बालमुकुंद गुप्त, जन्म
गुड़ियानी गाँव, रोहतक में १८६५ ई. (कार्तिक शुक्ल ४, सं. १९२२
वि.) में हुआ। पिता का नाम था पूरनमल। गाँव में उर्दू और फारसी
की प्रारंभिक शिक्षा के बाद १८८६ ई. में पंजाब विश्वविद्यालय से
मिडिल परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण। विद्यार्थी जीवन
से ही उर्दू पत्रों में लेख लिखने लगे। झज्झर (जिला रोहतक) के
'रिफाहे आम' अखबार और मथुरा के 'मथुरा समाचार'
उर्दू मासिकों में पं. दीनदयालु शर्मा के सहयोगी रहने के बाद
१८८६ ई. में चुनार के उर्दू पत्र 'कोहेनूर' का संपादन किया।
उर्दू के नामी लेखकों में आपकी गणना होने लगी। १८८९ ई. में
महामना मालवीय जी के अनुरोध पर पर कालाकाँकर (अवध) के
हिंदी दैनिक 'हिंदोस्थान' के सहकारी संपादक हुए जहाँ तीन
वर्ष रहे। यहाँ पं. प्रतापनारायण मिश्र के संपर्क में हिंदी के
पुराने साहित्य का अध्ययन किया और उन्हें अपना काव्यगुरु स्वीकार
किया। 'गवर्नमेंट के विरुद्ध कड़ा' लिखने पर वहाँ से हटा
दिए गए। अपने घर गुड़ियानी में रहकर मुरादाबाद के 'भारत
प्रताप' उर्दू मासिक का संपादन किया और कुछ हिंदी तथा बँगला
पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद किया। अंग्रेजी का इसी बीच अध्ययन
करते रहे। १८९३ में 'हिंदी बंगवासी' के सहायक संपादक होकर
कलकत्ता गए और छह वर्ष तक काम करके नीति संबंधी मतभेद
के कारण इस्तीफा दे दिया। १८९९ में 'भारतमित्र' कलकत्ता के
संपादक हुए और मृत्यु पर्यंत इस पद पर रहे। मृत्यु १८ सितंबर,
१९०७ ई. को दिल्ली में हुई। 'भारतमित्र' में आपके प्रौढ़
संपादकीय जीवन का निखार हुआ। भाषा, साहित्य और राजनीति
के सजग प्रहरी रहे। देशभक्ति की भावना इनमें सर्वोपरि थी।
भाषा के प्रश्न पर 'सरस्वती' संपादक, पं. महावीर प्रसाद
द्विवेदी से इनकी नोंक झोंक, लार्ड कर्जन की शासन नीति की
व्यंग्यपूर्ण और चुटीली आलोचनायुक्त 'शिवशंभु के चिट्ठे'
और उर्दूवालों के हिंदी विरोध के प्रत्युत्तर में 'उर्दू बीबी
के नाम चिट्ठी' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। लेखनशैली सरल,
व्यंग्यपूर्ण, मुहावरेदार और हृदयग्राही होती थी। पैनी राजनीतिक
सूझ और पत्रकार की निर्भीकता तथा तेजस्विता इनमें कूट कूट
कर भरी थी। उर्दू और हिंदी अखबारों का इतिहास लिखने के
अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर अपकी आठ मौलिक और अनुवादित
पुस्तकें हैं।
(बनारसी प्रसाद मिश्र)