बहादुरशाह गुजरात का (१५०६-१५३७) १४०४ ई. में गुजरात के गवर्नर जफर खाँ ने मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण की तथा यहाँ एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। १५११ ई. में मुज़फ्फर शाह द्वितीय वहाँ का शासक हुआ। इसके आठ पुत्र थे, जिनमें बहादुर सबसे योग्य तथा महत्वाकांक्षी था। १५२६ ई. में मुजफ्फर शाह की मृत्यु हो गई। इस समय बहादुर दिल्ली में था। वहाँ भी वह अफगानों में जनप्रिय हो गया था तथा कुछ उमरा इब्राहिम लोदी के स्थान पर उसे उद्दी पर बैठाना चाहते थे। पानीपत के प्रथम युद्ध को उसने दूर से देखा था। मुगलों की सफलता ने उसे इतना भयभीत कर दिया कि मुगलों से युद्ध करने का उसे कभी साहस नहीं हुआ। पिता की मृत्यु के पश्चात् बड़ा भाई सिकंदर गद्दी पर बैठा किंतु कुछ ही दिनों में वह मार डाला गया। उमराओं के निमंत्रण पर बहादुर गुजरात आया और बिना किसी कठिनाई के जुलाई, १५२६ ई. में गुजरात का शासक बन गया।
बहादुरशाह लगभग ११ वर्ष गुजरात का शासक रहा (जुलाई १५२६ से फरवरी १५३७ ई. तक)। इस बीच अपनी योग्यता तथा शासन प्रबंध से उसने इतना यश प्राप्त कर लिया कि आज भी गुजरात के प्रमुख शासकों में उसकी गणना होती है। उसने एक शक्तिशाली सेना-विशेषतया तोपखाना-संगठित किया। हिंदुओं के साथ उसका बर्ताव अच्छा था। उसने अपने महल, हाथियों इत्यादि के संस्कृत नाम दिए। वह संस्कृत और कला का भी पोषक था। उसका शासन संगठित था।
बहादुर महत्वाकांक्षी था। उसने शीघ्र ही चंदेरी, भीलसा तथा रायसीन पर अधिकार कर लिया। १५३२-३३ में उसने राजपुताने में प्रवेश किया तथा चित्तौड़ का घेरा डाला। इसी समय हुमायूँ के ग्वालियर आने से उसने चित्तौड़ से संधि कर ली। बहादुरशाह की दृष्टि दिल्ली पर थी। उसकी सेना तथा विशेषतया तोपखाना शक्तिशाली था। गुजरात के शासकों का कोष अपार था। बहादुर ने दिल्ली पर अधिकार करने की योजना बनाई। उसने ऐसे लोगों को जो मुगल दरबार से असंतुष्ट थे शरण दी। इनमें सुल्तान आलम खाँ अलाउद्दीन लोदी, तातार खाँ तथा मुहम्मद ज़मान मिर्जा प्रमुख थे। शरणार्थियों के प्रश्नपर हूमायूँ तथा बहादुर शाह में पत्रव्यवहार हुआ किंतु बहादुर शाह उन्हें वापिस करने को तैयार नहीं हुआ। इनके नेतृत्व में बहादुर शाह ने मुगल साम्राज्य पर तीन तरफ से आक्रमण करने की एक महान् योजना बनाई। किंतु इसमें सफलता नहीं मिली।
जिस समय बहादुरशाह चित्तौड़ को घेरे हुए था उसी समय हुमायूँ ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया। बहादुर चित्तौड़ विजय कर गुजरात की तरफ रवाना हुआ, मार्ग में मन्दसौर के निकट दोनों सेनाएँ एक दूसरे के सामने डटी रहीं। बहादुर शाह को संदेह हुआ कि उसके प्रमुख सेना नायक मुगलों से मिलें हैं। रात को वह मंदसौर से भाग कर मांडू चला गया। मुगलों के वहाँ पहुँचने के पश्चात् वहाँ से भागकर चंपानीर और वहाँ से डियू चला गया। पूरे गुजरात पर मुगलों का अधिकार हो गया। बहादुर शाह ने मुगलों की सेना का खुलकर एक स्थान पर भी सामना नहीं किया। इसका प्रमुख कारण कदाचित् पानीपत के प्रथम युद्ध में प्रदर्शित मुगलों की योग्यता थी।
मुगल गुजरात पर शासन न कर सके। मुगल राजकुमान अस्करी की मूर्खता तथा बहादुरशाह की जनप्रियता से गुजरात की जनता ने विद्रोह कर दिया और मुगलों को गुजरात से भाग जाना पड़ा। इस विद्रोह में हिंदू तथा मुसलमान सभी ने सहयोग दिया। डियू से लौटकर बहादुरशाह ने गुजरात पर अधिकार कर लिया।
जब तक शक्ति हाथ में थी बहादुरशाह ने पुर्तगालियों को दूर रखा। अपने निष्कासन के समय अपनी विवशता में उसे उनसे संधि करनी पड़ी। फरवरी, १५३७ ई. में विना पूर्वसूचना के तथा बिना सुरक्षा के प्रबंध के अपने उमराओं के मना करने पर भी बहादुर पुर्तगाली गवर्नर से मिलने गया। वहाँ उसे धोखा देकर पुर्तगालियों ने मार डाला और उसकी लाश समुद्र में फेंक दी। बहुत दिनों तक लोगों को उसकी मृत्यु पर विश्वास नहीं हुआ तथा कई वर्ष तक उसके प्रकट होने की सूचनाएँ मिलती रहीं।
बहादुरशाह ऐसे जनप्रिय शासक मध्ययुग में नहीं हुए हैं। गद्दी पर बैठने के समय उसकी अवस्था २० वर्ष की थी और मृत्यु के समय वह ३१ वर्ष का था। इस बीच इतिहास में उसने जो स्थान बना लिया वैसा सौभाग्य कम लोगों को प्राप्त होता है। (हरिशंकर श्रीवास्तव)