बर्टन, रिचर्ड फ्रांसिस, सर (Burton, Richard Francis, Sir, सन् १८२१-१८९०) ब्रिटेन के प्रसिद्ध समन्वेषक तथा पौर्वात्यविद्या शास्त्री का जन्म बर्हम हाउस, हर्टफोर्डशिर, इंग्लैंड में हुआ था। इनकी शिक्षा दीक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई। १८४२ ई. में वे सर चार्ल्स नेपियर के अधीन ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हो गए और उन्हें भारत भेज दिया गया।
सन् १८५३ में पठान के वेष में उन्होंने अरब का भ्रमण किया, जिसका वृत्तांत उन्होंने अपनी पुस्तक 'एल मदीना तथा मक्का की धार्मिक यात्रा का व्यक्तिगत निबंध' (सन् १८५५) में दिया है। जॉन हैनिंग स्पेक के साथ वे सोमालीलैंड गए। हरर नगर में पहुँचनेवाले वे प्रथम श्वेत आदमी थे। सन् १८५६ में वे अफ्रीका लौटे और स्पेक के साथ नील नदी के स्त्रोत तथा टांगान्यिका झील का पता लगाने के लिए यात्रा की, जिसका वर्णन 'भूमध्यरेखीय अफ्रीका के झील प्रदेश' (सन् १८६२) में उन्होंने किया है। पश्चिमी अफ्रीका में जब वे ब्रिटिश राजदूत थे (सन् १८६१-६५) उन्होंने बियफ्राा की खाड़ी (Bight of Biafra), केमरून्स तथा डहोमी क्षेत्रों की खोज की। तदनंतर ब्राज़ील, दमिश्क, आयरलैंड, ट्रिएस्ट आदि क्षेत्रों एवं स्थानों पर रहकर भ्रमण एवं अन्वेषण संबंधी प्रचुर अनुभव प्राप्त किए। इन्होंने लगभग ५० पुस्तकें लिखी हैं। इनकी पुस्तक 'अरब की हजार रातें और एक रात' (सन् १८८५-१८८८) अलिफ लैला का अविकल अँगरेजी अनुवाद है। (का.ना.सिं.)