बिस्मथ (Bismuth) बिस्मथ आवर्त सारणी के पंचम मुख्य समूह का तत्व है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक (isotope) प्राप्त है, जिसकी द्रव्यमान संख्या २०९ है, यद्यपि यूरेनियम और थोरियम अयस्कों में इसके रेडियोऐक्टिव (radioactive) समस्थानिक मिलते हैं। इनके नाम क्रमश: रेडियम ई (Ra E, द्रव्यमान संख्या २१०), ऐक्टीनियम-सी (Ac C, द्रव्यमान संख्या २११), थोरियम-सी (Th C, द्रव्यमान संख्या २१२), तथा रेडियमसी (Ra C, द्रव्यमान संख्या २१४) है। इनके अतिरिक्त प्रयोगों द्वारा इनके कृत्रिम पाँच अल्पजीवी समस्थानिक भी बनाए गए हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९९, २००, २०४, २०६ और २१३ हैं।
बिस्मथ तत्व की पहचान सोलहवीं शताब्दी में पैरासेल्सस तथा अग्रिकोला ने की थी। सन् १७३९ में पोप नामक वैज्ञानिक ने इसके गुर्णों का अध्ययन किया। इसकी क्रियाओं का सम्यक् रूप से सर्वप्रथम अध्ययन १७८० ई. में बर्गमैन ने किया था। बिस्मथ का नाम जर्मन शब्द वाइज़मुथ (Weissmuth) पर आधारित है, जिसका अर्थ श्वेत पदार्थ है।
उपस्थिति एवं उत्पादन - पृथ्वी की सतह पर बिस्मथ की अनुमानित मात्रा लगभग १० प्रतिशत है। कभी कभी यह मुक्त अवस्था में भी मिलता है। बिस्मथ के मुख्य अयस्क बिस्मथिनाइट बि२गं३ (Bi2S3); बिस्मथाइट, (बिऔ)२ काऔ३हा२औ [(Bi O)2 CO3. H2O] और बिस्माइट, बि२औ३ ३हा२औ (Bi2O3. 3 H2O) हैं। दक्षिण अमरीका के बोलीविया और पेरू में इसके अयस्क पाए जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया, कैनाडा, स्पेन और मध्य यूरोप में भी इसके अयस्क प्राप्य हैं।
बिस्मथ प्राप्त करने की अनेक विधियाँ ज्ञात हैं। प्राकृतिक बिस्मथ को झुकी हुई पाइपों में गरम करने पर उसका द्रवीकरण हो जाता है। द्रव बिस्मथ बह जाता है और अशुद्धियाँ पाइप में चिपकी रहती हैं। ऑक्साइड अथवा सल्फ़ाइड अयस्क में काबल्ट, निकेलश् ताम्र, लौह, रजत, सीस, वंग, सेलीनिय आदि अशुद्धियाँ वर्तमान रहती हैं। अयस्क को भून (roast) कर अपचायक पदार्थ, जैसे लकड़ी का कोयला अथवा लौह, के साथ गरम करते हैं। इस क्रिया में गालक (flux) पदार्थ भी मिलाए जाते हैं, जैसे चूना, सोडा, सोडियम सल्फेट, फ्लोरस्पार आदि। बिस्मथ द्रव अवस्था में मुक्त होकर नीच बैठ जाता है। इसे शुद्ध करने के लिए नाइट्रिक अम्ल द्वारा प्रक्रिया की जाती है। प्राप्त बिस्मथ नाइट्रेट के जल अपघटन द्वारा बिस्मथ ऑक्सिनाइट्रेट का अवक्षेप प्राप्त होता है। अवक्षेप निस्तापन (calcination) से विशुद्ध बिस्मथ ऑक्साइड प्राप्त होता है। इसका कार्बन द्वारा अपचयन करके विशुद्ध धातु मिलती है। सीसे के विद्युत् अपघटन क्रिया द्वारा विशुद्वीकरण करने पर बची धनाग्र अवपंक (anodeslime) से भी बिस्मथ प्राप्त होता है।
गुण - बिस्मथ हलका लाल रंग लिए, भुरभुरे गुणवाली धातु है। इसमें धात्विक चमक होती है, जिसपर वायु में ऑक्साइड की हलकी परत जम जाती है। इसके कुछ गुण निम्नांकित हैं : संकेत बि (Bi), परमाणु संख्या ८३, परमाणु भार २०८.९८, गलनांक २७१.३० सें., क्वथनांक १,४२० सें., घनत्व ९.८ ग्राम प्रति घ. सेंमी., परमाणु व्यास ३.६४ ऐंग्स्ट्रॉम (A°) तथा विद्युत्प्रतिरोधकता १०६.८ माइक्रोओहम् सेंमी.।
बिस्मथ वायु में गरम करने पर जलकर विस्मथ ऑक्साइड, बि२औ३, (Bi2O3), बनाएगा। यह हैलोजन तत्वों से क्रिया कर यौगिक बनाता है। खनिज अम्लों में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल इसपर शिथिलता से क्रिया करता है। गरम सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा बिस्मथ सल्फेट बनेगा और सल्फर डाइऑक्साइड, गंऔ२ (SO2), मुक्त होगा। नाइट्रिक अम्ल की क्रिया द्वारा बिस्मथ नाइट्रेट, बि (नाऔ३)३ [Bi(NO3)3] बनता है। अम्लीय अथवा क्षारीय विलयन में घनाग्र पर बिस्मथ का ऑक्सीकरण हो जाता है। बिस्मथ की हाइड्रोजन से कोई प्रत्यक्ष क्रिया नहीं होती। क्षारीय धातुओं (जैसे सोडियम, पोटैसियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि) से बिस्मथ यौगिक बनाता है। इन यौगिकों के भौतिक गुण धातु के यौगिकों के गुण से होते हैं।
बिस्मथ अधिकतर त्रिसंयोजी यौगिक बनाता है। पंचसंयोजी यौगिकों में इसके ऑक्सीकारक गुण रहते हैं।
यौगिक - हाइड्रोजन के साथ बिस्मथ त्रिहाइड्राइड, बिहा३ (BH3) यौगिक ज्ञात है। इसको बिस्मथीन भी कहते हैं। यह अस्थिर गैस है, जिसका १६०°सें. पर शीघ्र विघटन होकर बिस्मथ का दर्पण बन जाता है।
सामान्य अम्लीय विलयन में बिस्मथिल आयन, [बि (औहा)२]+ [Bi (OH)2]+ वर्तमान रहते हैं। यह अनेक धनायनों (anions) के साथ क्रिया कर अवक्षेप बनाते हैं। इसलिए बिस्मथ लवण तनु विलयन में जल अपघट्य हो ऑक्सीलवण के अवक्षेप देते हैं।
ऑक्साइड - बिस्मथ के चार ऑक्साइड ज्ञात हैं : मोनोऑक्साइड, बिऔ (BiO), ट्राइऑक्साइड, बि२औ३ (Bi2O3), टेट्राऔक्साइड, बि२औ४ (Bi2O4) और पेंटॉक्साइड, बि२औ५ (Bi2O5), ज्ञात हैं। बिस्मथ ऑक्सेलेट को गरम करने पर बिऔ (BiO) प्राप्त होता है। ट्राइऑक्साइड का क्षारीय निलंबन क्लोरीन द्वारा ऑक्सीकरण से जलयुक्त बिस्मथ पेंटॉक्साइड बनाता है। बिस्मथ पैंटॉक्साइड पर नाइट्रिक अम्ल की क्रिया करने पर भूरे रंग का बिस्मय टेट्राऑक्साइड बनेगा। यह सामान्यत: अम्लीय या क्षारीय बिलयन में अविलेय है। अम्ल की उपस्थिति में यह ऑक्सीकारक गुण प्रदर्शित करता है।
हैलाइड - बिस्मथ के हैलोजन यौगिकों की अनेक संयोजकताएँ हैं। क्लोरीन या ब्रोमीन से बिस्मथ की कम मात्रा में क्रिया के फलस्वरूप द्विक्लोराइड, बिक्लो२ (BiCl2), या द्विब्रोमाइड, बिब्रो२ (BiB2) बनेंगे। बिस्मथ द्विआयोडाइड, बिआ२ (Bil2) भी ज्ञात है। त्रिसंयोजक अवस्था में फ्लोराइड, विफ्लो (Bi F3), भी क्लोराइड, बिक्लो३ (BiCl3), ब्रोमाइड बि ब्रो३ (BiBr3) और आयोडाइड बि आ३ (Bil3) भी ज्ञात हैं। बिस्मथ की क्लोरीन, ब्रोमीन अथवा आयोडीन से प्रत्यक्ष क्रिया द्वारा त्रियोगिक बनते हैं। ये जल द्वारा शीघ्र जल अपघटित हो ऑक्सी यौगिक, जैसे बिऔक्लो (BiOCl) बनाते हैं। पंचसंयोजिक अवस्था में पेंटाफ्लोराइड, विफ्लो५ (BiF5), तथा ऑक्सीफ्लोराइड (BiOF3) बनाए गए हैं।
सल्फाइड - बिस्मथ ट्राइसल्फाइड, बि२गं३ (Bi2S3), अनेक अपरूपीरूपांतरण (allotropic modifications) में मिलता है। सामान्यत: यह भूरे या काले रूप में बनता है। बिस्मथ और गंधक के संमिश्रण को उच्च दाब पर गरम करने से यह तैयार किया जा सकता है। बिस्मथ के त्रिसंयोजी विलयन में हाइड्रोजन सल्फाइड की क्रिया से भी यह बनेगा।
बिस्मथेट - मेटाबिस्मथिक अम्ल, हाबिऔ३ (HBiO3), के लक्षण बिस्मथेट कहलाते हैं। सोडियम बिस्मथेट वैश्लेषिक रसायन में आक्सीकारक के रूप में प्रयुक्त होता है। पोटैशियम बिस्मथेट, पोबिऔ३ (KBiO3), लाल रंग का पदार्थ है, जो कॉस्टिक पोटाश में बिस्मथ ट्राइऑक्सइड के निलंब (suspension) में क्लोरीन प्रवाहित करने पर, अवक्षेपित हो जाता है। बिस्मथेट यौगिक विशुद्ध अवस्था में नहीं मिलते।
बिस्मथ के कार्बनिक यौगिक - बिस्मथ के भी कार्बनिक यौगिक मिलते हैं। ग्रिगनार्ड यौगिकां की बिस्मथ क्लोराइड पर क्रिया द्वारा बिमू३ (Bi R3) समूह के यौगिक बनते हैं (R कार्बनिक मूलक)। सामान्यत: ये तरल पदार्थ होते हैं, जिनका वायु में विस्फोट द्वारा ऑक्सीकरण हो जाता है। पंचसंयोजी रूप में मू३बि य२ (R3BiX2) प्रकार के भी यौगिक बनाए जा सकते हैं, जिनमें य (X) विद्युऋणात्मक (electronegative) परमाणु या समूह रहता है।
उपयोग - बिस्मथ का उपयोग मुख्यत: मिश्रधातु (alloys) बनाने में होता है। इसकी अनेक मिश्रधातुओं का गलनांक नीचे ताप पर होता है और वे सरलता से ढाले जा सकते हैं। इसका उपयोग सुरक्षा डाट (safety plug), गैस बेलन, सोल्डर, समपात अवगाह (constant temperature bath) आदि बनाने में होता है। उच्च ताप मापने के थर्मोपाइल में बिस्मथ मिश्रधातु के कतिपय उपयोग हुए हैं।
इसके अतिरिक्त बिस्मथ यौगिक ओषधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं। बिस्मथ ट्राइऔक्साइड काच तथा चीनी मिट्टी के उद्योग में काम आता है। बिस्मथ को रेडियोऐक्टिव प्रयोगों में भी काम में लाते हैं।
दैहिकीय प्रभाव - बिस्मथ के हाइड्रॉक्सॉइड, कार्बोनेट, क्लोराइड आदि चर्मरोगों की चिकित्सा में काम आते हैं। इनमें कुछ कृमिनाशक (antiseptic) गुण वर्तमान हैं। इसी कारण ये कुछ आंतरिक रोगों, जैसे पेचिश, गैस्ट्रिक अल्सर आदि, में लाभदायक होते हैं। एक्स विकिरण द्वारा आँत के चित्र लेने में बिस्मथ यौगिकों का उपयोग होता है। सिफलिस के उपचार में बिस्मथ धातु, या बिस्मथ सैलिसिलेट, के इंजेक्शन से लाभ पहुँचता है।
बिस्मथ लवण आँतों द्वारा बहुत कम मात्रा में अवशोषित होते हैं। इस कारण इनका शरीर पर नहीं के बराबर हानिकारक प्रभाव पड़ता हैं। बिस्मथ यौगिकों के विषकारी प्रभाव उसमें उपस्थित आर्सेनिक या टेल्यूरियम की अशुद्धि के कारण हाते हैं, परंतु चोट आदि के घावों पर बिस्मथ यौगिकों के इंजेक्शन भी हानिकारक सिद्ध होते हैं। इनके फलस्वरूप मसूड़ों, जीभ और गले में घाव, या मुख पर काले चिह्न आदि उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे चिह्नों के उत्पन्न होने पर बिस्मथ यौगिकों का उपयोग बंद कर देना चाहिए। (रमेश चंद्र कपूर)