बरतॉले, क्लॉड लुई (Berthollet Claude Louis) का जन्म १७४८ ई. में इटली के साँवाइ क्षेत्र में हुआ और ट्यूरिन में इन्होंने औषध विज्ञान की शिक्षा पाई। १७७२ ई. में इन्होंने पैरिस में रसायन शास्त्र का अध्ययन आरंभ किया। इन दिनों १७९४ ई. में इकोल पॉलिटेकनिक में ये प्रोफेसर हो गए। इनके व्याख्यान दुर्बोध होते थे, १७९८ ई. में ये नेपोलियन के साथ मिस्र गए, जहाँ इन्होंने नील नदी के मुहाने पर सोडियम कार्बोनेट का संग्रह देखा। विचार करने पर इन्हें विश्वास हो गया कि समुद्र लवणीय जल (सोडियम क्लोराइड) और चूने के पत्थर (कैल्सियम कार्बोनेट) की निरंतर क्रिया से यह बना होगा। इस प्रकार की क्रियाओं के संबंध में इन्होंने 'द्रव्य अनुपाती क्रिया का नियम' (law of mass action) प्रतिपादित किया, जो रसायन विज्ञान का महत्वपूर्ण नियम है। इन्होंने अपने इन विचारों का 'स्टैटिक किमिक (Statique chimique) नामक ग्रंथ के दो खंडों में प्रकाशित किया। बरतॉले रसायन विज्ञान में मान्य स्थिर अनुपात के नियम को नहीं मानते थे।
बरतॉले ने अमोनिया के संगठन पर १७८५ ई. में क्लोरीन, हाइपोक्लोराट और क्लोरेट पर १७८५-८७ ई. में एवं क्लोरीन के विरंजक प्रभाव पर काम किया। इन्होंने १७८७ ई. में यह प्रदर्शित किया कि प्रूसिक अम्ल के यौगिक में हाइड्रोजन, कार्बन और नाइट्रोजन तो हैं, पर ऑक्सीजन नहीं है। इसी वर्ष इन्होंने साइऐनोजन क्लोराइड पर भी काम किया। बरतॉले ने प्रदर्शित किया कि हाइड्रोजन सल्फाइड में अम्लीय गुण हैं। इन्होंने १७९६ ई. में हाइड्रोजन परसल्फाइड की सरंचना पर काम किया। प्रूसिक अम्ल और हाइड्रोजन सल्फाइड के अम्लीय गुणों को प्रदर्शित करके बरतॉले ने सिद्ध कर दिया कि अम्लों में ऑक्सीजन का होना आवश्यक नहीं है। बरतॉले ने अपने युग में रसायन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।
फ्रंास की राज्यक्रांति के अवसर पर गोलाबारूद के लिए शोरे की आवश्यकता थी। इसे प्राप्त करने की विधियों में सुधार करने के निमित्त जो कमीशन बना था उसके बरतॉले अध्यक्ष थे। बरतॉले ने ही सर्वप्रथम पोटैसियम क्लोरेट नामक यौगिक की खोज की। लोहे के अयस्कों में से तैयार करने की विधियों के कमीशन के भी वे सदस्य रहे। १७९२ ई. में वे फ्रांस की टकसाल के निदेशक बनाए गए। कृषि और कला की संसदों में भी वे १७९४ ई. में पार्षद रहे। पैरिस पॉलिटेक्निक और नॉर्मल स्कूल में वे रसायन अध्यापक थे ही। बरतॉले की मृत्यु कष्टदायक रोग से पैरिस में ६ नवंबर, १८२२ ई. को हुई। (सत्य प्रकाश्ा)