बायरन, जॉर्ज गॉर्डन प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि। उनका जन्म २२ जनवरी, सन् १७८८ ई. को लंदन में हुआ। उनके पिता जॉन बायरन सेना के कप्तान और बहुत ही दुराचारी थे। उनकी माता कैथरीन गौर्डन ऐवर्डीनशायर की उत्तराधिकारिणी थीं। उनके पिता ने उनकी माता की सारी संपत्ति दुराचार में लुटा दी, यद्यपि उनकी अपनी संपत्ति कुछ भी नहीं थी, और उनके पिता के चाचा ने, जिनके वह उत्तराधिकारी थे, परिवार की सब जायदाद बुरे कामों में नष्ट कर दी। बेचारे बायरन के हाथ कुछ न लगा। उनकी शिक्षा सार्वजनिक विद्यालय हैरों तथा केंब्रिज विश्वविद्यालय में हुई।
सन् १८०७ में, जब बायरन की अवस्था केवल २० वर्ष की थी, उनका एक निरर्थक काव्यग्रंथ 'ऑवर्स अॅव आइडिलनेस' प्रकाशित हुआ। 'एडिनबरा रिव्यू' ने इसका बहुत मज़ाक उड़ाया और बड़ी बड़ी आलोचना की। किंतु बायरन चुप रहनेवाले व्यक्ति नहीं थे, उन्होंने अपने व्यंग्यात्मक काव्य 'इंग्लिश बार्ड्स ऐंड स्कॉच रिव्यूअर्स' में, जो सन् १८०९ में प्रकाशित हुआ, इस कटु आलोचना का मुँहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद वह भूमध्यसागरीय प्रदेशों का पर्यटन करने चले गए और १८११ ई. में घर लौटने पर अपने साथ 'चाइल्ड हैरोल्ड' के प्रथम दो सर्ग लाए जो सन् १८१२ में प्रकाशित हुए। ये सर्ग इतने लोकप्रिय हुए कि बायरन का नाम समाज और साहित्य में सब जगह फैल गया और जब सब लोगों के हृदय में उनके प्रति अत्यंत प्रशंसा तथा आदर का भाव उमड़ पड़ा। १८१३ ई. से लेकर १८१५ ई. तक उनकी कथात्मक काव्यरचनाएँ 'दि ब्राइड ऑव एबीडौस', 'दि कौर्सेयर', 'लारा', 'दि सीज़ ऑव कॉरिंथ', और 'पैरिज़िना' - प्रकाशित हुईं।
१८१५ ई में बायरन का विवाह ऐन इज़ावेल्ला मिल्कबैंक से हुआ जो एक सुप्रसिद्ध और धनाढ्य परिवर की महिला थीं। किंतु एक वर्ष उपरांत बायरन के चरित्रहीन व्यवहार के कारण वे उन्हें छोड़कर सदैव के लिए अपने मायके चली गईं। इस दुर्घटना के कारण सारा इंग्लैंड बायरन के प्रति क्रोध और घृणा के भाव से क्षुब्ध हो उठा। इससे वह स्वदेश छोड़कर स्विटज़रलैंड चले गए जहाँ वह शैली परिवार में कुछ समय रहे। वहाँ से वह वेनिस चले गए और लगभग दो वर्ष तक वहीं रहे। वेनिस में कांउटेस ग्विचोली से उनका प्रेम हो गया। तदुपरांत वे पीसा तथा जेनिवा गए और १८२४ ई. में वह यूनानियों के स्वतंत्रता युद्ध में यथाशक्ति सहायता करने के हेतु मिसोलोंगी पहुँचे। यूनानियों ने उनका एक राजा के समान स्वागत किया। उन्होंने भी तन, मन, धन से उनकी सहायता की किंतु उसी वर्षं उनका देहांत हो गया।
१८१५ ई. से लेकर १८२४ ई. तक बायरन के अनेक प्रकार की काव्यरचनाएँ कीं - छोटी छोटी गीतात्मक कविताएँ जो १८१५ में 'हिब्रू मेलोडीज़' के नाम से प्रकाशित हुईं, 'चाइल्ड हेरोल्ड' के अंतिम दो सर्ग, जो पहले दो सर्गों से भी अधिक उत्तम हुए, बहुत से नाटक जिनमें से 'मैन्फ्रडी' तथा 'सार्डेनाप्लस' सबसे उत्कृष्ट हैं। किंतु उनका कोई नाटक रंगमंच के उपयुक्त नहीं है, यद्यपि उनकी काव्यशैली पर्याप्त ओजस्विनी है; दो गीतकाव्य 'दि ड्रीम' तथा 'डार्कनेस' उनकी गीतात्मक कविताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। उनकी अंतिम और सबसे अच्छी कथात्मक रचना 'मेजप्पा' है।
यद्यपि सभी प्रकार के काव्य में बायरन का अपना स्थान है, तथापि उनकी प्रतिभा मुख्यत: वर्णनात्मक, कथात्मक तथा उपहासात्मक थी। उनकी कथात्मक कविताएँ इतनी लोकप्रिय हुईं कि सर वाल्टर स्कॉट ने कविता में कहानियाँ लिखना बंद कर दिया और उपन्यासों की सृष्टि करने लगे। उनके ऐतिहासिक स्थानों अथवा घटनाओं और पात्रों के वर्णन अद्वितीय हैं। इसी कारण उनके 'चाइल्ड हेरोल्ड' नामक काव्यग्रंथ की अत्यंत ख्याति हुई और उनका प्रभाव संपूर्ण यूरोप के कवियों पर पड़ा। बायरन की उपहासात्मक प्रतिभा विलक्षण थी और उन्होंने विविध उपहासकृतियों की रचना की जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 'डान जूअन' है। यह ग्रंथ उपहासात्मक महाकाव्य है, किंतु कदाचित् शांत रस के अतिरिक्त कोई भी ऐसा रस नहीं है जो इसमें विद्यमान न हो। अंग्रेजी काव्य में जो भी उपहासात्मक रचनाएँ है उनमें इसका स्थान सबसे ऊँचा है। शुद्ध काव्यदृष्टि से बायरन बहुत बड़े कवि नहीं हैं और उनमें विचारशक्ति की न्यूनता भी खटकती है, किंतु समवेदना तथा अपने वासनामय उद्गारों और हार्दिक भावनाओं को व्यक्त करने में वे अनुपम हैं और संसार के स्वतंत्रतावादी कवियों में उनका ऊँचा स्थान है। (बृजमोहन लाल साहनी)