बिहार यह भारत संघ के अंतर्गत एक राज्य है। ब्रिटिश काल में बंगाल प्रांत का यह एक भाग था। १९११ ई. में दिल्ली दरबार की एक घोषणा से यह बंगाल प्रांत से अलग होकर उड़ीसा के साथ मिलकर बिहार और उड़ीसा नामक अलग प्रांत बना। १९३५ ई. में बिहार उड़ीसा से अलग होकर एक नया प्रांत बना। यह उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण-पूर्व में उड़ीसा तक तथा पूर्व में पश्चिमी बंगाल से लेकर पश्चिम में उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है। छोटा नागपुर भी इसी के अंतर्गत है। बिहार राज्य का क्षेत्रफल ६७,१९८ वर्ग मील है।

बौद्ध मठों को एक समय बिहार कहते थे। इन्हीं बिहारों की उपस्थिति एवं अधिकता के कारण एक स्थान का नाम बिहार पड़ा, जो बिहार की राजधानी पटना से ६४ किमी. पूर्व में स्थित है और आज भी उसको बिहार शरीफ कहते हैं, जो पटना जिले का एक उपमंडल भी है। संभवत: आठवीं शती में नगर का नाम बिहार पड़ा था। पाल शासकों के राज्यकाल में बिहार शरीफ उनकी राजधानी था। मुस्लिम शासनकाल में १६वीं शती तक यह राजधानी रहा, फिर राजधानी बिहार शरीफ से हटकर पटना चली गई। बिहार राज्य में आज १७ जिले हैं, जिनमें पटना, भागलपुर, गया, जमशेदपुर और राँची प्रमुख हैं। गंगा नदी द्वारा बिहार राज्य दो भागों में बँटा हुआ हैं। गंगा नदी के उत्तरी भाग को उत्तरी बिहार और गंगा नदी के दक्षिणी भाग को दक्षिणी बिहार कहते हैं। उत्तरी बिहार की भूमि सपाट और बड़ी उपजाऊ है तथा यह भाग अधिक घना बसा हुआ। दक्षिण बिहार का अधिकांश भाग पहाड़ी है पर यह बहुमूल्य खनिजों से भरा है। छोटा नागपुर इसी भाग में है।

अधिवासी - बिहार के अधिवासी आर्य, पीत और कुछ हबशी प्रकार के हैं। यहाँ के उच्च हिंदू और उच्च मुसलमान आर्य जाति के हैं। चंपारन जिले के मंगर और थारू, मुजफ्फरपुर के नेवार, पुरनिया जिले के कोच, पालिम और गंगाइयों में पीत रुधिर का होना स्पष्ट रूप से मालूम पड़ता है। राँची और संताल परगने के जिलों के आदिवासियों में हबशियों के कुछ विशिष्ट लक्षण पाए जाते हैं। यद्यपि कुछ लोगों का मत है कि ये आस्ट्रेलिया के आदिवासियों से अधिक मिलते जुलते हैं। बिहार के आदिवासियों में संताल, ओराँव, मुंडा, हो, खोंड, खरिया, भूइयाँ और पहाड़ियाँ महत्व के हैं।

भाषा - बिहार की भाषा हिंदी, बंगाली एवं उर्दू है। शुद्ध हिंदी यद्यपि कहीं बोली नहीं जाती, केवल पुस्तकों में ही पढ़ी जाती है। यहाँ की प्रमुख बोलियाँ भोजपुरी, मैथिली और मगही हैं। मैथिली, मिथला में बोली जाती है। भोजपुरी बिहार के पश्चिमी भाग में और मगही बिहार के दक्षिणी भाग में बोली जाती है। इनमें मैथिली सबसे अधिक समृद्धिशाली है और विद्यापति के पदों ने मैथिली को बहुत ऊँचा स्थान प्रदान किया है। छोटा नागपुर के कुरमी लोग कूर्माली बोली बोलते हैं। डा. विश्वनाथप्रसाद ने सिद्ध किया है कि कूर्माली हिंदी का ही रूपांतरहै। यद्यपि कुछ बंगालवाले इसे बंगाली का ही एक रूपांतर मानते हैं। बिहार के आदिवासी स्थानीय बोलियों के साथ साथ अपनी बोलियाँ भी बोलते हैं। विभिन्न आदिवासियों की बोली भिन्न भिन्न है। इनकी बोलियों को संताली, मुंदारी, मलहरा, गोंडी आदि नामों से पुकारते हैं।

जलवायु - बिहार के कुछ भागों में बहुत अधिक गरमी पड़ती है तथा कुछ भाग ठंडे रहते हैं। बिहार में गया का ताप सबसे ऊँचा रहता है जो कभी कभी ४८° सें. तक पहुँच जाता है पर साधारणतया ग्रीष्मकाल में ताप ४०° सें. के लगभग रहता है। निम्नतम ताप शीतकाल में चार या पाँच डिग्री सें. तक पहुँच जाता है। छोटा नागपुर के कुछ स्थानों का ताप सामान्यतया ३८° सें. से ऊपर नहीं जाता। औसत वर्षा ५० इंच होती है। छोटा नागपुर की औसत वर्षा ५३ इंच के लगभग है।

पेड़-पौधे - बिहार में उष्ण देशों के सभी पेड़ उगते हुए पाए गए हैं। यहाँ आम, महुआ, जामुन, बेल, नीम, पीपल, बेर, बड़, पाकर, बबूल, साल तथा शीशम के पेड़ प्रचुरता से उगते हैं। कृषि में ईख धान, गेहूँ, जौ, चना, मटर, अरहर, मूँग, मक्का, सावाँ, कोदो, मंडुआ, खेसारी, चीना, उड़द, कुटकी, तिल, कुसम, सरसों, राई तथा तीसी आदि का प्रमुख स्थान है।

खनिज - बिहार खनिजों के भंडार से भरा पड़ा है। कोयले के अतिरिक्त लौह खनिज, ऐलम, ऐपेटाइट, ऐंटीमनी, आर्सेनिक, ऐस्बेस्टस, बेराइटीज, बौक्साइट, क्रोमाइट, चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी, चूना पत्थर, बालूपत्थर, ताँबा, कोरंडम, ग्रेफाइट, गैलेना, मैंगनीज, अभ्रक गेरू, टेंग्सटन, यूरेनियम, केनाइट तथा शील खड़ी (soapstone) आदि अनेक खनिज भिन्न भिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं। यहाँ का अभ्रक जगतप्रसिद्ध है।

उद्योग-धंधे - बिहार में पहले उद्योग धंधों की कमी थी, पर अब अनेक उद्योग धंधे सफलता से चल रहे हैं। जमशेदपुर का लोहे का कारखाना एशिया का संभवत: सबसे बड़ा कारखाना है। राँची में हैवी इंजीनियरिंग कारखाना, बरौनी का तेल शोधन कारखाना, डालमियानगर का कागज का कारखाना, सिंद्री का उर्वरक कारखाना, गोमियाँ का विस्फोटक निर्माण का कारखाना, डालमियानगर तथा पलामू जिले में सीमेंट के कारखाने हैं। चीनी के अनेक कारखाने बिहार में है। चीनी के उत्पादन में उत्तर प्रदेश के बाद बिहार का ही स्थान आता है।

तीर्थस्थान - बिहार में अनेक तीर्थ स्थान हैं। हिंदुओं के लिए गया का विष्णुपद मंदिर, वैद्यनाथधाम का शिवलिंग मंदिर ऐसे तीर्थस्थान हैं, जहाँ भारत के कोने कोने से लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री आते हैं। समस्त भारत में गया ही एक स्थान है, जहाँ पितरों को पिंडदान करने पर मुक्ति मिल जाती है, अत: लाखों मनुष्य इसके लिए आश्विन मास के पितृ (कृष्ण) पक्ष में इकट्ठे होते हैं और पिंडदान देते हैं। इसके अतिरिक्त सोनपुर का हरिहर मंदिर भी पवित्र तीर्थस्थान है जहाँ कार्तिक पूर्णिमा को पशुओं का एक बड़ा मेला लगता है। यह मेला लगभग एक मास तक चलता है तथा एशिया खंड का सबसे बड़ा मेला है जिसमें हजारों की संख्या में हाथी, घोड़े, गाय, भैंस, तथा बैल बिक्री के लिए आते हैं। बौद्धों के लिए बुद्धगया और राजगिरि पवित्र स्थान हैं। प्रतिवर्ष जापान, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, तिब्बत और नेपाल तथा यूरोप से लाखों बौद्ध तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। वैशाली, पावापुरी और पारसनाथ जैनियों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं। वैेशाली में जैनियों के तीर्थकर महावीर का जन्म हुआ था तथा पावापुरी में उन्होंने अपना पार्थिव शरीर त्यागा था। पारसनाथ पहाड़ी पर तीर्थंकर पारसनाथ का मंदिर है जहाँ रहकर वे तपस्या करते थे और चातुर्मास व्यतीत करते थे।

पटना नगर में सिखों का प्रसिद्ध गुरुद्वारा 'हरिहर मंदिर' है जहाँ सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंह का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपना बाल्यकाल व्यतीत किया था। इस मंदिर में गुरु गोविंद सिंह जी के स्मृतिच्ह्रि रखे हुए हैं।

ऐतिहासिक स्थान - बिहार में ऐतिहासिक महत्व के स्थान बहुत बड़ी संख्या में हैं जिनमें राजगिरि, नालंदा, बुद्धगया, सहसराम, बराबर पहाड़ी, वैशाली, सुल्तानगंज, कहलगाँव, राजमहल, पटने के खंडहर एवं मुंगेर का किला प्रसिद्ध है।

शिक्षा - बिहार के अलग राज्य बनने के समय यहाँ स्कूलों की संख्या बहुत कम थी। बाद में उनकी संख्या बढ़ने लगी तथा स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद तो बड़ी तेजी से बढ़ी। आज बिहार में उच्च विद्यालयों की संख्या लगभग १,५०० से ऊपर है। प्रारंभ में बिहार के सब महाविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंधित थे। १९१६ ई. में बिहार विश्वविद्यालय कानून पारित हुआ और उसके फलस्वरूप १९१७ ई. में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय का काम बढ़ जाने से एक दूसरे विश्वविद्यालय की स्थापना की आवश्यकता मालूम हुई। अत: सन् १९५२ में बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। उस समय इस विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या लगभग ६० थी, जो शीघ्र ही बढ़कर ९० से अधिक हो गई। इन महाविद्यालयों की समुचित व्यवस्था के लिए कुछ अन्य विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, इनमें भागलपुर विश्वविद्यालय (१९६०), राँची विश्वविद्यालय (१९६०), मगध विश्वविद्यालय (गया में, १९६१) तथा दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (१९६१) की स्थापना हुई है। इनके अतिरिक्त जैन दर्शन के अध्ययन के लिए नालंदा अनुसंधान संस्थान की स्थापना हुई। बिहार में तीन महत्वपूर्ण अनुसंधान प्रयोगशालाएँ हैं : जियाल गोड़े की ईधंन राष्ट्रीय प्रयोगशाला, जमशेदपुर की धातुकर्म राष्ट्रीय प्रयोगशाला तथा नामकुम (राँची) का लाख अनुसंधान संस्थान। (फूलदेव सहाय वर्मा)