बीमा अनुबंध पर बीमा हित बीमा कराने के समय वर्तमान हो या न हो लेकिन उक्त क्षति घटित होने के समय धनराशि चाहनेवाले में उक्त बीमा हित व्यस्त होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए क ने अपने मकान का अग्नि बीमा कराया और उस बीमे के चालू रहते हुए वह मकान ब को बेच दिया। बिक्री होने के दूसरे दिन उस मकान में आग लग गई। ऐसी स्थिति में क द्वारा कराया गया बीमा यद्यपि चालू है, फिर भी उस मकान में क का बीमा हित न रहने के कारण उक्त बीमा अनुबंध के आधार पर क्षतिपूर्ति का दावा ब नहीं कर सकता है क्योंकि क्षति होने के समय मकान के साथ साथ मकान का बीमा हित भी ब में व्यक्त हो चुका है। इसी सिद्धांत का एक निष्कर्ष यह भी है कि जो वस्तु क्षतिग्रस्त हुई है उसका मूल्यांकन बीमा कराए जाने के समय के मूल्य पर नहीं वरन् क्षति घटित होने के समय के मूल्य के आधार पर ही किया जाता है।

अग्नि बीमा - जैसा कहा जा चुका है, अग्नि बीमा क्षतिपूर्ति का अनुबंध है अर्थात् जो धनराशि बीमापत्र पर अंकित है वह अवश्य मिल जाएगी, ऐसा नहीं वरन् उस सीमा तक क्षतिपूर्ति हो सकेगी। अग्नि बीमा अनुबंध यद्यपि किसी न किसी संपत्ति के संबंध में ही होता है, फिर भी वह व्यक्तिगत अनुबंध ही है अर्थात् उक्त संपत्ति के स्वामी अथवा उस संपत्ति में बीमा हित रखनेवाले व्यक्ति को उस अनुबंध द्वारा क्षतिपूर्ति से आश्वस्त किया जाता है। अत: अगर बीमा करानेवाले को किस संपत्ति में स्वामित्व अथवा अन्य प्रकार का कोई ऐसा अधिकार नहीं है जिससे उसे बीमा हित उपलब्ध होता हो तो वह बीमा करा लेने के बाद भी अनुबंध का लाभ नहीं उठा सकता।

संपत्ति का स्वामित्व बदलने पर यद्यपि बीमा हित हस्तांतरित हो जाता है किंतु बीमा अनुबंध अंग्रेजी कानून के अनुसार स्वत: हस्तांतरित नहीं होता। यदि संपत्ति विक्रय के साथ साथ तत्संबंधी अनुबंध लाभ भी हस्तांतरित करना अभिप्रेत हो तो भी बीमा करने वाले की अनुमति आवश्यक है। भारतीय विधि में ऐसा नहीं है। स्थिर संपत्ति हस्तांतरण विधि की धारा ४९ और १३३ के अनुसार कोई विपरीत अनुबंध के अभाव में संपत्ति प्राप्तकर्ता बीमा अनुबंध का लाभ क्षतिपूर्ति के लिए माँग सकता है। एक ही वस्तु में एक से अधिक लोगों को कुछ कुछ अधिकार उपलब्ध हो सकते हैं एवं उनके विभिन्न प्रकार के बीमा हित हो सकते हैं। अत: वे सब अपने हितों के आधार पर उस एक की संपत्ति पर अनेक बीमे करा सकते हैं।

अग्नि बीमा अनुबंध पर क्षतिपूर्ति का दावा करने के लिए यह आवश्यक है कि क्षति का निकट कारण अग्नि ही हो और अग्नि का अर्थ है कि चिनगारी निकली हो (अंग्रेजी में इसे इग्नीशन Ignition कहते हैं)। किसी वस्तु के अत्यधिक दबाव के कारण वस्तु का झुलस जाना आग लगना नहीं माना जाता। बिजली गिरने से होनेवली हानि पर 'चिनगारी लगने' की अनिवार्यता का नियम लागू नहीं होता। विस्फोट द्वारा हुई हानि अग्नि से हानि नहीं कहलाती, भले ही वह विस्फोट अग्नि से ही हुआ तो। इसका आधार यह है कि हानि का निकट (Proximate cause) कारण अग्नि ही होना चाहिए। इसी प्रकार अग्नि लगने से उत्पन्न स्थिति में किसी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए कृत्यों से उत्पन्न हानि भी अग्नि हानि में शामिल नहीं की जाती। लेकिन अग्नि अथवा जलहानि की सीमा का निर्धारण अग्नि बुझने के तुरंत बाद ही नहीं किया जाता वरन् उस समय किया जाता है जब उक्त बीमा संपत्ति बीमा करानेवाले को सौंपी जाती है।

अग्नि बीमा अनुबंध तीन प्रकार के होते हैं :

-मूल्यांकित अथवा अमूल्यांकित

-संपूर्ण तथा अनिश्चित

-निर्धारित तथा औसत

मूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि संपत्ति पूर्ण नष्ट हो जाए तो बीमा पत्र पर लिखित धनराशि बीमा करनेवाले को अनिवार्य रूप से देनी पड़ती है। अमूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि पूर्ण संपत्ति नष्ट हो जाए तो उक्त संपत्ति का मूल्यांकन उस समय किया जाता है। संपूर्ण तथा अनिश्चित अग्नि बीमा अनुबंध में वस्तुओं की सूची नहीं दी जाती वरन् अग्नि से हानिभय का बीमा सामान्य रूप में किया जाता है। निर्वारित अग्नि बीमा अनंबंध में धनराशि निर्धारित बीमा पत्र पर लिखी रहती है। औसत अग्नि बीमा अनुबंध में आनुपातिक क्षतिपूर्ति की जाती है : अग्नि बीमा अनुबंध में पुनस्थापन (Restoration or Restitution), औसत (average) तथा भागदारी (Partial liability) सिद्धांत लागू होते हैं।

१. जान बीमा - जान बीमा का प्रारंभ भी समुद्री बीमा के प्राय: साथ ही हुआ क्योंकि व्यापारिक यात्रा पर जानेवाले पोतों के मालिकों को जहाँ पोत नष्ट होने की संभावनाओं के विरुद्ध प्रबंध करने की चिंता थी, वहीं उन जहाजों के कप्तानों का जीवन भी उतना ही मूल्यवान था। साथ ही जब कारीगरों के संघों की स्थापना होने लगी और जन्म मृत्यु के लेखे रहने के साथ साथ आयु सीमा के औसत निकालने के नियमों की स्थापना की जा सकी तो जान बीमा अनुबंध का भी काफी प्रसार हो सका। लेकिन उस समय के बीमा पत्रों की शर्तें काफी कठिन होती थीं। अमरीकी गृहयुद्ध के पूर्व के जान बीमा अनुबंध की शर्तों के अनुसार बीमा पत्र का काई अर्पण मूल्य (Surrender value) नहीं होता था। बीमे पर कोई कर्ज नहीं मिल सकता था। बीमा प्रव्याजि (प्रीमियम) अदा करने के लिए अतिरिक्त समय (Grace period) नहीं मिलता था तथा आत्महत्या, द्वंद्वयुद्ध अथवा समुद्रयात्रा करने पर बीमा अवैध करार दे दिया जाता था।

जान बीमा दो व्यक्तियों - बीमा करानेवाले और बीमा करनेवाले - के बीच ऐसा अनुंबंध है जिसके अनुसार बीमा करानेवाला निश्चित अवधि तक सामयिक अदायगियों के बदले एक निश्चित धनराशि प्राप्त करने का वचन लेता है और बीमा करानेवाला उन निर्धारित अदायगियों के बदले एक निश्चित रकम निश्चित समय पर अदा करने का वचन देता है। अन्य प्रकार के बीमा अनुंबंधों और जान बीमा अनुबंध का अंतर यही है कि यह केवल मानव जीवन से संबंधित है और बीमा अनुबंध का प्रकार अथवा रूप कुछ भी हो उसमें मूल शर्त यही होती है कि अनुबंध के चालू रहने के काल में यदि बीमा करानेवाले की मृत्यु हो जाएगी तो बीमा करनेवाला बीमापत्र पर लिखित धनराशि अदा करेगा। मृत्यु का कारण केवल दो स्थितियों में ही इस अनुबंध को समाप्त कर सकता है। एक, यदि बीमा कराने वाले के ही किसी गैरकानूनी कृत्य द्वारा उसकी मृत्यु हुई हो। दो, यदि बीमा करानेवाले की मृत्य ऐसे कारणों से हुई हो जिन्हें बीमापत्र में बाद कर दिया गया है। इस विषय पर अंग्रेजी विधि और भारतीय विधि में कुछ अंतर है। भारत में आत्महत्या का प्रयत्न करना तो अपराध है किंतु आत्महत्या अपराध नहीं है अत: आत्महत्या करने पर ऐसा ही बीमा अनुंबंध समाप्त किया जा सकता है जिसके बीमापत्र में यह शर्त लिखित हो। अंग्रेजी विधि में आत्महत्या का विषय पहली श्रेणी में आता है।

जान बीमा में मिलनेवाली धनराशि बीमा करनेवाले पर कर्ज माना गया है। इसलिए संपत्ति-हस्तांतरण-विधि (T.P.A.) की धारा तीन के अंतर्गत यह 'संपत्ति' की श्रेणी में आ जाता है तथा उक्त विधि की धारा १३० के अनुसार इसका हस्तांतरण किया जा सकता था। अब जान बीमा की धनराशि के हस्तांतरण की व्यवस्था बीमा विधि की धारा ३८ व ३९ में की गई है। उक्त धनराशि का हस्तांतरण अभिहस्तांकन (assignment) द्वारा भी किया सकता है (धारा ३८) और नामांकन (nomination) द्वारा भी (३९)। अभिहस्तांकन में बीमा करानेवाला उस बीमा अनुबंध से उत्पन्न अपन अधिकारों एवं हितों को दूसरे को हस्तांतरित कर देता है। नामांकन का अर्थ केवल यह है कि बीमा करानेवाले की मृत्यु पर यदि नामांकित व्यक्ति जीवित हो तो बीमे की धनराशि उसे उपलब्ध हो जाए। नामांकन बिना सूचना के बदला जा सकता है। यदि नामांकित व्यक्ति की मृत्यु पहले हो जाए तो बीमा करानेवाले को ही धनराशि पाने का अधिकार पुन: प्राप्त हो जाता है। अभिहस्तांकन में ऐसा नहीं है। यदि एक बार बीमा अनुबंध के अधिकार अभिहस्तांकित कर दिए गए तो उसकी पूर्व अनुमति के बिना दूसरा अभिहस्तांकन नहीं किया जा सकता। यदि बीमा करानेवाले के पहले अभिहस्तांकित की मृत्यु हो जाए तो वे अधिकार बीमा करानेवाले को वापस नहीं मिलते वरन् उस मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारियों को उपलब्ध हो जाते हैं।

दुर्घटना बीमा अनुबंध के अंतर्गत दो प्रकार की परिस्थितियाँ आ सकती हैं। एक, दुर्घटनावश दूसरों की क्षतिपूर्ति करने का भार तथा दो, दुर्घटनावश स्वयं अथवा स्वसंपत्ति को होनेवाली हानि। अमरीका में इसे कैजुएल्टी इंश्योरेंस कहते हैं। अंग्रेजी विधि में इसे क्षतिपूर्ति बीमा की श्रेणी में रेखा जाता है। भारतीय बीमा विधि में ये प्रकार स्वीकार नहीं किए गए हैं वरन् यहाँ का विभाजन जान बीमा तथा सामान्य बीमा में किया गया है। अत: उपर्युक्त वर्णित दो परिस्थितियों में बादवाली परिस्थिति जान बीमा की श्रेणी में आती है। इस प्रकार की दुर्घटनाओं का बीमा मोटर सवारी विधि (१९३०) तथा विमान वाहन विधि (Air navigation act 1934) के अंतर्गत अनिवार्य कर दिया गया है ताकि क्षतिग्रस्त के हितों की रक्षा हो सके। (गोपी कृष्ण अरोड़ा)