बारथलम्यू ज़िगेनबल्ग का जन्म १७ जून, १६८३ ई. में पुल्सनित्ज, इंग्लैंड में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए वे हेली विश्वविद्यालय भेजे गए।
बारथलम्यू और उनके साथी हेनरी प्लुत्शो को धर्मप्रचार के लिए भारत जाने की आज्ञा दी गई। कई मास की कठिन यात्रा के बाद १७०५ के अंत में वे त्रांकोबार पहुँचे। उन्होंने वहाँ के गवर्नर से भेंट करने की इजाजत माँगी। ज़िगेनबल्ग को किसी प्रकार टिकने की आज्ञा मिल गई परंतु प्लुत्शो को इज़ाज़त नहीं मिली। उन्हें दूसरी जगह जाना पड़ा। यह दोनों डेनिश हेली मिशनश् के मिशनरी थे जिन्होंने धर्मप्रचार का कार्य भारत में आरंभ किया।
अब ज़िगेनबल्ग के लिए भारतीय भाषा सीखना आवश्यक था। उन्होंने एक प्राइमरी शाला के शिक्षक से दोस्ती की जिससे बालकों की पहली कक्षा उनके कमरे में बैठने लगी। ज़िगेनबल्ग भी विद्यार्थियों के साथ बैठ जाते और जब बालक रेत पर अँगुली से अक्षर लिखते वे भी उनकी नकल करते और उसी प्रकार का रूप बनाते थे। इस प्रकार कुछ समय में उन्होंने वर्णमाला के सब अक्षर सीख लिए। इसके बाद उन्होंने एक ब्राह्मण से मित्रता की जो थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी जानते थे। उन ब्राह्मण महाशय की सहायता से उन्होंने आठ माह में तमिल भाषा का यथोचित ज्ञान प्राप्त कर लिया।
उन दिनों गुलामी की प्रथा वर्तमान थी। कुछ यूरोपीय लोग भी गुलाम रखते थे। ज़िगेनबल्ग ने उन्हें प्रति दिन दो घंटे सिखाने का काम शुरू किया। एक साल के अंदर ही पाँच व्यक्तियों ने विश्वास किया और बपतिस्मा पाया।
ज़िगेनबल्ग ने अपने ही पैसे से एक गिर्जाघर बनवाया और उसके अर्पण के समय तमिल और पोर्तुगीज़ भाषा में उपदेश दिए। अब वे दौरा कर व्यक्तिगत प्रचार करने लगे।
दो वर्ष में ही वे तमिल भाषा उतनी सरलता और स्वाभाविकता से बोल सकते थे जितनी निज जर्मन भाषा। उन्होंने तमिल भाषा का व्याकरण तैयार किया और गद्य तथा पद्य में दो अलग-अलग किताबें लिखीं। उन्होंने कई किताबों का तमिल पद्य में दो अलग अलग किताबें लिखीं। उन्होंने कई किताबों का तमिल पद्य में अनुवाद भी किया। सन् १७११ में उन्होंने नए नियम (न्यू टेस्टामेंट) का गद्य पद्य में अलग-अलग अनुवाद किया। भारतीय भाषा में बाइबिल का यह सर्वप्रथम अनुवाद था। उन्होंने कई अन्य पुस्तकें भी लिखीं।
१७२५ ई. में शारीरिक अस्वस्थता के कारण वे स्वदेश लौट गए। चार वर्ष बाद वे पुन: भारत आए और अपने क्षेत्र में कार्य करने लगे परंतु उनका स्वास्थ पुन: खराब हो गया और ६ मई, १७४१ ई. को भारत में ही उनक प्राणांत हो गया। (मिल्टन चरण)