बर्मा स्थिति : ९° ५५¢ से २८° ३०¢ उ.अ. तथा ९२° १०¢ से १०१° ¢ पू.दे.। यह दक्षिण-पूर्वी एशिया का एक देश है। इसके उत्तर में भारत एवं चीन, पूर्व में थाईलैंड (स्याम), लाओस, चीन और पश्चिम में भारत, पूर्वी पाकिस्तान तथा बंगाल की खाड़ी है। इसके सागरतट की लंबाई १,२०० मील है। इसका क्षेत्रफल २,६१,७८९ वर्ग मील है।

धरातल - धरातल के आधार पर इसे चार भागों में बाँटा जा

चित्र.

सकता है : १. उत्तरी तथा पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र - यह ६,००० से २०,००० फुट तक ऊँचा है। इसमें बंगाल की खाड़ी तथा आराकान योमा पर्वत के मध्य की आराकन पट्टी भी शामिल है। २. पूर्व का शान उच्च प्रदेश - यह लगभग ३,००० फुट तक ऊँचा एक पठार है जो दक्षिण में टेनैसरिम योमा तक फैला है। ३. मध्य बर्मा - यह देश का मुख्य कृषिप्रदेश है जो पूर्व में सैलवीन तथा पश्चिम में इरावदी तथा इसकी सहायक चिंद्विन आदि नदियों से घिरा है। ४. दक्षिण में इरावदी तथा सितांग नदियों का डेल्टा प्रदेश - इरावदी तथा सितांग की निम्न घाटी काफी उपजाऊ है। डेल्टा प्रदेश लगभग १०,००० वर्ग मील में फैला है। यह विश्व के बड़े धान उत्पादक क्षेत्रों में से एक है तथा यहाँ कई प्रसिद्ध बंदरगाह भी स्थित हैं। इरावदी नदी मैदान के पश्चिमी भाग से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

जलवायु - यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जिसमें तीन ऋतुएँ होती हैं : प्रथम, वर्षा ऋतु, जो मध्य मई से मध्य अक्टूबर तक रहती है; द्वितीय, ग्रीष्म ऋतु, जो अप्रैल से मई तथा अक्टूबर या नवंबर तक रहती है। तृतीय, जाड़े की ऋतु, जो दिसंबर से मार्च तक रहती है। मानसून के मौसम में ऊपरी बर्मा में २०० इंच था दक्षिण में स्थित रंगून में १०० इंच तक वर्षा होती है। मध्य के शुष्क भाग में २५ से ३५ इंच वर्षा होती है। निम्न बर्मा का जाड़े का ताप १५.५रूसें. तथा गरमी का ताप ३८रूसें. तक रहता है। मध्य बर्मा में गरमी का ताप निम्न बर्मा के जाड़े के ताप से अधिक तथा गरमी के ताप से कम हो जाता है।

वनस्पति - यहाँ २,००० प्रकार के जंगली वृक्ष एवं ६,००० प्रकार के अन्य पौधे मिलते हैं। सदाबहार जंगलों में महोगनी, पार्चा, बाँस तथा पतझड़वाले जंगलों में सागौन, साल, आबनूस, तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कटीले वृक्ष एवं झाड़ियाँ मिलती डेल्टाई क्षेत्र में मैनग्रोव वन एवं पहाड़ी प्रदेशों में ऊँचाई के अनुसार सदाबहार, पतझड़वाले, मिश्रित तथा कोणधारी वन पाए जाते हैं।

जीवजंतु - यहाँ पाए जानेवाले जीवजंतु असम के समकक्ष घने जंगलों में हाथी, जंगली भैंसे, शेर, चीता, गैंडा, भालू, हरिण बंदर पाए जाते हैं। इनके अलावा मगरमच्छ, नाग तथा २०० प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। पालतू पशुओं में गाय, बैल, भैंसे, बकरियाँ, सूअर तथा भेंड़ें प्रमुख हैं।

कृषि - इरावदी, चिंद्विन, तथा सितांग नदियों की घाटियाँ तथा कृषि क्षेत्र हैं। लगभग २/३ भाग में धान एवं शेष में तिल, मटर, ज्वार बाजरा, कपास, जूट, तंबाकू एवं ईख की खेती होती है।

खनिज - इरावदी घाटी के पेगूयोमा क्षेत्र में खनिज तेल मिलता है जिसकी सफाई रंगून के तेलशोधक केंद्रों पर की जाती है। अन्य खनिजों में सोना, सीसा, ताँबा, जस्ता, चाँदी, कोवाल्ट, टंगस्टन एवं का पत्थर और नीलम प्रमुख हैं।

उद्योग धंधे - यहाँ के मुख्य उद्योग कृषि, एवं खनिजों पर आधारित हैं जिसमें धान कूटना, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, रेशमी उद्योग प्रमुख हैं। अन्य उद्योगों में सूती वस्त्र, सीमेंट, चीनी, चाय, एवं वस्त्र उद्योग आदि आते हैं। निजी क्षेत्र के उद्योगों में सिगरेट, आटा पीसना, संघनित दुग्ध, बिस्कुट एवं मिठाइयाँ बनाना, तंबाकू संबंधी काम करना, गलीचे तथा, कपड़ा बुनना, तथा रँगना, हौजरी का सामान बनाना, छाता, दियासलाई, साबुन, बरतन, प्लास्टिक के सामान बनाना प्रमुख है।

जनसंख्या - यहाँ की जनसंख्या २,१०,००,००० (अनुमानित १९६३) है। यहाँ की प्रमुख भाषा बर्मी है। अंग्रेजी का प्रयोग भी होता है। रंगून, मैंडले तथा मोलम्यिन यहाँ के प्रमुख नगर हैं। रंगून बर्मा की राजधानी, शैक्षिक एवं व्यापारिक केंद्र है। बौद्ध धर्म यहाँ का प्रधान धर्म है। इनके अतिरिक्त ईसाई, हिंदू एवं मुसलमान भी रहते हैं।

शिक्षा - स्वतंत्रता के उपरांत यहाँ की शिक्षाप्रणाली में विकास हुआ है। स्कूल शिक्षा अनिवार्य एवं नि:शुल्क है। शिक्षा का माध्यम बर्मी भाषा है। रंगून एवं मैंडले विश्वविद्यालयों में विभिन्न विषयों की उच्च शिक्षा दी जाती है जिसमें कृषि विज्ञान, चिकित्सा, वनशिक्षा भी सम्मिलित है। इनके अलावा यहाँ अनेकों महाविद्यालय हैं।

यातायात - यहाँ रेलमार्गों, सड़कों का काफी विकास हुआ है। इरावदी तथा चिंद्विन नदियों में ९०० और ३९० मील के अलावा ६० मील लंबी नौका-संचालन-योग्य नहरें हैं। रंगून से हांगकांग, कलकत्ता, जकार्ता, सिंगापुर आदि के लिए हवाई मार्ग हैं।

व्यापार - यहाँ का मुख्य निर्यात चावल, पेट्रोल, सागौन, कपास आदि हैं जिनके बदले विदेशों से कपड़ा, मशीनें, कोयला, लोहा, दवा आदि का आयात होता है। रंगून व्यापारिक केंद्र है।

इतिहास - बर्मा का क्रमबद्ध इतिहास सन् १०४४ ई. में मध्य बर्मा के 'मियन वंश' के अनावराहता के शासनकाल से प्रारंभ होता है जो मार्कोपोलो के यात्रा संस्मरण में भी उल्लिखित है। सन् १२८७ में कुबला खाँ के आक्रमण के फलस्वरूप वंश का विनाश हो गया। ५०० वर्षों तक राज्य छोटे छोटे टुकड़ों में बँटा रहा। सन् १७५४ ई. में अलोंगपाया (अलोंपरा) ने शान एवं मॉन साम्राज्यों को जीतकर 'बर्मी वंश' की स्थापना की जो १९वीं शताब्दी तक रहा।

बर्मा में ब्रिटिश शासन स्थापना की तीन अवस्थाएँ हैं। सन् १८२६ ई. में प्रथम बर्मायुद्ध में अँग्रेजों ने आराकान तथा टेनैसरिम पर अधिकार प्राप्त किया। सन् १८५२ ई. में दूसरे युद्ध के फलस्वरूप वर्मा का दक्षिणी भाग इनके अधीन हो गया तथा १८८६ ई. में संपूर्ण बर्मा पर इनका अधिकार हो गया और इसे ब्रिटिश भारतीय शासनांतर्गत रखा गया।

तदुपरांत सन् १९४८ ई. तक का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम का है। सन् १९३७ ई. में इसने स्वतंत्रता प्राप्त की तथा १७ अक्टूबर १९४७ के संधिपत्र के अनुसार ४ जनवरी, १९४८ को गणराज्य घोषित किया गया। (सु.नं.प्र.)