बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् भारतीय स्वाधीनता की सिद्धि के बाद की राज्य सरकार ने बिहार विधान सभा द्वारा सन् १९४८ ई. में स्वीकृत एक संकल्प के परिणामस्वरूप 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्' की स्थापना राष्ट्रभाषा हिंदी की सर्वांगीण समृद्धि की सिद्धि के पवित्र उद्देश्य से सन् १९५० ई. के जुलाई मास के मध्य में की और इसका उद्घाटन समारोह, ११ मार्च, सन् १९५१ ई. के दिन बिहार के तत्कालीन राज्यपाल, महामहिम माधव श्रीहरि अणे की गौरवपूर्ण अध्यक्षता में, संपन्न हुआ। हिंदी की आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में बिहार राज्य सरकार के संकल्प का यह संस्थान मूर्तरूप है।

परिषद् के सामने दस उद्देश्य हैं : (१) हिंदी के अभावों की पूर्ति करनेवाले ग्रंथों का प्रकाशन, (२) प्राचीन पांडुलिपियों का शोध और अनुशीलन, (३) लोकसाहित्य का संग्रह और प्रकाशन, (४) लोकभाषा विशेषज्ञों की भाषणमाला का आयोजन, (५) पुरस्कार प्रदान कर साहित्यिकों को सम्मानित और प्रोत्साहित करना, (६) हिंदी निबंध प्रतियोगिता में सफल छात्र छात्राओं को पुरस्कृत करना, (७) महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिए साहित्यिक संस्थाओं को अनुदान (८) साहित्यिक शोध के लिए अनुसंधान पुस्तकालय संचालित करना, (९) देश विदेश की प्रमुख भाषाओं के प्रामाणिक ग्रंथों के हिंदी अनुवाद द्वारा राष्ट्रभाषा साहित्य को संमृद्ध करना और (१०) विभिन्न विषयों के विशिष्ट विद्वानों को व्याख्यान के लिए आमंत्रित करना तथा उनके भाषणों को संपादित ग्रंथाकार कराकर प्रकाशित करना।

अब तक परिषद् के १२ वार्षिकोत्सव संपन्न हुए हैं, जिनमें क्रमश: निम्नलिखित मनीषी विद्वान् और हिंदी के उन्नायक सभापति पद को अलंकृत कर चुके हैं। डॉ. अनुग्रहनारायण सिंह, डॉ. धीरेंद्र वर्मा, आचार्यं नरेंद्रदेव, श्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर, डॉ. संपूर्णानंद, श्री कुमार गंगानंद सिंह, डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, सेठ गोविंददास, आचार्य काका साहेब कालेलकर, डॉ. लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु', महामहिम अनंतशयनम आयंगर और डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल।

अबतक हिंदी निबंध प्रतियोगिता में साहित्य विषयक पुरस्कार से २४, राजनीतिक विषयक १६, वाणिज्य व्यवसाय विषयक ९, अर्थशास्त्र विषयक १६, विज्ञान विषयक १८, मनोविज्ञान विषयक ८, भूगोल विषयक ७, कृषि विषयक ९, चिकित्साविज्ञान विषयक, ५, अभियंत्रण कला विषयक ६, इतिहास विषयक २ और दर्शन विषयक २, छात्र पुरस्कृत हुए हैं।

साहित्यरचना तथा मुद्रण प्रकाशन में रत साहित्यिक संस्थाओं को मौलिक ग्रंथों के प्रकाशनार्थ आर्थिक अनुदान दिया जाता है। अबतक २९ संस्थाओं को कुल ५१,६९२ रु. दिए गए हैं।

विविध भाषाओं, क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य पर ३७ विद्वानों के भाषण हुए हैं, जो ग्रंथाकार दो खंडों में प्रकाशित हैं।

परिषद् के प्रकाशन विभाग के तत्वावधान में अमूल्य और महत्वपूर्ण साहित्यिक शोध कृतियों का प्रकाशन होता है। अबतक ९४ महत्वपूर्ण प्रकाशन हो चुके हैं, जिन्हें अनेकानेक मूर्धन्य विद्वानों ने मुक्त कंठ से सराहा है। परिषद् के कृतिकारों में म. म. गोपीनाथ कविराज, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, डॉ. विनयमोहन शर्मा, पं. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, आचार्य नरेंद्रदेव आदि के नाम सादर उल्लेख्य हैं। इन कृतियों में साहित्य अकादमी पुरस्कार से रचनाएँ पुरस्कृत हुई हैं। परिषद् से प्रकाशित होनेवाली साहित्य संस्कृति-प्रधान त्रैमासिक 'परिषद् पत्रिका' ने शोध और अनुसंधान के लिए नए साहित्यिक वातायन का उद्घाटन किया है।

प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथशोध विभाग के तत्वावधान में अब तक ३६८१ प्राचीन पांडुलिपियाँ संगृहीत हुई हैं। छह खंडों में 'प्राचीन हस्तलिखित पोथियों का विवरण' प्रकाशित हुआ है। साथ ही 'दरिया ग्रंथावली, 'संतमत का सरभंग संप्रदाय', 'हरिचरित' का प्रकाशन इस विभाग का मुख्य अवदान है।

लोकभाषा अनुसंधान विभाग परिषद् का मुख्य शोध विभाग है। विभाग की ओर से 'कृषिकोश' तथा 'लोकगाथा परिचय', लोकसाहित्य आकर प्रकाशि हुआ है।

'कहावत कोश,' 'अंगिका संस्कारगीत,' 'भोजपुरी संस्कारगीत' के प्रकाशन में हाथ लगा हुआ है।

विद्यापति विभाग द्वारा विद्यापति के संबंध में अनुसंधान चल रहा है। विद्यापति की प्रामाणिक पदावलियों का संचयन, संपादन तथा आलोचना इस विभाग की विशेषता है। 'विद्यापति पदावली' का प्रथम खंड प्रकाशित हो चुका है।

भारतीय शब्दकोश विभाग द्वारा हिंदी अब्दकोश का निर्माण प्रामाणिक विद्वन्मंडली के संपादकत्व में तत्परता के साथ होता है। अब तक शकाब्द १८८२, १८८३, १८८४, १८८५ प्रकाशित हुआ है।

इस समय परिषद् के अनुसंधान पुस्तकालय में कुल १३,९१९ ग्रंथों तथा २,६१४ महत्वपूर्ण दुर्लभ पत्र पत्रिकाओं की फाइलें संकलित हुई हैं। पुस्तकालय में विश्वविद्यालय के अनुसंधित्सु प्राध्यापक तथा छात्र लाभान्वित होते हैं।

परिषद् की गौरववृद्धि की चर्चा में इसके आद्यसंचालक पद्मभूषण आचार्य शिवपूजन सहाय का नाम चिरस्मरणीय है। परिषद् बिहार सरकार के अधीन पूर्णत: सरकारी प्रतिष्ठान है, जिसमें शोथ और प्रकाशन की मुख्यता है। इसके संचालन के लिए संचालकमंडल तथा समिति सरकार द्वारा गठित है। (भुवनेश्वर नाथ मिश्र)