बामियाँ काबुल से उत्तर पश्चिम में प्राचीन तक्षशिला-बैक्ट्रिया मार्ग पर बामियाँ के भग्नावशेष आज भी अपने गौरव के प्रतीक है। युवान् च्वाङ् ने फ़न-येन-न (बामियाँ) राज्य का उल्लेख किया है। उसके अनुसार इसका क्षेत्र पश्चिम से पूर्व २००० ली (लगभग ३३४ मी.) और उत्तर से दक्षिण ३०० ली (५० मी.) था। इसकी राजधानी छह-सात ली अथवा एक मील के घेरे में थी। यहाँ के निवासियों की रहन सहन तुषार देशवासियों जैसी थी। उनकी रुचि मुख्यतया बौद्ध धर्म में थी। यहाँ पर कोई १० विहार थे जिनमें १०० भिक्षु रहते थे जो लोकोत्तरवादी संप्रदाय से संबंधित थे। नगर के उत्तर-पूर्व में पहाड़ी की ढाल पर कोई १४०-१५० फी. ऊँची बुद्धप्रतिमा थी। वहाँ से दो मील की दूरी पर एक विहार में बुद्ध की महापरिनिर्वाण दशा में एक बड़ी मूर्ति थी। युवान् च्वाङ् के कथनानुसार दक्षिण पश्चिम में ३४ मील की दूरी पर एक बौद्ध संघाराम था जहाँ बुद्ध का एक दाँत सुरक्षित रखा था।
इस वृत्तांत की पुष्टि अफगानिस्तान में हिंदूकुश पहाड़ी तथा वामियाँ एवं वहाँ की विशाल मूर्तियों से होती है। एक मील की लंबाई में चट्टान के दोनों छोर पर क्रमश: १२० तथा ११५ फी. ऊँची बुद्ध की मूर्तियाँ हैं। छोटी मूर्ति गंधार कला की प्रतीत होती है। वेशभूषा के आधार पर इसकी तिथि ईसवी की दूसरी तीसरी शताब्दी मानी जा सकती है। बड़ी मूर्ति का निर्माण लगभग १०० वर्ष बाद हुआ। इनके पीछे आलों की छतों में चित्रकला के भी अंश मिले हैं। इनको ससानी, भारतीय तथा मध्य एशिया से संबंधित वर्गों में रखा गया है। बामियाँ के चित्र अजंता की ९वीं तथा १०वीं गुफाओं के चित्रों तथा मीरन (मध्यएशिया) की कला से मिलते जुलते हैं।
यद्यपि चिंगेंज़ खाँ ने बामियाँ और वहाँ के निवासियों का पूर्णतया अंत कर दिया तथापि बुद्ध की इन प्रतिमाओं का उल्लेख 'आईन ए अकबरी' में भी मिलता है। कहा जाता है, प्रथम अफगान युद्ध के अंग्रेज बंदी सैनिकों को यहाँ रखा गया था।
सं.ग्रं. - हाकिन : आँतिक्यूरे बुद्धिक वदामियाँ; ए गाइड डु विज़ितयों सिटी आर्कियोलाजिक द बामियाँ (दोनों फ्रांसीसी में); बील बुद्धिस्ट रेकार्ड्स् ऑव दी वेस्टर्न वर्ल्ड, भाग १; इंसाइक्लोपीडिया ऑव आर्ट। (बैजनाथ पुरी)