बाहरी मार्ग (Byepass) या उपमार्ग नगरों के भीड़वाले क्षेत्रों, या अन्य ऐसी रुकावटों, को छोड़कर धुर (through) यातायात के सीधा निकल जाने के लिए बनाए जाते हैं। जब किसी नगर, पुर या ग्राम के बीचोबीच कोई धुर सड़क गुजरती है, तो इस सड़क पर चलनेवाले भारी यातायात से उस नगर के व्यवसायियों और अन्य लोगों को बड़ी असुविधा होती है। कभी कभी बड़ी दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त उस धुर सड़क की यातायात वहन सामर्थ्य (एक घंटे में अधिकतम गाड़ियाँ गुजरने की संख्या) सड़क के उस भीड़वाले खंड के कारण घट जाती हैं। इसलिए उस सड़क के उपयोग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और धुर जानेवाली गाड़ियों का बहुत समय नष्ट होता है। इसलिए ऐसी अवस्थाओं में बाहरी मार्ग की आवश्यकता प्रतीत होती है और उसके बन जाने के बाद उपर्युक्त कमियाँ दर हो जाती हैं। बाहरी मार्ग का निर्माण धुर जानेवाले यातायात और उस भीड़वाले क्षेत्र दोनों के लिए ही हितकर होता है। अमरीका में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि बड़ी सड़कों पर होनेवाले यातायात के ८५ से ९० प्रतिशत लोगों को राह में पड़नेवाले नगर में कोई कार्य नहीं होता। उसके बहुत थोड़े से अंश को नगर में से निकलकर जाने की आवश्यकता होता है। बाहरी मार्ग अधिकतर नगर की बाहरी सीमा के गिर्द ही बनाए जाते हैं, जिससे उसपर स्थानीय यातायात का कम से कम प्रभाव पड़े। प्राय: बाहरी मार्ग की लंबाई उस सड़क की नगर के बीचों बीच पड़नेवाली लंबाई से कहीं अधिक होती है। इसलिए उसके बनाने की लागत बहुत बैठती है। बाहरी मार्ग तभी बनाना चाहिए, जब धन लगाने से पहले लागत और लाभ का अध्ययन कर लिया जाए और उससे बाहरी मार्ग बनाना उचित सिद्ध हो।
बाहरी मार्ग की चौड़ाई और अन्य मानक वही होने चाहिए जो खुले प्रदेश में गुजरनेवाली उस प्रकार की सड़क के हों। चाहे पिछले प्रकार की सड़क पर एक गलीवाला ही यानमार्ग हो, बाहरी मार्ग पर दो गली वाला यानमार्ग ही बनाना चाहिए, क्योंकि बड़े नगरों और पुरों के पड़ोस में बने बाहरी मार्गों पर यातायात भारी होता है।
अब भारत में राष्ट्रीय मार्गों के साथ बाहरी मार्ग अधिकतर बनाए जा रहे हैं, जिससे यातायात की गति में रुकावट न हो। (जगदीश मित्र त्रेहन)