बर्टलो, पी.ई.एम. (Berthelot, P.E.M. १८७७-१९०७ई.) फ्रांसीसी रसायनज्ञ थे। इनका जन्म पैरिस में हुआ था। इन्होंने पहले इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया, फिर विज्ञान की ओर इनकी रुचि बढ़ी। सन् १८५१ में अध्यापक हो गए और शोधकार्य करते रहे। सन् १८५४ में इन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। सन् १८५९ में कार्बनिक रसायन के प्रोफेसर नियुक्त हुए और इसके छह वर्ष बाद कॉलेज ऑफ़ फ्रांस के अध्यक्ष भी हो गए। पैस्टर की मृत्यु के अनंतर ये ऐकैडमी ऑफ़ सायंसेज़ के स्थायी सचिव बने रहे।

बर्टलो ने कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण के संबंध में अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किए। इनके पहले वैज्ञानिकों की यह धारणा थी कि प्रयोगशाला में कार्बनिक यौगिकों के निर्माण बिना जैवक्रिया (vital activity) असंभव है, किंतु इन्होंने हाइड्रोकार्बन, वसा, शर्करा तथा अन्य यौगिक बनाकर यह सिद्ध कर दिया कि ये सामान्य विधियों से तैयार किए जा सकते हैं। कार्बनिक यौगिकों से संबंधित इनके अनेक शोधपत्र प्रकाशित हुए।

इन्होंने कुछ समय तक विस्फोटकों पर भी कार्य किया। सन् १८७०-७१ में ये फ्रांस की वैज्ञानिक सुरक्षा समिति के अध्यक्ष भी रहे।

इन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष रसायन शास्त्र के इतिहास लिखने में व्यतीत किए। इन्होंने कीमियागरी (alchemy) पर पाई जानेवाली प्राचीन ग्रीक तथा अरबी की पुस्तकों का अनुवाद भी कराया और उन्हें कलेक्शन ऑव एंशेंट ग्रीक केमिस्ट्स (Collection of Ancient Greek Chemists) नाम से सन् १८८७-८८ में प्रकाशित किया। इन्होंने और भी पुस्तकें लिखीं, जिनमें सायंस एट फिलॉसोफ़ी (Science et Philosophie) सन् १८८६ में तथा ला रिवोल्यूशन शिमिक लेवॉज़्ये (La Revolution Chimique Lavoisier) सन् १८९० में लिखी गईं, अत्यंत प्रसिद्ध हैं। (शवगोपाल मिश्र)