बालकृष्ण भट्ट जन्म प्रयाग के अहियापुर मुहल्ले में गौतम गोत्रीय मालवीय ब्राह्मण परिवार में ३ जून, १८४४ ई. (आषाढ़ कृष्ण द्वितीया, सं. १९०१ वि.) को हुआ। पिता बेनीप्रसाद भट्ट व्यवसायी थे। माता पार्वतीदेवी पढ़ी लिखी धर्मपरायण महिला थीं। प्रारंभिक शिक्षा यमुना मिशन स्कूल, प्रयाग में हुई। लालन पालन ननिहाल में हुआ। वहीं रहकर भट्ट जी ने शिक्षा प्राप्त की। भट्ट जी की प्रखर बुद्धि और जिज्ञासु प्रवृत्ति देखकर विद्यालय के एक अध्यापक पादरी डेविड इनको बहुत चाहते और इनकी सहायता करते थे। पर आप तिलक लगाकर विद्यालय जाते थे इसलिए पादरी खीझते भी थे। स्कूली शिक्षा सन् १८६७-६८ में समाप्त कर घर में ही स्वतंत्र रूप से हिंदी, अंग्रेजी, बँगला, फारसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। बाद में डेविड पादरी के अनुरोध से मिशन स्कूल में सन् १८६९ से २५ रुपए मासिक पर अध्यापकी करने लगे। पर वहाँ धार्मिक विवाद के कारण नौकरी छोड़ दी।

यद्यपि विवाह सन् १८५६ में ही हो गया तथा तथापि इनकी पत्नी (रमा देवी) नए घर में सन् १८६४ में आईं। २५ रु. मासिक पानेवाले भट्ट जी निखट्टू समझ लिए गए थे। मिशन स्कूल से त्यागपत्र के बाद आर्थिक कष्ट ने और भी आ घेरा। इसी बीच सितंबर १८७७ ई. से 'हिंदी प्रदीप' का संपादन संचालन भी आपने शुरू किया। आपने कायस्थ पाठशाला के संस्कृत प्रधानाध्यापक पद पर २० वर्ष तक अध्यापन के बाद सन् १९०८ में अपनी निर्भीक राष्ट्रीयता के कारण विद्यालय से त्यागपत्र दे दिया। फिर आपने कालाकाँकर से निकलनेवाले 'सम्राट्' साप्ताहिक पत्र का संपादन आरंभ किया। चार महीने बाद मतवैभित््रय के कारण आप छोड़कर चले आए। सन् १९१० में काशी नागरीप्रचारिणी सभा के आमंत्रण पर आपने सभा से तैयार हो रहे हिंदी शब्दसागर के सहायक संपादक का कार्यभार स्वीकार किया। कुछ समय तक काशी में कोश विभाग में कार्य करने के बाद प्रधान संपादक बाबू श्यामसुंदर दास से कुछ अनबन हो जाने के कारण सन् १९१३ में कोश विभाग से त्यागपत्र दे दिया। अप्रैल, १९१४ में बीमार पड़े और २० जुलाई, १९१४ में बीमार पड़े और २० जुलाई, १९१४ (श्रावण कृष्ण १३, सं. १९७१) को प्रयाग में उनकी मृत्यु हुई।

भट्ट जी मूलत: पत्रकार थे। 'हिंदी प्रदीप' इनका जीवनसर्वस्व था। सितंबर १८७७ में 'हिंदी प्रदीप' का प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। भट्ट जी की कुशल संपादनकला, निर्भीक राष्ट्रीयता, प्रखर बौद्धिकता और सबसे बढ़कर उनकी हिंदीसेवा तथा जनमतनिर्माण का आंदोलन 'हिंदी प्रदीप' का सारतत्व है। अनेक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कठिनाइयों का सामना करते हुए 'हिंदी प्रदीप' ब्रिटिश सरकार की नीति, असामाजिक तत्वों अज्ञानता, दरिद्रता और सामाजिक कुरीतियों के साथ ३३ वर्षों तक अनवरत लोहा लेता रहा। भट्ट जी ने अनेक शैलियों में अनेक प्रकार के रोचक ललित निबंध लिखे हैं। भट्ट जी के पाँच निबंधसंग्रह प्राप्त हैं- साहित्य सुमन, भट्ट निबंधावली भाग - १ और २ तथा भट्ट निबंध माला भाग - १ और २।

भट्ट जी के कुल आठ उपन्यास प्राप्त हैं - १. रहस्यकथा, २. गुप्त बैरी, ३. उचित दक्षिणा, ४. नूतन ब्रह्मचारी, ५. सद्भाव का अभाव, ६. सौ अजान एक सुजान, ७. हमारी घड़ी, तथा ८. रसातल यात्रा। इनका एक अनूदित उपन्यास 'बृहत्कथा' भी है।

भट्ट जी ने कुल १९ नाटकों और प्रहसनों का प्रणयन किया है- विषयानुसार उनकी नाट्य रचनाएँ निम्नांकित हैं- (क) राजनीतिक - (१) भारतवर्ष और कलि, (२) इंग्लैंडेश्वरी और भारत जननी, (३) दो दूरंदेशी, (४) हिंदुस्तान और अफगानिस्तान और (५) एक रोगी और वैद्य। (ख) सामाजिक - (१) शिक्षादान, (२) नई रोशनी का विष, (३) पतित पंचम, (४) आचार विडंबन, (५) कट्टर सूम की नकल। (ग) पौराणिक - (१) बृहन्नला, (२) सीता वनवास, (३) दमयंती स्वयंबर, (४) मेघनादवध, (५) किरातार्जुनीय। (घ) ऐतिहासिक- चंद्रासेन, पद्मावती (अनूदित)।

भट्ट जी हिंदी गद्य साहत्य की बहुत समर्थ शैली के प्रतिष्ठापक थे। इन्होंने विविध शैलियों में निबंधों की रचना की है जिससे हिंदी की शैली का रूप विकसित हुआ। (मधुकर भट्ट)