बरौनी कुछ वर्ष पूर्व तक बरौनी पूर्वोत्तर रेलवे का एक सामान्य जंकशन स्टेशन मात्र था, पर आज यहाँ एक बहुत बड़ा औद्योगिक नगर बस गया है। इस नगर के बसने का कारण पेट्रोलियम तेल के शोध करने का कारखाना है। इस कारखाने का पहला क्रम ४२ करोड़ रुपए लागत से बन चुका है और जुलाई, १९६४, से चालू भी हो गया है। इसके लिए कच्चा तेल नहरकटिया और मोरेन से आता है। सार्वजनिक क्षेत्र में यह दूसरी परिष्करणीशाला है। पहला शोध कारखाना असम के नूनमाट्टी में है, जिसकी धारिता ७,५०,००० टन है और जो १९६२ ई. की पहली जनवरी को चालू हो गया था। बरौनी संयंत्र में दस लाख टन तेल का परिष्कार हो सकता है। पेट्रोलियम की माँग इधर बहुत बढ़ गई है और दिन दिन बढ़ रही है। १९६२ ई. में ७६ करोड़, १९६३ ई. में लगभग ८८ करोड़ और १९६४ ई. में १०४.५ करोड़ रुपए का कच्चा तेल और अन्य उत्पाद बाहर से भारत में आए। कच्चा तेल नहरकटिया और मोरान में निकाला जाता है। वहाँ से १६ इंच व्यास के नल द्वारा २७० मील चलकर गवहाटी आता है और गवहाटी से १४ इंच व्यास के नल द्वारा ४५० मील चलकर बरौनी पहुंचता है। इस कारखाने की स्थापना में रूस ने सहायता दी है। इसके लिए १९५९ ई. में भारत और रूस के बीच संधि हुई थी और इसका अंतिम रूप १९६१ ई. में निश्चित हुआ था। रूस ने मशीनों और विशेषज्ञों से सहायता दी। इसके लिए सोवियत सरकार ने १३.५० करोड़ रुपए का ऋण दिया है। ऋण को १२ वर्ष में बराबर किश्तों में अदा करना है। इस कारखाने का विस्तार भी हो रहा है। यह कारखाना लगभग ८३० एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इसमें २० लाख टन तेल का शोधन प्रति वर्ष हो सकता है। तेल के अतिरिक्त वायुयान के लिए पेट्रोल, पेट्रोलियम गैस, स्नेहक, बिटुमिन और कोक भी उत्पाद के रूप में प्राप्त होते हैं। यहाँ वायुमंडलीय दबाव और निर्वात दोनों अवस्थाओं में कच्चे तेल का आसवन होता है और उससे प्राप्त उत्पादों के परिष्कार की पूर्ण व्यवस्था है। कच्चे और परिष्कृत तेलों के रखने के लिए बहुत बड़ी बड़ी टंकियाँ बनी हुई हैं, जिनमें एक मास तक उत्पाद रखे जा सकते हैं। इसके साथ साथ अनेक दूसरे कारखाने भी यहाँ खुल रहे हैं, जिनमें से एक कारखाना उर्वरक तैयार करने का और दूसरा पेट्रो-केमिकल्स तैयार करने का है।