बर्ज़ीलियस, जॉन्स जैकब (Berzelius, Jons Jacob, Baron; सन् १७७९-१८४८) स्वीडन निवासी रसायनज्ञ थे। इनका जन्म वैफवरसुंडा (Vafversunda) स्थान पर हुआ था। इन्होंने उपसाला विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। १८०२ ई. में स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में औषध रसायन और वनस्पति विज्ञान के सहायक अध्यापक तथा १८०७ई. में इन विषयों के प्रोफेसर नियुक्त हुए। स्टॉकहोम के चिरुगिको मेडिकल इंस्टिट्यूट (Chirugico Medical Institute) में यह रसायन विज्ञान के प्रोफेसर हो गए। यहाँ इन्होंने अपनी एक छोटी सी प्रयोगशाला खोल रखी थी, जिसमें इन्होंने अपना अनुसंधान कार्य आरंभ किया और शिष्यों को प्रोत्साहित करने लगे। १८१८ ई. में ये स्टॉकहोम अकादमी के स्थायी सचिव नियुक्त हुए। १८३२ ई. में इन्होंने अवकाश ग्रहणकर ग्रंथलेखन प्रांरभ किया। १८३५ई. में राजा चार्ल्स चतुर्दश ने इन्हें बैरन की उपाधि दी।
बर्ज़ीलियस का कार्य विविध क्षेत्रों में है। इनकी हार्दिक आकांक्षा परमाणुवाद की संस्थापना थी। वे चाहते थे कि रसायन शास्त्र की प्रत्येक शाखा में द्वैत भाव प्रचलित हो जाए। इन्होंने संयोजी भार निकालने के यथार्थ प्रयत्न किए तथा रसायनशास्त्र की विश्लेषण और परीक्षण पद्धतियों में सुधार किए। इन्होंने प्रदर्शित किया कि रासायनिक अनुपातों के नियम कार्बनिक पदार्थों और खनिजों में भी लागू होते हैं। इन्होंने १८०३ ई. में सीरिया और सीरियम की, १८१७ई. में सलीनियम की एवं १८२८ ई. में थोरियम की खोज की। १८१० ई. में सिलिकन, १८२४ ई. में ज़िर्कोनियम और १८२५ ई. में टाइटेनियम, तत्वावस्था में प्राप्त किए। टाइटेनियम, ज़िर्कोनियम, थोरियम, क्रोमियम, मॉलिब्डेनम, टंग्सटन, यूरेनिय, बैनेडियम आदि दुर्लभ धातुओं के यौगिकों पर बर्ज़ीलियस ने विस्तृत कार्यं किया। १८११ ई. में बर्ज़ीलियस ने कार्बनिक यौगिकों के नामकरण एवं संकेतसूत्रों की पद्धति प्रचलित की, जो बहुत कुछ अब भी मान्य है। १८१२ ई. में इन्होंने अपना विद्युत् रासायनिक सिद्धांत (द्वैत सिद्धांत) प्रतिपादित किया। इसके अनुसार प्रत्येक लवण या यौगिक के दो भाग होते हैं, एक ऋणात्मक और दूसरा घनात्मक अथवा एक अम्लीय और दूसरा क्षारीय भाग। १८१७ ई. में लियस ने तत्वों के यथार्थ परमाणुभारों की एक तालिका तैयार की, जिसमें १८२६ ई. में इन्होंने कुछ और सुधार किए।
१८०७ ई. में बर्ज़ीलियस ने सैरकोलैक्टिकं अम्ल की, १८३२ ई. में रैसेमिक अम्ल की और १८३५ ई. में रैसेमिक अम्ल की और १८३५ ई. में पाइरूविक अम्ल की खोज की। अन्य अनेक कार्बनिक यौगिकों पर भी उन्होंने कार्य किया। १८३१ ई. में इन्होंने समावयवता, बहुअवयवता और मितावयवता के पदों को प्रदर्शित किया। १८३४ ई. में किण्वन क्रिया के संबंध में संपर्कं सिद्धांत प्रस्तुत किया। बर्ज़ीलियस ने रसायनशालाओं के उपकरणों में भी सुधार किया। रबर की नलियों, जल-ऊष्मकों, और भारात्मक स्यंद पत्रों (फिल्टर पेपरों) का प्रचलन इन्होंने ही किया। विश्लेषण विधियों में सुहागा परीक्षण, कोबॉल्ट परीक्षण और धमनी या ब्लोपाइप वाले परीक्षणों के लिए भी हम बर्ज़ीलियस के ऋणी हैं। जब तक वे जीवित रहे रसायनशास्त्र के क्षेत्र में उनका नेतृत्व बराबर माना जाता रहा। (सत्य प्रकाश )