बालाजी आवजी चिटनवीस बालाजी के पिताजी आबाजी हरी मजुमदार उपनाम चित्रे ग्यारह वर्षों तक जंजीरा में बाबजी खाँ हब्शी के मुख्य कारबारी थे। बाबजी खाँ की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने आबाजी को मारकर समुद्र में फेंक दिया। आबाजी के बालाजी आदि चार पुत्र थे। उनके मामा ने उनका लालन पालन किया।

सन् १६४७-१६४८ के लगभग जब शिवाजी ने स्वराज्य स्थापना की क्रांति की धूम मचाई तो बालाजी ने उसमें सम्मिलित होने का अपना निश्चय शिवाजी को एक पत्र लिखकर प्रकट किया। उसके सुंदर अक्षर, लेखनकौशल और विशेषत: उसमें जो स्वराज निष्ठा प्रदर्शित हुई थी उसको पढ़कर शिवाजी बालाजी और उसके भाई तथा माताजी को अपने साथ ले गए। बालाजी की सेवा देखकर शिवाजी ने ता. १६ अगस्त, सन् १६६२ को चिटनीस का कार्यभार उन्हें सौंपा। बालाजी को हमेशा शिवाजी के साथ रहना पड़ता था। जब सन् १६६६ ई. में शिवाजी आगरा में कैद हुए तो उनको मुक्त कराने की बालाजी ने भरसक चेष्टा की। राजकीय दफ्तर का काम तो बालाजी करते ही थे किंतु वकालत का काम भी वे बड़ी सफाई के साथ करते थे। जंजीरा के सिद्दी के प्रकरण में बालाजी की स्पष्टता तथा एकनिष्ठा प्रशंसनीय थी। ता. १३ अक्टूबर, सन् १६४७ को बालाजी को पालकी का सम्मान मिला। बालाजी की लेखनशैली सरल तथा स्पष्ट थी जिससे राजकीय मामलों में कभी गड़बड़ी नहीं होती थी। वे सच्चे स्वामीसेवक थे। बालाजी जी स्मृति अत्यंत तीव्र थी। वे एक सफल राजनीतिज्ञ थे। मराठों के इतिहास में बालाजी एकनिष्ठता के प्रतीक हैं। मोडी लिपि को सरल, स्पष्ट करने में भी वे अग्रमन्य हैं। महाराज शिवाजी की दु:खद मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र संभाजी ने अकारण आशंकित होकर इस एकनिष्ठ राजसेवक को बड़ी क्रूरता से मरवा दिया। (भीमराव गोपाल देशपांडे)