बिशप ईसाई धर्म के प्रारंभ से विभिन्न समुदायों का शासन एक ही अध्यक्ष के हाथ में था; द्वितीय शताब्दी के प्रारंभिक दशकों से उसी पदाधिकारी के लिए 'बिशप' शब्द का प्रयोग होने लगा। रोमन काथलिक धर्म, प्राच्य चर्च तथा ऐंग्लिकन समुदाय में बिशप ईसा के पट्टशिष्यों (एपोसल्स) के उत्तराधिकारी माने जाते हैं; वे पौरोहित्य संस्कर की परिपूर्णता प्राप्त कर चुके होते हैं और दूसरों को भी पुरोहित बना सकते हैं (दे. पुरोहित)। कई लूथरन तथा प्रोटेस्टैंट संप्रदायों में भी बिशप की उपाधि प्रचलित है किंतु वहाँ बिशप तथा साधारण पुरोहित, सभी समान रूप से सुसमाचार के सेवक माने जाते हैं; बिशप की प्रतिष्ठा केवल इसमें है कि वह चर्च का प्रशासन करते हैं। रोमन काथलिक चर्च में माना जाता है कि ईसा ने अपने शिष्यों में से बारह पट्टशिष्यों को चुनकर तथा उन्हें विशेषाधिकार प्रदान कर बिशप का पद ठहराया है, अत: अपने अभिषेक द्वारा बिशप को भी वे ही अधिकार प्राप्त हो जाते हैं और वह ईसा के इच्छानुसार विश्व भर के बिशपों तथा पोप से संयुक्त रहकर पोप के नाम पर नहीं अपितु ईसा द्वारा प्रदत्त अधिकार के बल पर अपनी प्रजा का आध्यात्मिक संचालन करते हैं (दे. पोप)। (रेवरेंड कामिल बुल्के)