बिल विविध प्रकार के लेख्यों के लिए यह शब्द प्रयुक्त किया जाता है। यह अंग्रेजी शब्द है, किंतु अब इसका प्रयोग भारतीय भाषाओं में होने लगा है। न्याय, व्यापार और विधि से संबंधित विषयों के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। न्याय में अभियोग चलने से पहले कानूनी सलाह देनेवाले सॉलिसिटर द्वारा मुवक्किल को दी हुई व्यय की सूची को बिल ऑव कास्ट कहते हैं। व्यापार में विक्रय की हुई वस्तुओं की, मूल्यों सहित सूची को बिल कहते हैं। बिल का विधेयक के अर्थ में प्रयोग संसद द्वारा पारित विधि के संबंध में भी किया जाता है। इंग्लैंड की संसद ही संसदीय पद्धति की जन्मदात्री है। इंग्लैंड के राजा हेनरी षष्ठ के काल से पहले राजनियम बनाने की प्रथा दूसरे प्रकार की थी। पार्लमेंट राजा के पास प्रार्थनापत्र भेजती थी कि राजा अमुक नियम बनाए। परंतु धीरे धीरे राजनियम बनाने का प्रथा दूसरे प्रकार की थी। अपने हाथ में लेना शुरू किया और ब्रिटिश संसद ही पूर्णतया विधि बनाने की अधिकारिणी हो गई। इस प्रथा का अनुसरण संसार की सभी विधायिनी सभाओं ने किया है। बिल या विधेयक एक प्रस्ताव होता है जिसे विधि का स्वरूप देना होता है। कुछ देशों में, जैसे इंग्लैंड या भारत में, विधेयकों की दो श्रेणियाँ होती हैं- सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयक। इसके अतिरिक्त यदि कोई विधेयक सरकार द्वारा प्रेषित होता है तो उसे सरकारी विधेयक कहते हैं। सरकारी विधेयक दो प्रकार के होते हैं। सामान्य सार्वजनिक विधेयक तथा धन विधेयक। पर जब संसद का कोई साधारण सदस्य सार्वजनिक विधेयक प्रस्तुत करता है तब इसे प्राइवट सदस्य का सार्वजनिक विधेयक कहते हैं। सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया में अंतर होता है। संयुक्तराष्ट्र अमेरिका में सार्वजनिक या असार्वजनिक विधेयक जैसे भेद नहीं हैं। साधारणतया संसद के दोनों सदनों में समान कार्यविधि की व्यवस्था होती है। प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पहले प्रत्येक सदन में अलग अलग पांच स्थितियों से गुजरना पड़ता है और उसके तीन वाचन (Reading) होते हैं। पाँचों स्थितियाँ इस प्रकार हैं पहला वाचन, दूसरा वाचन, प्रवर समिति की स्थिति, प्रतिवेदन काल (report stage) तथा तीसरा वाचन। जब दोनों सदनों में इन पाँचों स्थितियों से विधेयक गुजर कर बहुमत से प्रत्येक सदन में पारित हो जाता है तब विधेयक सर्वोच्च कार्यपालिका के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। सर्वोच्च कार्यपालिका की अनुमति के बिना कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता। अत: किसी भी विधेयक को विधि में परिणत होने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि वह दोनों सभाओं द्वारा स्वीकृत हो। इसके उपरांत सर्वोच्च कार्यपालिका की, हस्ताक्षर सहित, स्वीकृत भी अनिवार्य है। (शुभदा तेलंग)