बहुभुज (Polygon) किसी समतल में न>२ (n>2) बिंदुओं को जोड़नेवाली न (n) रेखाओं से बनी बंद आकृति को कहते हैं। बिंदुओं को शीर्ष और रेखाओं का बहुभुज की भुजाएँ कहते हैं। तीन रेखाएँ (और तीन अंतष्कोण) होने पर इसे त्रिभुज चार रेखाएँ (और चार अंतष्कोण) होने पर चतुर्भुज और इसी प्रकार इससे अधिक रेखाएँ और अंतष्कोण होने पर पंचभुज, षड्भुज, सप्तभुज, अष्टभुज इत्यादि कहते हैं। जब एक बहुभुज के कोण दूसरे के कोणों के बराबर और भुजाएँ दूसरे की भुजाओं की समानुपाती हों तो बहुभुज समरूप बहुभुज कहलाते हैं। यदि केवल कोण ही बराबर हों, तो समान कोणिक कहलाते हैं। जब किसी बहुभुज की सब भुजाएँ और सब अंतष्कोण परस्पर समान हों तो उसे समबहुभुज कहते हैं। प्रत्येक समबहुभुज का एक परिवृत्त और एक अंतर्वृत्त खींचा जा सकता है। इसका विलोम कि यदि किसी षड्भुज का परिवृत्त या अंतर्वृत्त हो तो वह समबहुभुज है, सत्य नहीं है, क्योंकि किसी वृत्त पर कई बिंदुओं का मिलाने से बहुभुज बनता है, जो समबहुभुज नहीं है। इसी प्रकार यदि किसी वृत्त की कई स्पर्शरेखाएँ खींची जाएँ, तो वे भी बहुभुज बनाती हैं, परंतु यह समबहुभुज नहीं होगा। यदि कोई रेखा बहुभुज को दो बिंदुओं पर काट सके, तो उसे उत्तल कहा जाता है और यदि कोई रेखा बहुभुज को चार या अधिक बिंदुओं पर काट सके तो उसे अवतल कहते हैं।
उत्तल बहुभुज में प्रत्येक अंतष्कोण दो समकोण से छोटा होता है, परंतु अवतल में कोई कोण दो समकोण से बड़ा हो सकता है। न (n) भुजाओं के उत्तल बहुभुज के सब अंतष्कोणों कायोग २न-४ (2n-4) समकोण होता है। यदि उसकी भुजाएँ क्रमश: बढ़ाई जाएँ तो बहिष्कोणों का योग ४ समकोण होता है। अवतल बहुभुज के विषय में कोई ऐसी बात नहीं कहीं जा सकती। यदि समबहुभुज की भुजा की लंबाई स (s) हो, तो अंतर्वृत्त की त्रिज्या स/२ कोरप १८०°/न (s/2 cot 180°/n) होगी और परिवृत्त की त्रिज्या स/२ व्युज्या १८०°/न (s/2 cosec 108°/n) होगी। समबहुभुज में दो भुजाओं के बीच का कोण p(न-२)/न [p(n-2)/n] रेडियन का होता है।
यदि किसी बहुभुज के केंद्र
से उसकी भुजाओं की दूरी ल (a) हो, तो उसकी परिमिति २लन
स्प १८०°/न
(2an tan 180°/n), उसका क्षेत्रफल श्लनस
(1/2 ans) तथा विकर्णों की संख्या न
(न-३)/२
[n (n-3)/2] होती है।
ऐसे समबहुभुज जिनका उपयोग किसी समतल को पूरा पूरा ढकने के लिये हो सकता है। ये हैं- समबाहुत्रिभुज, वर्ग, और समषड्भुज, क्योंकि इनके अंतष्कोण ४ समकोण को पूरा पूरा बाँट देते हैं।
गणितीय विश्लेषण में किसी सतत वक्र की लंबाई उस बंद या खुले बहुभुज की भुजाओं के योग के सीमांत मान के बराबर होती है जो वक्र पर बिंदुओं को मिलाने से बनता है। इसी प्रकार किसी वक्र से सीमित क्षेत्रफल भी उसमें बनाए हुए बहुभुज के क्षेत्रफल की ऊपरी सीमा होती है, या निचली, जबकि वक्र बहुभुज के अंदर हो। (झ.ला.श.)