बीदर की बरीदशाही (१४८७-१६१९) इस शासक वंश का संस्थापक मलिक कासिम बरीन, तुर्की गुलाम था जो मुहम्मद शाह बहमनी के सेवक के रूप में काम करता था। यह बहुत ही बुद्धिमान् और सुसंस्कृत था और बढ़ते बढ़ते बीदर का कोतवाल बन गया। अपनी सैनिक क्षमता का सिक्का जमाकर यह पतनोन्मुख बहमनी राज्य का प्रधान मंत्री हो गया। शिहाबुद्दीन महमूद से लेकर कलीमुल्लाह तक सारे बहमनी सुलतान केवल नाम के शासक थे, सत्ता के असली मालिक कासिम बरीद (मृत्यु १५०४) और उसका पुत्र अमीर बरीद (१५०४-१५४३) थे। अंतिम बहमनी सुलतान कलीमुल्लाह के बीदर से भाग जाने के पश्चात् अमीर बरीद सर्वोच्च शासक बन बैठा। कासिम बरीद और अमीर दोनों अनेक स्वार्थों की पूर्ति और उत्तराधिकारी राज्यों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए बहमनी सुलतानों का नाम लेते थे, किंतु बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर ने उनकी दाल नहीं गलने दी। महमूदशाह बहमनी ने बीजापुर के इस्माइल आदिलशाह से अपील की कि वह बीदर में अमीर बरीद के प्रभुत्व को समाप्त करे, किंतु ऐसा कदम उठाने में इस्माइल को अन्य उत्तराधिकारी राज्यों के बीजापुर के विरुद्ध हो जाने का खतरा जान पड़ा। बीजापुर की बढ़ती हुई शक्ति से डरकर अमीर बरीद ने अहमदनगर और गोलकुंडा की उस राज्य के विरोधी बना देने की अनेक चालें चलीं, किंतु उसके षड्यंत्र सफल नहीं हुए। उसकी एक राज्य को दूसरे राज्य से लड़ाने की चालों के कारण ही उसे 'दक्षिण की लोमड़ी' कहा जाता था। उसने विजयनगर के कृष्णदेवराय को आदिम शाही राज्य पर आक्रमण करने और रायचूर दोआब पर कब्जा करने के लिए उकसाया (१५१२)। बीजापुर के प्रतिरक्षक कमाल खाँ को भी उभारा कि वह अबोध राजा इस्माइल को हटाकर गद्दी पर अधिकार कर ले। उसने अहमदनगर और गोलकुंडा को मिलाकर बहमनी सुलतान के नाम पर बीजापुर पर आक्रमण कर दिया किंतु बीजापुर के सेनापति असद खाँ की सैनिक चातुरी से संयुक्त सेनाएँ पराजित हो गई (१५१४)। इस्माइल आदिलशाह ने संपूर्ण सत्ता ग्रहण करने पर अमीर बरीद को अच्छा सबक सिखाया। १५२९ के आसपास उसने बीदर पर आक्रमण कर दिया और उदगीर किले के निकट अमीर बीदर को पकड़ लिया। इस्माइल ने पहले उसकी हत्या कर देने का आदेश दिया किंतु असद खाँ के हस्तक्षेप पर उसकी जान बची। बीदर पर इस्माइल का अधिकार हो गया किंतु दूसरे वर्ष (१५३०) अमीर बरीद को ससम्मान बीदर भेज दिया गया। लेकिन इस उदारता के व्यवहार से भी बरीद का बीजापुर से मैत्री संबंध स्थापित नहीं हुआ और दक्षिणी राजनीति में पूर्ववत शरारत जारी रही। कल्याणी और कांधार पर बीजापुर अपना अधिकार मानता था और दोनों जिले उसमें सम्मिलित हो गए। अमीर बरीद १५४३ में मर गया।
रंगीन महल और अपने शानदार मकबरे के निर्माता अली बरीद (१५४३-१५७९), ने लंबे समय तक राज्य किया और बरीदशाही के राजाओं में उसने पहले पहल 'शाह' की उपाधि धारण की। निजामशाही के शासकों से कुछ समय तक उसके संबंध तनावपूर्ण रहे। लेकिन वह विजयनगर के विरुद्ध मुस्लिम राज्यों के संघ में सम्मिलित हो गया और संयुक्त सेनाओं के बाएँ बाजू का कमांडर बनाया गया। १५७८-७९ में मुर्तजा निजामशाह ने बीदर पर आक्रमण कर दिया और अलीबरीद ने बीजापुर के अली प्रथम की सहायता से अपनी रक्षा की।
बरीदशाही के पतन का आरंभ अली बरीद शाह प्रथम की मृत्यु (१५७९) के बाद से माना जा सकता है। उसके उसके पुत्र इब्राहीम ने, जो उसका उत्तराधिकारी बना, सात वर्षों तक राज्य किया (१५७९-१५८६) और उसके बाद उसका भाई कासिम बरीद द्वितीय १५८६ से १५८९ तक गद्दी पर रहा। कासिम बरीद के युवक पुत्र मिर्जा अली बरीद ने बहुत न्यून अवधि तक शासन किया। उसे परिवार के ही संबंधी ने गद्दी से हटा दिया और स्वयं अमीर बीदर शाह द्वितीय के नाम से राजा बन गया। उसके उत्तराधिकारी के रूप में मिर्ज़ा अमीर बरीदशाह का नाम बीदर के एक अभिलेख में मिलता है। इसी मिर्जा वली अमीर बरीद शाह के राज्यकाल में १६१९ में बीदर बीजापुर में मिला लिया गया।
कुछ अत्यंत सुंदर निर्मित भवन बरीद शाहों की याद दिलाते हैं। उसके द्वारा प्रचलित की हुई मुद्राएँ भी प्राप्त हुई हैं। (पी. एम. जोाश्ी)