बहुरूपदर्शक
(Kaleidoscope) यह
उपकरण प्रकाश के परावर्तन सिद्धांत पर बना हुआ है और खिलौने
के रूप में प्रचलित है। डेविड ब्रूस्टर (David Brewster) ने १८१५ ई. में इसे
आधुनिक रूप में बनाया था। ब्रूस्टर से लगभग १०० वर्ष पूर्व आर.
ब्रैडले (R. Bradley) ने एक
ऐसा ही यंत्र बनाया था, जिसे अभिकल्प बनानेवाले काम में लाया
करते थे।
यदि दो समतल दर्पण एक
दूसरे से क° का कोण बना रहे हों,
तो उनके सम्मुख रखी हुई किसी वस्तु के (३६०/क-१) प्रतिबिंब
बनते हैं। इसी सिद्धांत का उपयोग करके बहुरूपदर्शक बनाए
जाते हैं। साधारण बहुरूपदर्शक श्इंच
व्यासवाली लगभग ८ इंच लंबी खोखली नली का बना होता है।
नली के भीतर काच के ८ इंच लंबे तीन पतले प्लेट इस प्रकार
रखे रहते हैं कि वे एक दूसरे से ६०° का कोण बनाते रहें।
नली का एक सिरा कांच गोल चकतियों से बंद रहता है और
दूसरे सिरे पर केवल छोटा सा छिद्र होता है। ये चकतियाँ
एक दूसरी से लगभग
श्इंच
दूर होती हैं। बाहरी चकती अल्प-पारदर्शक तथा भीतरी पूर्णत:
पारदर्शक होती है। इनके बीच में रंगीन कांच के कुछ छोटे
छोटे टुकड़े डाल दिए जाते हैं। दूसरे सिरे के गोल छेद से
देखने पर इन रंगीन टुकड़े के प्रतिबिबो से बनी हुई
सुंदर आकृति ( putern) दिखाई
देती है। नली की गोलाई में घुमाने से टुकड़ों की स्थिति
बदलती जाती है और उससे नई-नईश् आकृतियाँ दिखाई पड़ती हैं
चित्र १. बहुरूपदर्शक
ब्रूस्टर का बहुरूपदर्शक साधारण बहुरूपदर्शक से कुछ भिन्न होता है। इसमें तीन प्लेट के स्थान पर तीन लंबे दर्पण लिए जाते हैं और छिद्र के स्थान पर एक लेंस लगाया जाता है, जिसे नेत्रिका
(eyepiece) कहते हैं। लेंस और रंगीन टुकड़ों के बीच की दूरी इतनी रखी जाती है कि उनका प्रतिबिंब स्पष्ट दृष्टि (distinct vision) की न्यूनतम दूरी पर बने। यह दूरी लगभग २५ सेंमी. होती है। अच्छे बहुरूपदर्शक में दो नलियाँ एक दूसरी के भीतर इस प्रकार लगी रहती हैं कि उन्हें सरकाकर नेत्रिका और टुकड़ों के बीच की दूरी ठीक की जा सके।
बहुरूपदर्शक में तीनों दर्पणों का पारस्परिक झुकाव तीनों कोनों पर ६०° होता है, अत: रंगीन टुकड़ों के कुल १५ प्रतिबिंब तीन कोनों पर, पाँच पाँच के समूह में बनते हैं। इनसे बना हुआ अभिकल्प (design) बड़ा सुंदर होता है। आजकल बहुकोणीय बहुरूपदर्शक भी बनने लगे हैं। इनमें तीन से अधिक दर्पण प्रयुक्त होते हैं। (श्र.कु.ति.)