बपतिस्मा बाइबिल में लिखा है कि ईसा ने अपने स्वर्गारोहण के पूर्व अपने शिष्यों से कहा था - मुझे स्वर्ग और पृथ्वी का पूरा अधिकार दिया गया है। इसलिए जाओ, सब मनुष्यों को शिष्य बनाकर उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो (मत्ती २८,१८-१९)। इसके आधार पर क्वेकर्स (Quakers) तथा मुक्तिसेना को छोड़कर सभी ईसाई संप्रदायों में बपतिस्मा अर्थात् दीक्षास्नान का संस्कार प्रचलित है। प्रारंभ ही से ईसा के शिष्यों ने विश्वासियों को बपतिस्मा द्वारा आदिपाप तथा सभी स्वीकृत पापों से छुटकारा दिलाया है। मनुष्य चर्च का सदस्य बनकर ईसा के साथ रहस्यात्मक ढंग से संयुक्त हो जाता है और उसमें एक आध्यात्मिक नवजीवन (सैंक्टिफाइंग ग्रेस, पवित्रकारी कृपा) का संचार हो जाता है। यदि वपतिस्मा उचित रीति से दिया गया है तो उसे नहीं दुहराया जा सकता। पुरोहित ही प्राय: यह संस्कार कराता है किंतु आवश्यकता पड़ने पर कोई भी उसे संपन्न कर सकता है। मान्यता की तीन शर्तें हैं : (१) बपतिस्मा पानेवाले के सिर पर पानी उड़ेलना अथवा उसका सारा शरीर पानी में डुबाना (कुछ प्रोटेस्टैंट संप्रदायों में जल छिड़क दिया जाता है; चर्च के प्रारंभ में पूरा शरीर डुबोने की प्रथा अधिक प्रचलित थी); (२) बपतिस्मा के शब्दों का उच्चारण (मैं तुमको पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा देता हूँ); (३) संस्कार संपन्न करनेवाले का अभिप्राय कि मैं ईसा के इच्छानुसार बपतिस्मा देना चाहता हूँ और जो ग्रहण करनेवाला वयस्क हो उसे ईसा पर विश्वास, अपने पापों पर पश्चात्ताप तथा संस्कार ग्रहण करने का अभिप्राय होना चाहिए। बेप्टिस्ट तथा मेनोनाइट संप्रदायों में बच्चों को दिया हुआ बपतिस्मा मान्य नहीं होता। (दे. बैप्टिस्ट चर्च)। (रेवरेंड कामिल बुल्के)