बिल्ली मांसभक्षी गण (order Carnivora) के फीलिडी कुल (family Felidae) का स्तनपायी जीव है। यह संसार के प्राय: सभी भागों में जंगली और पालतू अवस्था में पाई जाती है। यह एशिया में बोर्नियो के आगे नहीं पाई जाती और ऑस्ट्रेलिया तथा मैडागैस्कर में भी नहीं दिखाई पड़ती।

सब देशों की बिल्लियों का स्वभाव एक जैसा ही होता है और वे सब अपना मारा हुआ शिकार ही खाती हैं। छोटे मोटे जानवर,

चित्र १. बिल्ली की आँखें

क. दिन में तथ, ख. रात में।

चिड़ियाँ, चूहे, सरीसृप, मेढ़क, मछली और कीड़े मकोड़े इनके मुख्य भोजन हैं। पालतू बिल्लियाँ दूध, दही और पनीर भी बड़े स्वाद से खाती हैं।

फीलिडी कुल बहुत विस्तृत कुल है। इसमें सिंह (lion), जैग्वार (jaguar), बाघ (tiger), तेंदुआ (leopard), स्याहगोश (caracal), तेंदुआ बिल्ली (leopard cat), प्यूमा (puma), चीता सिकमार (marbled cat), शाह (snow leopard), लमचित्ता (clouded leopard), बाघदशा (fishing cat) आदि, बहुत से मांसभक्षी जीव आते हैं। तेज पंजे और नुकीले कुकुरदंत इनकी विशेषताएँ हैं।

बिल्लियाँ सबसे पहले मिस्र देश में, अन्नसंग्रह को चूहों से बचाने के लिए, ईसा के ३,००० वर्ष पूर्व पालतू की गईं। मनुष्यों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होने पर, मिस्र में इन्हें एक देवता का स्वरूप

 

दे दिया गया। अफ्रीका की जंगली बिल्ली (Felis lybica) को मिस्र में पालतू बनाया गया। यह सिलेटी रंग की बिल्ली थी और इसके शरीर पर काली धारियाँ और धब्बे थे। इसके बाल छोटे और दुम का सिरा काला रहता था।

मिस्र से ये पालतू बिल्लियाँ अन्य सभ्य देशों में फैलीं, जहाँ इनसे और यूरोप की जंगली बिल्लियों (Felis selvestris) के मेल से एक नई जाति निकली। इन बिल्लियों की दुम और शरीर पर के बाल लंबे होने लगे। मिस्र देश की पालतू बिल्लियाँ व्यापारियों के द्वारा इटली पहुंची और वहाँ से ये यूरोप में फैल गईं।

पालतू बिल्लियों की इतनी अधिक जातियाँ नहीं होतीं जितनी हम कुत्तों में पाते हैं और न कुत्तों की तरह इनकी गतियों में भेद ही रहता है। इनको हम दो मुख्य भागों में बाँट सकते हैं : १. छाटे बालोंवाली बिल्लियाँ तथा २. बड़े बालोंवाली बिल्लियाँ।

छोटे बालोंवाली बिल्लियाँ यूरोप, एशिया और अफ्रीका में फैनी हुई हैं, लेकिन बालोंवाली बिल्लियाँ केवल ईरान, अफगानिस्तान तथा इनके पड़ोसी देशों में ही पाई जाती हैं।

बड़े बालोंवाली बिल्लियाँ भी अंगोरा (Angora) और ईरानी (Persian), इन दो जातियों में विभक्त हैं। अंगोरा बिल्लियों के बाल ईरानी बिल्लियों से बड़े और मुलायम होते हैं और इनका मुँह भी गोल न होकर लंबोतरा रहता है। ईरानी बिल्लियों का मुँह गोल रहता है और इनकी दुम का सिरा झबरा रहता है। यूरोप और अमरीका में ईरानी बिल्लियाँ अँगोरा बिल्लियों से अधिक संख्या में दिखाई पड़ती हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि ये बिल्लियाँ मध्य एशिया के फीलीस मैनुल (Felis manul) वंश की जंगली बिल्ली से पालतू की गई हैं।

मैंक्स (Manx), या बिना दुम की बिल्लियाँ, मलाया और फिलिपीन्स आदि पूर्वी देशों में उसी तरह फैली हुई हैं जिस प्रकार यूरोप में ईरानी बिल्लियाँ। इनके दुम के स्थान पर बालों का गुच्छा सा रहता है, लेकिन उसमें हड्डी नहीं रहती। हमारे देश की पालतू बिल्लियाँ बहुत कुछ अफ्रीका की जंगली बिल्लियों जैसी होती हैं और इनके सिलेटी बदन पर काली धारियाँ और धब्बे पड़े रहते हैं। ये शायद यहाँ की जंगली बिल्ली (Felis constantina ornata) से पालतू की गई हैं।

ऐबिसिनिया की बिल्लियों का रंग खैरा और दुम का सिरा काला होता है, लेकिन इनके शरीर पर न तो काली धारियाँ ही रहती हैं और न धब्बे ही। इनके बाल छोटे और कान बड़े होते हैं।

स्याद देश की बिल्लियाँ भी यूरोप और अमरीका में काफी संख्या में फैली हुई हैं। इनका रंग हल्का भूरा या संदली रहता है। चेहरा, कान, दम और पंजे कलछौंह, या गाढ़े कत्थई, रहते हैं। आँखे पीली या नीली, सर बड़ा और लंबोतरा और शरीर के बाल छोटे होते हैं।

अपने छोटे बालों के कारण स्याम देश की बिल्लियाँ ज्यादा पसंद की जाती हैं, क्योंकि बड़े बालोंवाली अंगोरा और ईरानी बिल्लियों के मुकाबले इनका पालना आसान होता है। (सुरेश सिंह)