बाक़ी बिल्लाह ख्वाजा अब्दुल बाक़ी का जन्म काबुल में १५६३-६४ ई. में हुआ। काबुल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे लाहौर गए और फिर कश्मीर में शेख बाबा वाली (मृ. १५९२ ई.) की सेवा में रहे। वहाँ से समरकंद के अमकना नामक ग्राम में मौलाना ख्वाजगी से नक्शबंदी सिलसिले में दीक्षा प्राप्त की। थोड़े दिन बाद लाहौर और फिर देहली पहुँचे। ३० नवंबर, १६०३ ई. को देहली में इनकी मृत्यु हो गई। उनके आगमन के पूर्व नक्शबंदी सिलसिले की भारत में पर्याप्त प्रसिद्धि हो चुकी थी। उनके शिष्यों में ख्वाजा हुसामुद्दीन, शेख ताजुद्दीन संभली एवं शेख अलहदाद अपनी उदारता के लिए बड़े प्रसिद्ध थे किंतु उनके शिष्य शेख अहमद सरहिंदी ने इस्लाम की शिक्षाओं का बड़ा संकीर्ण रूप प्रस्तुत किया। ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह के पुत्र ख्वाजा कलाँ एवं ख्वाजा खुर्द, जो क्रमश: शाहजहाँ एवं औरंगजेब के राज्यकाल में बड़े प्रसिद्ध हुए, उदारता के ही प्रतीक रहे।

सं.ग्रं. - मुहम्मद हाशिम बदख्शानी : जुबदतुल मक़ामात (लखनऊ, १८८५, फ़ारसी); बद्रुद्दीन सरहिंदी : हज़रातुल कुदस (ह.लि., रामपुर, रजा पुस्तकालय, फ़ारसी); मुस्लिम रिवाइवलिस्ट मूवमेंट्स इन नार्दर्न इंडिया इन द सिक्सटींथ ऐंड सेवेंटींथ सेंचुरीज़ (आगरा, १९६५)। (सैयद अतहर अब्बास रिज़वी)