बीजलेखन किसी संदेश के इस प्रकार लिखे जाने को कहते हैं कि प्राप्त संदेश का अर्थ केवल वही समझ पाए जिसके पास उसकी कुंजी हो। यह गुप्तलेख विद्या (cryptography) द्वारा संभव होता है। इस विद्या का प्रयोग हजारों वर्ष से होता आ रहा है।
इतिहास - प्राय: प्रत्येक प्राचीन देश में गुह्य बातों को गुप्त रखने के लिए बीजों, कूटों अथवा प्रतीकों का उपयोग होता रहा है। भारत के पुरातन इतिहास तथा साहित्य में भी गुप्तलेखन के अनेक दृष्टांत उपस्थित हैं। प्राचीन मिस्त्र में मंदिरों के पुजारी गुप्तलेखन के लिए चित्रों या चित्र भाषा का प्रयोग करते थे, जिसका अर्थ केवल मंदिरों के सेवक ही समझते थे। यूरोप में रोम के सीज़र तथा अन्य अधिकारियों के बीजलेखन द्वारा संदेश भेजने के उल्लेख हैं। कई शताब्दी पश्चात्, जब यूरोप के विभिन्न दरबारों में स्थित राजनीतिज्ञ बहुधा षड्यंत्रों और गुप्त योजनाओं की तैयारी में लगे रहते थे, तब गुप्त लेखन का बहुत प्रचार हुआ तथा विरोधियों ने एसे बीजलेखों के अर्थ ढूढ़ँ निकालने की विधियों का आविष्कार किया। आगे जब अपेक्षाकृत शांति का समय आया तथा संदेशवाहकों को पकड़कर उनसे पत्रादि छीने जाने का भय न रहा, तब गुप्तलेखन की प्रणालियों का प्रयोग भी कम हो गया, किंतु प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारंभ होने पर इस विद्या की प्रगति में भी ज्वार आया। इस युद्ध में स्थल, जल और वायुसेनाओं द्वारा बेतार से संदेशों का भेजा जाना आवश्यक था, किंतु इन संदेशों को मित्र और शत्रु दोनों ही रेडियोग्राही यंत्रों की सहायता से सुन सकते थे। अतएव ऐसे बीजों (ciphers) और कूटों (codes) द्वारा संदेश भेजे जाने लगे, जिनकी कुंजी का ज्ञाता ही केवल संदेश का अर्थ समझ सकता था। विपक्षियों ने तब इन गुप्त संदेशों का अर्थ ढूँढ़ निकालने की चेष्टाएँ प्रारंभ की और अनेक बार इसमें सफलता प्राप्त की। इस प्रकार प्रत्येक देश के युद्ध विभाग में बीजांक और कूट अनुभाग स्थापित हुए, जो बहुत उपयोगी सिद्ध हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण गुप्तलेख विद्या में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
उपयोगिता - कुछ संप्रदाय, गुप्त समितियाँ तथा अपराधी वृत्ति के लोग विविध प्रकार के सरल अथवा कठिन बीजांकों और कूटों का प्रयोग करते हैं। लड़के भी गुप्त संदेशों को भेजने के लिए किसी न किसी प्रकार के बीजलेखन का आविष्कार कर लेते हैं। इस कला का उपयोग पशुओं को चिह्नित करने तथा व्यक्तिगत संदेशों में भी होता है। व्यापार में संदेशों को तार द्वारा भेजने की सुविधा के लिए छोटा रूप देने तथा गुप्त रखने के लिए बृहत् बीज और कूट कोशों का निर्माण हुआ है। विभिन्न देशों की सरकारों ने राजनयिक तथा सैनिक संदेश भेजने और अन्य गुप्त कार्यों के लिए अनेक जटिल, तथा विपक्षियों के लिए असाध्य, बीजलेखन प्रणालियाँ तैयार की हैं, जिनका विस्तृत उपयोग होता है। युद्धावस्था में ऐसे बीजांकों तथा कूटों के बिना काम चल ही नहीं सकता।
बीजलेखन की रीतियाँ - बीजांकों के निर्माण के लिए संदेश के शब्दों को अन्य शब्दों या चिह्नों में परिणत कर देते हैं। इससे वही मनुष्य संदेश को समझ सकता है जिसे पास उसकी कुंजी होती है। सबसे सरल रीति में संदेश के अक्षरों को थोड़ा हेर फेर के साथ लिख देते हैं; जैसे ''जब तक मैं न लिखूँ तुम घर न आना'' को यदि दाहिने से बाएँ लिखा जाए, तो इसका कूट रूप होगा। नाआ न रघ मतु खूंलि न मैं कत बज इसी के तीन तीन अक्षरों को साथ मिलाकर लिखें और अनुस्वार उड़ा दें, तो यह होगा : 'नाआन रघम तुखूलि नमैंक तबज'।
यदि उपर्युक्त मूल संदेश के विषय संख्यावाले अक्षरों को ऊपर एक लाइन में और सम संख्यावालों को उसके नीचे लिख लिया जाए तो मिलेगा :
ज त मै लि तु घ न ना
ब क न खूँ म र आ
तीन तीन अक्षरों का समूह लेने पर बीज संदेश होगा ''जतमै लितुघ ननाब कनखूँ मरआ'', जो मूल संदेश से सर्वथा भिन्न है। उपर्युक्त रीति के विपरीत, विषम संख्यावाले अक्षरों को नीचे और संख्या वालों को ऊपर भी लिखा जा सकता हैं। यदि संदेश लंबा है, तो उसे तीन अथवा अधिक पंक्तियों में लिख सकते हैं। जैसे संदेश ''पचास ऊँटों का कारवाँ कल रवाना होगा'' को चार पंक्तियों में निम्न प्रकार से लिख लेते हैं:
१ २ ३ ४
१ प चा स ऊँ
२ टों का का र
३ वां क ल र
४ वा ना हो गा
उपरिलिखित से प्रतिलेखन तैयार करने की कई रीतियाँ हो सकती हैं। दाहिने स्तंभ से बाएँ ओर तथा नीचे से ऊपर को लिखने पर, बीजलेख होगा :
यदि मात्राओं का प्रयोग न करें तो इसका रूप ''गररउ हलकस नककच ववटप'' हो जाता है, जिसे भेद जाननेवाला मनुष्य थोड़े प्रयत्न से समझ ले सकता है; किंतु अन्य के लिए यह निरर्थक होता है।
बीजांकों की रचना की अन्य सरल रीति प्रतिस्थापन सारणी का निर्माण करना है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर एक अन्य अक्षर में बदल दिया जाता है, जैसे क=च, ख=म, ग=र इत्यादि। इस प्रकार की एक सूची तैयार कर, पूर्ण संदेश को नए अक्षरों में लिख देने पर, बीज लेखन पूरा हो जाता है। इस संदेश को कुंजी जाननेवाले मनुष्य के सिवाय अन्य लोग नहीं जान सकते। हिंदी में बीजलेखन तैयार करने के लिए स्वरों में से केवल मुख्य पाँच, अर्थात् अ इ उ ए तथा ओ, को लेने तथा मात्राओं और कुछ व्यंजनों को छोड़ देने से सरलता हो जाती है। नीचे के दृष्टांत में व्यंजन ङ, ञ, ण, न, श तथा ष को छोड़ देते हैं और इनका काम इनसे मिलते जुलते अक्षर म, स और ख से लेते हैं। एक कूट शब्द ले लिया जाता है, जैसे परवल तथा इसे वर्णमाला के अन्य अक्षरों के साथ निम्नलिखित दो तरीकों से सजा सकते हैं :
पश्श् रश्श् वश् ल
अश् इश्श् उश् ए
ओश् कश् खश् ग
धश्श् चश् छश् ज
झश्श् टश्श् ठश् ड
ढश्श् तश् थश् द
धश्श् फश् बश् भ
मश्श् लश् सश् ह
पश्श् रश्श् वश् लश् अश् इश्श् उश् ए
ओश् कश् खश् गश् घश् चश् छश् ज
झश्श् टश् ठश् डश् ढश्श् तश् थश् द
धश्श् फश् बश् भश् मश् लश् सश् ह
मान लीजिए जो संदेश भेजना है वह यों है: ''पचास ऊँट का कारवाँ कल रवाना होगा, जिसकी मात्राएँ इत्यादि हटाने पर रूप होता है : पचस उट क करव कल रवन हग। अब इस संदेश को दो अक्षरों के समूह में विभाजित कर लेते हैं : पच सउ टक कर वक लर वन हग। उपरिलिखित सारणियों में प्रथम दो अक्षरों को सीधी रेखा से जोड़ने पर जिस आयत का कर्ण बनता है, उसके अन्य दोनों विपरीत सिरों पर पड़नेवाले अक्षर पूर्वअक्षरों के स्थान पर लिख दिए जाते हैं। एक ही (१) आड़ी या (२) खड़ी पंक्ति में पड़नेवाले अक्षरों के स्थान पर, सारणी में उनके (१) बाद अथवा (२) नीचे खानेवाले अक्षर दिए जाते हैं। यदि दाहिने स्तंभ या (२) अंतिम पंक्ति में सदेश का अक्षर पड़ता है, तो (१) बाएँ पड़नेवाला या (२) ऊपर की पंक्ति में पड़नेवाला अक्षर उसके स्थान पर लिख दिया जाता है। इन नियमों के अनुसार प्रथम सारणी में संदेश का बीज लेखन होगा :
रघ हए तच चई रख सव पस सख . . . . . . . . . . . (१)
तथा द्वितीय सारणी से होगा :
इओ हए फट टक रख अव अब जभ . . . . . . . . . . . (२)
तीन तीन या चार चार अक्षरों को मिलाकर लिखने से उक्त बीजलेखों की क्लिष्टता कुछ बढ़ जाएगी।
बीजलेखन अक्षरों में न होकर शब्दों में हो सकते हैं। इस आधार पर शब्दकोशों से चुने हुए शब्द लेकर प्रत्येक शब्द से एक पूर्ण विचार को जताने का काम लिया जाता है। ऐसे कूट शब्दों का प्रयोग व्यापारिक संदेशों में बहुधा किया जाता है, क्योंकि इससे लंबा संदेश गिने गिनाए शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। बीजांकों में कृत्रिम अक्षरों, विशेष चिह्नों, अंकों आदि का प्रयोग कर उनकी जटिलता बढ़ा दी जाती है। चक्र बीजांक (wheel cipher), रज्जु बीजांक (string cipher), वृत्त बीजांक (circle cipher) तथा अन्य अनेक गुप्तलेखन रीतियों का वर्णन बीजलेखन संबंधी पुस्तकों में दिया है। अब संदेशों को बीजांकों में विविध रीतियों से परिवर्तित करनेवाले यंत्रों का भी आविष्कार हुआ है, जिनसे बहुत थोड़े समय में लंबे संदेशों के ऐसे बीजलेख तैयार हो जाते है जिनके अर्थ का पता लगाने की विधि निकालना असंभव है। सैनिक तथा राजनयिक संदेशों के लिए अत्यावश्यक है कि विरोधी उन्हें न जान जाए, क्योंकि एक छोटी सी बात के प्रकट हो जाने के भी भयंकर प्रतिफल हो सकते हैं। इस कार्य के लिए बीजलेखी यंत्र बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। व्यापारिक कार्यों के लिए टेलेक्रिप्टॉन (Telekypton) नामक एक यंत्र प्राप्य है, जिसके द्वारा भेजे जानेवाले संदेश का बीजलेखन तथा तार से प्राप्त बील से संदेश का पुनर्लेखन अपने आप हो जाता है तथा वह अतिशीघ्रता के साथ छपता भी जाता है। (भगवान दास वर्मा)